बुधवार, 31 अक्टूबर 2012
दीवाली
दीवाली
टी वी पर न्यूरज देख पत्नी,
घबराई, बाहर आई, मुझे पकडी,
अंदर ले गई,
और बंद कर दी।
कारण पूछा तो –बोली,
देखते
टी वी पर न्यूरज देख पत्नी,
घबराई, बाहर आई, मुझे पकडी,
अंदर ले गई,
और बंद कर दी।
कारण पूछा तो –बोली,
देखते
रहमत
रहमत जब खुदा की हो तो बंजर भी चमन होता..
खुशिया रहती दामन में और जीवन में अमन होता
मर्जी बिन खुदा यारो
खुशिया रहती दामन में और जीवन में अमन होता
मर्जी बिन खुदा यारो
ग़ज़ल(नकाब)
जब अपने चेहरे से नकाब हम हटाने लगतें हैं
अपने चेहरे को देखकर डर जाने लगते हैं
बह हर बात को मेरी
अपने चेहरे को देखकर डर जाने लगते हैं
बह हर बात को मेरी
मंगलवार, 30 अक्टूबर 2012
वर्तमान और मन की व्यथा / शिवदीन राम जोशी
कपट कंकाल काल झपट-झपट सपट लूटे,
बोल रहे मानव झूट झूट के गुलाम यूँ |
छल बल छल छिद्रन को काम
बोल रहे मानव झूट झूट के गुलाम यूँ |
छल बल छल छिद्रन को काम
ली ममता की जान
बेटा ने माँ को रुलाया है ,
हर किया उसका उपकार भुलाया है ,
खुदा से शायद उसे डर नहीं ,
इसलिए माँ के ममता
हर किया उसका उपकार भुलाया है ,
खुदा से शायद उसे डर नहीं ,
इसलिए माँ के ममता
ली ममता की जान
बेटा ने माँ को रुलाया है ,
हर किया उसका उपकार भुलाया है ,
खुदा से शायद उसे डर नहीं ,
इसलिए माँ के ममता
हर किया उसका उपकार भुलाया है ,
खुदा से शायद उसे डर नहीं ,
इसलिए माँ के ममता
इन अश्कों की हम पे कुछ तो रहमत है
इन अश्कों की हम पे कुछ तो रहमत है
मेरे तकिये पे भी शायरी जिंदा है
In Ashko'n Ki Hum Pe Kuch To Rehmat Hai
Mere Takiye Pe.........Bhi Shaairi Zinda Hai
ان اشکوں کی ہم پے
मेरे तकिये पे भी शायरी जिंदा है
In Ashko'n Ki Hum Pe Kuch To Rehmat Hai
Mere Takiye Pe.........Bhi Shaairi Zinda Hai
ان اشکوں کی ہم پے
ग़ज़ल(बहुत मुश्किल)
अँधेरे में रहा करता है साया साथ अपने पर
बिना जोखिम उजाले में है रह पाना बहुत मुश्किल
ख्बाबो और यादों की गली
बिना जोखिम उजाले में है रह पाना बहुत मुश्किल
ख्बाबो और यादों की गली
ग़ज़ल (रूप )
गर कोई हमसे कहे की रूप कैसा है खुदा का
हम यकीकन ये कहेंगे जिस तरह से यार है....
संग गुजरे कुछ लम्हों की हो नहीं सकती
हम यकीकन ये कहेंगे जिस तरह से यार है....
संग गुजरे कुछ लम्हों की हो नहीं सकती
ग़ज़ल(बात करते हैं )
सजाए मोत का तोहफा हमने पा लिया जिनसे
ना जाने क्यों बो अब हमसे कफ़न उधर दिलाने की बात करते हैं
हुए दुनिया से
ना जाने क्यों बो अब हमसे कफ़न उधर दिलाने की बात करते हैं
हुए दुनिया से
सोमवार, 29 अक्टूबर 2012
“तभी समझो दिवाली है”
“तभी समझो दिवाली है”
यह कविता
मेरी
“मिटने वाली रात नहीं”
काव्य-संकलन
से
ली गई
है।
“तभी समझो दिवाली
यह कविता
मेरी
“मिटने वाली रात नहीं”
काव्य-संकलन
से
ली गई
है।
“तभी समझो दिवाली
बाबूजी का चश्मा
उनमुक्त गगन मे उड़ते हुए पंछी
कल-कल ,छल-छल बहती नदिया की धारा
अक्सर याद आता है मुझे
गरजते हुए मेघों की
कल-कल ,छल-छल बहती नदिया की धारा
अक्सर याद आता है मुझे
गरजते हुए मेघों की
sher
In Ashko'n Ki Hum Pe Kuch To Rehmat Hai
Mere Takiye Pe.........Bhi Shaairi Zinda Hai
ان اشکوں کی ہم پے کچھ تو رحمت ہے
میرے تکیے پے بھی شاعری زندا ہے
इन अश्कों की हम पे कुछ तो रहमत
Mere Takiye Pe.........Bhi Shaairi Zinda Hai
ان اشکوں کی ہم پے کچھ تو رحمت ہے
میرے تکیے پے بھی شاعری زندا ہے
इन अश्कों की हम पे कुछ तो रहमत
हेमू
हेमू
अब मां बैठी रहती,
हेमू कर लेता है अपना काम,
मसलन- जगाने से पहले जागना,
तह करना अपना बिस्तर,
पढ्ना लिखना, ब्रश
अब मां बैठी रहती,
हेमू कर लेता है अपना काम,
मसलन- जगाने से पहले जागना,
तह करना अपना बिस्तर,
पढ्ना लिखना, ब्रश
तुझे मेरी कमी महसूस होगी....
दिल की ज़मीं महसूस होगी ,
आँखों में नमी महसूस होगी ,
बिछड़ते हुए ये कहा था उसने ,
तुझे मेरी कमी महसूस होगी
आँखों में नमी महसूस होगी ,
बिछड़ते हुए ये कहा था उसने ,
तुझे मेरी कमी महसूस होगी
एक बार आज़मा के तो देख....
एक बार आज़मा के तो देख ,
कोई खंज़र चुभा के तो देख ,
कितनो के ज़ेहन पे छाया हूँ ,
मेरी हस्ती मिटा के तो देख
कोई खंज़र चुभा के तो देख ,
कितनो के ज़ेहन पे छाया हूँ ,
मेरी हस्ती मिटा के तो देख
उजाले तो हमने कहीं देखे नहीं....
जागती आँखों से ख्वाब देखा ,
हमने फ़लक पे माहताब देखा ,
उजाले तो हमने कहीं देखे नहीं ,
अन्धेरा यहाँ पे बेहिसाब देखा
हमने फ़लक पे माहताब देखा ,
उजाले तो हमने कहीं देखे नहीं ,
अन्धेरा यहाँ पे बेहिसाब देखा
मौसम भी ठहरना चाहते हैं....
हद से ये गुज़रना चाहते हैं ,
आईने भी संवरना चाहते हैं ,
तुम भी रुक जाते शब् भर ,
मौसम भी ठहरना चाहते हैं
आईने भी संवरना चाहते हैं ,
तुम भी रुक जाते शब् भर ,
मौसम भी ठहरना चाहते हैं
रविवार, 28 अक्टूबर 2012
कविता सागर
जिसने कविता में पाया है
किया उसने जीवन ज़ाया है
देखो तो ओ जग वालो
बहुतेरे भरमाया है ।
कैसा समय ये आया है
मछली ने
किया उसने जीवन ज़ाया है
देखो तो ओ जग वालो
बहुतेरे भरमाया है ।
कैसा समय ये आया है
मछली ने
कविता सागर
जिसने कविता में पाया है
किया उसने जीवन ज़ाया है
देखो तो ओ जग वालो
बहुतेरे भरमाया है ।
कैसा समय ये आया है
किया उसने जीवन ज़ाया है
देखो तो ओ जग वालो
बहुतेरे भरमाया है ।
कैसा समय ये आया है
कविता सागर
BY : - सतीश कुमार
जिसने कविता में पाया है
किया उसने जीवन ज़ाया है
देखो तो ओ जग वालो
बहुतेरे भरमाया है
जिसने कविता में पाया है
किया उसने जीवन ज़ाया है
देखो तो ओ जग वालो
बहुतेरे भरमाया है
कविता सागर
by Satish Kumar on Wednesday, October 24, 2012 at 7:25pm ·
BY : - सतीश कुमार
जिसने कविता में पाया है
किया उसने जीवन ज़ाया है
देखो तो ओ जग
BY : - सतीश कुमार
जिसने कविता में पाया है
किया उसने जीवन ज़ाया है
देखो तो ओ जग
कविता सागर
by Satish Kumar on Wednesday, October 24, 2012 at 7:25pm ·
BY : - सतीश कुमार
जिसने कविता में पाया है
किया उसने जीवन ज़ाया है
देखो तो ओ जग
BY : - सतीश कुमार
जिसने कविता में पाया है
किया उसने जीवन ज़ाया है
देखो तो ओ जग
कविता सागर
by Satish Kumar on Wednesday, October 24, 2012 at 7:25pm ·
BY : - सतीश कुमार
जिसने कविता में पाया है
किया उसने जीवन ज़ाया है
देखो तो ओ जग
BY : - सतीश कुमार
जिसने कविता में पाया है
किया उसने जीवन ज़ाया है
देखो तो ओ जग
कल सूरज की किरणों का भी बिल आएगा भाई रे
महंगाई ने कहर ढा दिया, जान बचाओ भाई रे
कल सूरज की किरणों का भी, बिल आएगा भाई रे
बाबू जी हैं शहर गए और मां बैठी
कल सूरज की किरणों का भी, बिल आएगा भाई रे
बाबू जी हैं शहर गए और मां बैठी
संसद भी अपनी बनी फकत,हाट,मॉल बाजार है
सौगन्ध महात्मा गांधी की खाकर ये कलम उठाता हूं
है साठ साल में क्या गुजरी,ये हाल सभी को सुनाता हूं
जुल्मी गोरों
है साठ साल में क्या गुजरी,ये हाल सभी को सुनाता हूं
जुल्मी गोरों
क्या लायें इस बार
दीवाली तो आ गई पापा, क्या लायें इस बार
बच्चा बोला देखकर, सुबह सुबह अखबार
सुबह सुबह अखबार, पापा कपड़े नए दिला
बच्चा बोला देखकर, सुबह सुबह अखबार
सुबह सुबह अखबार, पापा कपड़े नए दिला
शनिवार, 27 अक्टूबर 2012
मुझे कुछ कहना है
अभी रात बाकी है .............................?
अभी बात बाकी ...............................?
क्म्ब्ख्त कब से कुछ कह्ने की कोशिश मे रहा....?
बेदर्द
कसूरवार
Har Ek Baar Ilzaam Hum Par Hi Aata Hai,
Gunaah Tum Karo Aur Kasoorwaar Hume Mana Jata Hai.
-
Gunaah Tum Karo Aur Kasoorwaar Hume Mana Jata Hai.
-
कश्मकश
ये किस कश्मकश मे रखा है मुझे ऐ ज़िन्दगी कि लगता है ऐसे कि जैसे -
समन्दर कि उस गह्राराई मे खडा हूं जहां से निकल जाना
समन्दर कि उस गह्राराई मे खडा हूं जहां से निकल जाना
खुरचन सबके चेहरों पर, खुद से खुद सब लड़े हुए हैं
कड़वे बोल सुनाने निकला,
लेकिन जग में कौन सुनेगा
खुरचन सबके चेहरों पर हैं
खुद से खुद सब लड़े हुए हैं
ग्रन्थ,
लेकिन जग में कौन सुनेगा
खुरचन सबके चेहरों पर हैं
खुद से खुद सब लड़े हुए हैं
ग्रन्थ,
मैं तुम्हारी हूँ
मेरे प्राणेश-
यह आखिरी शाम,
और वह भी ,बीत गयी.
तुम्हारी वह, खामोशी,
आज फिर से, जीत गयी.
कुछ भी तो मुझे न मिला,
न
यह आखिरी शाम,
और वह भी ,बीत गयी.
तुम्हारी वह, खामोशी,
आज फिर से, जीत गयी.
कुछ भी तो मुझे न मिला,
न
तेरे गुलशन की कलियां...........
तेरे गुलशन की कलियां बिखरने न देगें,
के मज़हब पे इनको यूं लड़ने न देगें ।
जो रहते यहां पे सभी हैं वो भाई,
देश अपना ये
के मज़हब पे इनको यूं लड़ने न देगें ।
जो रहते यहां पे सभी हैं वो भाई,
देश अपना ये
तेरे वगैर
बहुत मुश्किल है /तेरे वगैर जीना |
भरमता ही रहा /पहाड़ की तलहटियों में
नदी के किनारों के संग
नदी भी चलती रही /साथ-साथ
भरमता ही रहा /पहाड़ की तलहटियों में
नदी के किनारों के संग
नदी भी चलती रही /साथ-साथ
ममता भरी छांव
कोख से जन्म दे, ये संसार दिखाया,
रातों भर जग, सुखे बिस्तर पर सुलाया
हर मोड पर कच्चे घडे की तरह,
हाथों का सहारा दे
रातों भर जग, सुखे बिस्तर पर सुलाया
हर मोड पर कच्चे घडे की तरह,
हाथों का सहारा दे
कश्मकश
ये किस कश्मकश मे रखा है मुझे ऐ ज़िन्दगी कि लगता है ऐसे कि जैसे -
समन्दर कि उस गह्राराई मे खडा हूं जहां से निकल जाना
समन्दर कि उस गह्राराई मे खडा हूं जहां से निकल जाना
मत मांग भीख रोटी खातिर,उठ आज अभी बागी बन जा
मत मांग भीख रोटी खातिर,उठ आज अभी बागी बन जा
पुरजोर बगावत दिल्ली से करनी है, चल बागी बन जा
लिए कटोरा भीख मांगते,साठ
पुरजोर बगावत दिल्ली से करनी है, चल बागी बन जा
लिए कटोरा भीख मांगते,साठ
गुरुवार, 25 अक्टूबर 2012
मत मांग भीख रोटी खातिर,उठ आज अभी बागी बन जा
मत मांग भीख रोटी खातिर,उठ आज अभी बागी बन जा
पुरजोर बगावत दिल्ली से करनी है, चल बागी बन जा
लिए कटोरा भीख मांगते,साठ
पुरजोर बगावत दिल्ली से करनी है, चल बागी बन जा
लिए कटोरा भीख मांगते,साठ
मत मांग भीख रोटी खातिर,उठ आज अभी बागी बन जा
मत मांग भीख रोटी खातिर,उठ आज अभी बागी बन जा
पुरजोर बगावत दिल्ली से करनी है, चल बागी बन जा
लिए कटोरा भीख मांगते,साठ
पुरजोर बगावत दिल्ली से करनी है, चल बागी बन जा
लिए कटोरा भीख मांगते,साठ
मत मांग भीख रोटी खातिर,उठ आज अभी बागी बन जा
मत मांग भीख रोटी खातिर,उठ आज अभी बागी बन जा
पुरजोर बगावत दिल्ली से करनी है, चल बागी बन जा
लिए कटोरा भीख मांगते,साठ
पुरजोर बगावत दिल्ली से करनी है, चल बागी बन जा
लिए कटोरा भीख मांगते,साठ
कानजीलाल वर्सेस कजरीवाल ? O.M.G..!
प्यारे दोस्तों,
आपने फिल्म `ऑ..ह माय गॉड` देखी है? इस फिल्म में भगवान की सत्ता को ललकारने वाले `कानजी लालजी
आपने फिल्म `ऑ..ह माय गॉड` देखी है? इस फिल्म में भगवान की सत्ता को ललकारने वाले `कानजी लालजी
दूर जितना वो मुझसे जाएंगें !! ग़ज़ल !!
गजल !
दूर जितना ही मुझसे जाएंगे !
मुझको उतना क़रीब पाएँगे !!
कुछ न होगा तो आंख नम होगी!
दोस्त बिछड़े जो याद
दूर जितना ही मुझसे जाएंगे !
मुझको उतना क़रीब पाएँगे !!
कुछ न होगा तो आंख नम होगी!
दोस्त बिछड़े जो याद
बुधवार, 24 अक्टूबर 2012
तक्षकों के दंस
आज पग -पग पर
खडा है
कंस /
नखों में भर
तक्षकों के
दंस /
त्रस्त जीवन
गरलमय
परिवेश ,
चतुर्दिक
संत्रास
कश्मकश
ये किस कश्मकश मे रखा है मुझे ऐ ज़िन्दगी कि लगता है ऐसे कि जैसे -
समन्दर कि उस गहराई मे खडा हूं जहां से निकल जाना भी
समन्दर कि उस गहराई मे खडा हूं जहां से निकल जाना भी
कश्मकश
ये किस कश्मकश मे रखा है मुझे ऐ ज़िन्दगी कि लगता है ऐसे कि जैसे -
समन्दर कि उस गहराई मे खडा हूं जहां से निकल जाना भी
समन्दर कि उस गहराई मे खडा हूं जहां से निकल जाना भी
कश्मकश
ये किस कश्मकश मे रखा है मुझे ऐ ज़िन्दगी कि लगता है ऐसे कि जैसे -
समन्दर कि उस गहराई मे खडा हूं जहां से निकल जाना भी
समन्दर कि उस गहराई मे खडा हूं जहां से निकल जाना भी
मंगलवार, 23 अक्टूबर 2012
sher
vo khat purane se aaj........padh kar
achchar achchar fir se man roya hai
वो खत पुराने से आज...पढ़ कर
अक्षर अक्षर फिर से मन रोया है
- Sanjeev
achchar achchar fir se man roya hai
वो खत पुराने से आज...पढ़ कर
अक्षर अक्षर फिर से मन रोया है
- Sanjeev
कर्ज
मैं हूँ
क्यों फिक्र करते हो
रहूँगा जीवन भर तुम्हारे साथ
या तुम्हारे मरने के बाद भी
तुम्हारे प्यार ने मुझे अपना
क्यों फिक्र करते हो
रहूँगा जीवन भर तुम्हारे साथ
या तुम्हारे मरने के बाद भी
तुम्हारे प्यार ने मुझे अपना
सोमवार, 22 अक्टूबर 2012
खामोश पल की चाह
मंजिल जब एक हो तो
अजनबी बन कर कैसे चलें?
उमस भरी दोपहरी-सी
बेचैन जिन्दगी कैसे ढ़ले?
कभी गम दिया कभी दी खुशी,
कभी
अजनबी बन कर कैसे चलें?
उमस भरी दोपहरी-सी
बेचैन जिन्दगी कैसे ढ़ले?
कभी गम दिया कभी दी खुशी,
कभी
खामोश पल की चाह
मंजिल जब एक हो तो
अजनबी बन कर कैसे चलें?
उमस भरी दोपहरी-सी
बेचैन जिन्दगी कैसे ढ़ले?
कभी गम दिया कभी दी खुशी,
कभी
अजनबी बन कर कैसे चलें?
उमस भरी दोपहरी-सी
बेचैन जिन्दगी कैसे ढ़ले?
कभी गम दिया कभी दी खुशी,
कभी
खामोश पल की चाह
मंजिल जब एक हो तो
अजनबी बन कर कैसे चलें?
उमस भरी दोपहरी-सी
बेचैन जिन्दगी कैसे ढ़ले?
कभी गम दिया कभी दी खुशी,
कभी
अजनबी बन कर कैसे चलें?
उमस भरी दोपहरी-सी
बेचैन जिन्दगी कैसे ढ़ले?
कभी गम दिया कभी दी खुशी,
कभी
उस मोड़ पर
रात भर फैला रहा सन्नाटा,
फैला रहा अँधेरा
ज्वन अंकुरित हुआ
उठ कर देखा उस मोड़ पर तुम खड़े थे
जहाँ उठ रहा था
फैला रहा अँधेरा
ज्वन अंकुरित हुआ
उठ कर देखा उस मोड़ पर तुम खड़े थे
जहाँ उठ रहा था
उस मोड़ पर
रात भर फैला रहा सन्नाटा,
फैला रहा अँधेरा
ज्वन अंकुरित हुआ
उठ कर देखा उस मोड़ पर तुम खड़े थे
जहाँ उठ रहा था
फैला रहा अँधेरा
ज्वन अंकुरित हुआ
उठ कर देखा उस मोड़ पर तुम खड़े थे
जहाँ उठ रहा था
बुलबुला
जिज्ञासु मानव सृष्टि के रहस्य सुलझाता रहा
सृष्टि से रहस्य की पर्ते निकलती रहीं
मानव,
मानव जाति की उत्पत्ति के
सृष्टि से रहस्य की पर्ते निकलती रहीं
मानव,
मानव जाति की उत्पत्ति के
नयन-तुम्हारे
तुम्हे जो देखा, मन कही खो गया।
भीग गया सारा समां, मौसम दीवाना हो गया।
होठ थे खामोश तुम्हारे, आँखों में बिखरे
भीग गया सारा समां, मौसम दीवाना हो गया।
होठ थे खामोश तुम्हारे, आँखों में बिखरे
नयन-तुम्हारे
तुम्हे जो देखा, मन कही खो गया।
भीग गया सारा समां, मौसम दीवाना हो गया।
होठ थे खामोश तुम्हारे, आँखों में बिखरे
भीग गया सारा समां, मौसम दीवाना हो गया।
होठ थे खामोश तुम्हारे, आँखों में बिखरे
नयन-तुम्हारे
तुम्हे जो देखा, मन कही खो गया।
भीग गया सारा समां, मौसम दीवाना हो गया।
होठ थे खामोश तुम्हारे, आँखों में बिखरे
भीग गया सारा समां, मौसम दीवाना हो गया।
होठ थे खामोश तुम्हारे, आँखों में बिखरे
नयन-तुम्हारे
तुम्हे जो देखा, मन कही खो गया।
भीग गया सारा समां, मौसम दीवाना हो गया।
होठ थे खामोश तुम्हारे, आँखों में बिखरे
भीग गया सारा समां, मौसम दीवाना हो गया।
होठ थे खामोश तुम्हारे, आँखों में बिखरे
नयन-तुम्हारे
तुम्हे जो देखा, मन कही खो गया।
भीग गया सारा समां, मौसम दीवाना हो गया।
होठ थे खामोश तुम्हारे, आँखों में बिखरे
भीग गया सारा समां, मौसम दीवाना हो गया।
होठ थे खामोश तुम्हारे, आँखों में बिखरे
मुझको भी तो जीने दो
जीवन है कितना सुंदर
मुझको भी तो
जीने दो
माँ की कोख
मुझे भी प्यारी
दुलार पिता
का पाने दो
मैं भी तो
हूँ अंश
मुझको भी तो
जीने दो
माँ की कोख
मुझे भी प्यारी
दुलार पिता
का पाने दो
मैं भी तो
हूँ अंश
रविवार, 21 अक्टूबर 2012
शनिवार, 20 अक्टूबर 2012
देश को दो अब नया विकल्प
लिखो नई पटकथा देश की
रचो नया इतिहास !
गांव- गांव में नगर-नगर में
फैले नया उजास !!
ॠद्धि- सिद्धि -संॠद्धि देश
देश को दो अब नया विकल्प
लिखो नई पटकथा देश की
रचो नया इतिहास !
गांव- गांव में नगर-नगर में
फैले नया उजास !!
ॠद्धि- सिद्धि -संॠद्धि देश
देश को दो अब नया विकल्प
देश को दो अब नया विकल्प
........................................
लिखो नई पटकथा देश की
रचो नया इतिहास !
गांव- गांव में नगर-नगर में
फैले
........................................
लिखो नई पटकथा देश की
रचो नया इतिहास !
गांव- गांव में नगर-नगर में
फैले
हाईकु
तुमने ओढ़ी
आसुओं की चादर
समाज खुश
ज़ख़्मों को धोना
मलहम लगाना
चलते जाना
सबकी खुशी
आँसुओं पे न जाना
फर्ज़
आसुओं की चादर
समाज खुश
ज़ख़्मों को धोना
मलहम लगाना
चलते जाना
सबकी खुशी
आँसुओं पे न जाना
फर्ज़
हाईकु
तुमने ओढ़ी
आसुओं की चादर
समाज खुश
ज़ख़्मों को धोना
मलहम लगाना
चलते जाना
सबकी खुशी
आँसुओं पे न जाना
फर्ज़
आसुओं की चादर
समाज खुश
ज़ख़्मों को धोना
मलहम लगाना
चलते जाना
सबकी खुशी
आँसुओं पे न जाना
फर्ज़
आकार
आँधियाँ आती हैं
कुछ कण ओर त्रनो को
उड़ाकर ले जाती है..
कूच्छ कण ओर त्रृण
को वापस ले आती है
कुछ को वही. छोड जाती है
उन
कुछ कण ओर त्रनो को
उड़ाकर ले जाती है..
कूच्छ कण ओर त्रृण
को वापस ले आती है
कुछ को वही. छोड जाती है
उन
देश को दो अब नया विकल्प
देश को दो अब नया विकल्प
........................................
लिखो नई पटकथा देश की
रचो नया इतिहास !
गांव- गांव में नगर-नगर में
फैले
........................................
लिखो नई पटकथा देश की
रचो नया इतिहास !
गांव- गांव में नगर-नगर में
फैले
संभावित कदम
मंहगाई रोकने के लिए
हर संभव कदम उठायेगी सरकार
वित्तमंत्री सोच समझकर कहते हैं।
सुरक्षा के सभी उपाय किये
हर संभव कदम उठायेगी सरकार
वित्तमंत्री सोच समझकर कहते हैं।
सुरक्षा के सभी उपाय किये
कविता की कल्पना मे
कविता की कल्पना मे
माया की आस जगी
सोना हो पास मेरे
ऐसी कुछ प्यास लगी
रोशन हो सूरज सा
घर का हर कोना
पायल की छम-छम
माया की आस जगी
सोना हो पास मेरे
ऐसी कुछ प्यास लगी
रोशन हो सूरज सा
घर का हर कोना
पायल की छम-छम
शुक्रवार, 19 अक्टूबर 2012
प्लेटफार्म पर पति के ठण्ड
प्लेटफार्म
प्लेटफार्म पर पति के ठण्ड
एवं पत्नी के प्रचण्ड काण्ड
के मध्य एनाउंस हुआ,
कपया यात्री गण इधर
प्लेटफार्म पर पति के ठण्ड
एवं पत्नी के प्रचण्ड काण्ड
के मध्य एनाउंस हुआ,
कपया यात्री गण इधर
क्षणिकायें - पश्चिमीकरण और राजनीति
पश्चिमीकरण
पश्चिमीकरण से कुछ्
हो रहा हो या न हो रहा हो,
पर पूरब की माताएं 'ममी'
और पिता ''डेड''अवश्य
हो रहे
पश्चिमीकरण से कुछ्
हो रहा हो या न हो रहा हो,
पर पूरब की माताएं 'ममी'
और पिता ''डेड''अवश्य
हो रहे
क्षणिकायें - राजनीति, दफ्तर
राजनीति
चरि्त्र की होती
निरंतर अधोगति,
मतलब,
राजनीति की होती,
उर्ध्वगति।।
******
दफ्तर
यूं तो वे दफ्तर
कम ही जाते
चरि्त्र की होती
निरंतर अधोगति,
मतलब,
राजनीति की होती,
उर्ध्वगति।।
******
दफ्तर
यूं तो वे दफ्तर
कम ही जाते
गुरुवार, 18 अक्टूबर 2012
मत करों परेशान उन्हे बेवजह
मत करों परेशान उन्हे बेवजह
मत करों परेशान, उन्हे बेवजह ।
यूं ही परेशान है, वो बेवजह।।
दरअसल वो है ही
मत करों परेशान, उन्हे बेवजह ।
यूं ही परेशान है, वो बेवजह।।
दरअसल वो है ही
हाईकु
तुमने ओढ़ी
आसुओं की चादर
समाज खुश
ज़ख़्मों को धोना
मलहम लगाना
चलते जाना
सबकी खुशी
आँसुओं पे न जाना
फर्ज़
आसुओं की चादर
समाज खुश
ज़ख़्मों को धोना
मलहम लगाना
चलते जाना
सबकी खुशी
आँसुओं पे न जाना
फर्ज़
बुधवार, 17 अक्टूबर 2012
क्षणिकायें - राजनीति, दफ़़्तर
राजनीति
चरि्त्र की होती
निरंतर अधोगति,
मतलब,
राजनीति की होती,
उर्ध्वगति।।
******
दफ़़्तर
यूं तो वे दफ़़्तर
कम ही
चरि्त्र की होती
निरंतर अधोगति,
मतलब,
राजनीति की होती,
उर्ध्वगति।।
******
दफ़़्तर
यूं तो वे दफ़़्तर
कम ही
मंगलवार, 16 अक्टूबर 2012
आस
आस मेरी बस यही
की ख्वाहिशें ना हों
डूब कर यादों में
समंदर की गहरईयों में
खोजाऊँ कहीं तनहाईयोंमें
आस मेरी बस
की ख्वाहिशें ना हों
डूब कर यादों में
समंदर की गहरईयों में
खोजाऊँ कहीं तनहाईयोंमें
आस मेरी बस
आस
आस मेरी बस यही
की ख्वाहिशें ना हों
डूब कर यादों में
समंदर की गहरईयों में
खोजाऊँ कहीं तनहाईयोंमें
आस मेरी बस
की ख्वाहिशें ना हों
डूब कर यादों में
समंदर की गहरईयों में
खोजाऊँ कहीं तनहाईयोंमें
आस मेरी बस
बेटे की ख्वाहिश
बेटे की थी ख्वाहिश, बेटी ने धन्य बना दिया।
ये घर जो था मकान, उसको महल बना दिया।।
जब भी रहा उदास, दुखी दुखी बुझा
ये घर जो था मकान, उसको महल बना दिया।।
जब भी रहा उदास, दुखी दुखी बुझा
क्यूँ हुई वह परायी'
शहनाई की धुन पर...
बचपन के आँगन को छोड़
दर्द सहती आई हैं बेटियां...
अपने अंश को विदा करते मात-पिता
अकथ पीड़ा महसूस करते
बचपन के आँगन को छोड़
दर्द सहती आई हैं बेटियां...
अपने अंश को विदा करते मात-पिता
अकथ पीड़ा महसूस करते
बिरह-बेदना
तेरे अश्रु जल से भरे नयन
सर्द हवा मैं जैसे भीगे मेरा तन
तेरे मूक अधरों के कंपन
गहरे तूफान सा बिचलित मेरा मन
तेरे
सर्द हवा मैं जैसे भीगे मेरा तन
तेरे मूक अधरों के कंपन
गहरे तूफान सा बिचलित मेरा मन
तेरे
मेरी बच्ची का है जन्मदिन
मेरी बच्ची का है जन्मदिन
मेरा आंगन फिर भी उदास
गूँजना है संगीत, है कंहा उल्लास
हवा सर्द है, फिजा है गमगीन
कोयल
मेरा आंगन फिर भी उदास
गूँजना है संगीत, है कंहा उल्लास
हवा सर्द है, फिजा है गमगीन
कोयल
.अश्क....
यह अश्क आँखों से जब निकलता है
या फिर दिल मैं जब उतर जाता है
न पता नस्तर सा कंही चुभ जाता है
हर ख़ुशी भी दर्दे ऐ दिल
या फिर दिल मैं जब उतर जाता है
न पता नस्तर सा कंही चुभ जाता है
हर ख़ुशी भी दर्दे ऐ दिल
रिश्ते !-?-!
सुलगते रहते हैं सारी उम्र
कड़वा सच, बेबसी का
गुस्सा निगलते,चुप है, है जो शर्म
अबिवाहीत की तरह !
यह चिंगारी है मनके
कड़वा सच, बेबसी का
गुस्सा निगलते,चुप है, है जो शर्म
अबिवाहीत की तरह !
यह चिंगारी है मनके
कैसे करूं मैं आज कविता ?
छंदों से करदूं आँख मिचोली,
या लिख दूं कोई सुरीली बोली ...
शब्दों की लाली रच दूं,
या रंग दूं पेचीदा अक्षरों की होली
या लिख दूं कोई सुरीली बोली ...
शब्दों की लाली रच दूं,
या रंग दूं पेचीदा अक्षरों की होली
मेरा बचपन . . .
मन की अधूरी राह में,
हर अधूरी चाह में,
हैं जो चिरंतर हाहाकार,
अंतर्मन का करून चीत्कार,
मुझे और जीने नहीं देता,
हर अधूरी चाह में,
हैं जो चिरंतर हाहाकार,
अंतर्मन का करून चीत्कार,
मुझे और जीने नहीं देता,
कल जो संजोया, खोकर अपना वर्तमान . . .
पढ़ लिखकर काबिल बनने घर छोढ़ चले
उजढ़ा चमन, पर है सपने उनके निराले,
नई उमीदें, नई आशाये, नई मंजिले
खुला आसमा, खुली
उजढ़ा चमन, पर है सपने उनके निराले,
नई उमीदें, नई आशाये, नई मंजिले
खुला आसमा, खुली
बिदाई
बिदाई की अब बजने को है शहनाई
बिरह के सायों में यादो की परछाई
हर एक लम्हा ;हर एक स्पन्दन
बियोग के सुरों में ह्रदय का
बिरह के सायों में यादो की परछाई
हर एक लम्हा ;हर एक स्पन्दन
बियोग के सुरों में ह्रदय का
मिलन की परिभाष
भोर की लाली छाई,स्वर्णिम आभा का प्रकाश,
ली तुमने अब अंगड़ाई,अधखुली नींद का आभास,
यह उलझे बालों की लटे,
ली तुमने अब अंगड़ाई,अधखुली नींद का आभास,
यह उलझे बालों की लटे,
मिलन की परिभाष
भोर की लाली छाई,स्वर्णिम आभा का प्रकाश,
ली तुमने अब अंगड़ाई,अधखुली नींद का आभास,
यह उलझे बालों की
ली तुमने अब अंगड़ाई,अधखुली नींद का आभास,
यह उलझे बालों की
मिलन
घनगोर कालि अमबश्या की रात
चांदनी को प्रतीक्षित है नई प्रभात
हर्षित मन, मन मैं मधुमास
भरा उल्लास, मिलन की आश
दिन
चांदनी को प्रतीक्षित है नई प्रभात
हर्षित मन, मन मैं मधुमास
भरा उल्लास, मिलन की आश
दिन
मेरे ह्रदय में समाई
तुमने ली जब मद-मस्त अंगढ़ाई...
हृदय के रुधिर वेग मे फ़ैली पंचम तान
अंग -अंग मे शिहरित ओस का स्नान
पुष्प सा पुष्पित
हृदय के रुधिर वेग मे फ़ैली पंचम तान
अंग -अंग मे शिहरित ओस का स्नान
पुष्प सा पुष्पित
ऐसी भी होती एक आत्म-व्यथा
ऐसी भी होती एक आत्म-व्यथा
उन्मुक्त,आनन्दित, उच्छ्वास सह अभिमान
पुत्र-जन्म घोषित-अघोषित परिणाम- सन्मान
अम्बर
उन्मुक्त,आनन्दित, उच्छ्वास सह अभिमान
पुत्र-जन्म घोषित-अघोषित परिणाम- सन्मान
अम्बर
मेरा सच
मेरा सच
मैं बिसमताओं से चिन्तित
आवाज़ करता हूँ बुलन्द
सोच से हैरान-परेशान
वातानुकूलित कमरे में बन्द
सवाल
मैं बिसमताओं से चिन्तित
आवाज़ करता हूँ बुलन्द
सोच से हैरान-परेशान
वातानुकूलित कमरे में बन्द
सवाल
दर्दे-ऐ-दिल बताना है
दर्दे-ऐ-दिल बताना है
खुद की बेरुखी पर
वह अगर एक बूंद आंसू बहाते
कसम खुदा की
हम गम का सागर पी जाते
खुद की वेवफाई
खुद की बेरुखी पर
वह अगर एक बूंद आंसू बहाते
कसम खुदा की
हम गम का सागर पी जाते
खुद की वेवफाई
भगवान का निवास
भगवान का निवास
वेद-पुराण के परिभाष
कण-कण में इश्वर का वास
जीव-निर्जीव सब में निवास
फिर स्वर्ग में, या वेकुंठ में
वेद-पुराण के परिभाष
कण-कण में इश्वर का वास
जीव-निर्जीव सब में निवास
फिर स्वर्ग में, या वेकुंठ में
दर्द निकला प्यार से
दर्द निकला प्यार से
मेरे दर्द भी अन्जाम है, मेरे नाकाम प्यार के
आखिर प्यार में दर्द ही तो मिला आप से
दर्द बहूत था
मेरे दर्द भी अन्जाम है, मेरे नाकाम प्यार के
आखिर प्यार में दर्द ही तो मिला आप से
दर्द बहूत था
सुधार सोच में
सुधार सोच में
लगे अन्दर कुछ खिसके धीरे से
दिमाग जब सुलगता गुस्से से
क्रोध का नतीजा अफ़सोस से
रोकिये इसे अपनी
लगे अन्दर कुछ खिसके धीरे से
दिमाग जब सुलगता गुस्से से
क्रोध का नतीजा अफ़सोस से
रोकिये इसे अपनी
भूख..एक सवाल ??
भूख..एक सवाल ??
बेजान सूनी आँखें, सुख गये आँसू,नज़र धुँधलाते
दाँत कसकर भींचे, "वे" भूख को अंतढ़ीयों में दबाते
"वे"
बेजान सूनी आँखें, सुख गये आँसू,नज़र धुँधलाते
दाँत कसकर भींचे, "वे" भूख को अंतढ़ीयों में दबाते
"वे"
मन की गति-प्रकृति
मन की गति-प्रकृति
जल-प्रपात की जल-धारा
बहे इधर-उधर
कभी तेज, कभी मंथर
मन की गति-प्रकृति
जल भरे बादल
गरजे या
जल-प्रपात की जल-धारा
बहे इधर-उधर
कभी तेज, कभी मंथर
मन की गति-प्रकृति
जल भरे बादल
गरजे या
प्रस्तुति जाने की
मेरी ज्योति मन्द पड़ गई समय की सौगत
उम्मीदे कर्पुर बन कर उड़ गई खुसबू बिखेर
बालों में सफेदी झलकने लग गई उम्र के
उम्मीदे कर्पुर बन कर उड़ गई खुसबू बिखेर
बालों में सफेदी झलकने लग गई उम्र के
कर्म प्रधान या भाग्य महान
कर्म प्रधान या भाग्य महान
कभी हंसाती, कभी रुलाती, कितने गुल खिलती हैं
अज़ब दास्ताँ है भाग्य की ,फिर भी इसी की चाहत
कभी हंसाती, कभी रुलाती, कितने गुल खिलती हैं
अज़ब दास्ताँ है भाग्य की ,फिर भी इसी की चाहत
नज्म बनाना है
नज्म बनाना है
अजब सा भरम मेरा, "बचकानी-सी ख़्वाहिश है "
लबों की थरथराहट "शब्दों" में दोहराना है
माशूक़ की जुल्फों
अजब सा भरम मेरा, "बचकानी-सी ख़्वाहिश है "
लबों की थरथराहट "शब्दों" में दोहराना है
माशूक़ की जुल्फों
यह कैसा समय आया ?
यह कैसा समय आया ?
अचरज भरा अद्भुत समय
बुनियादि परम्परायें
रेत की तरह अब ढहे |
हम सभी ठीक तभी
टुकड़ों-टुकड़ों में
अचरज भरा अद्भुत समय
बुनियादि परम्परायें
रेत की तरह अब ढहे |
हम सभी ठीक तभी
टुकड़ों-टुकड़ों में
सावन झरते नयन
सावन झरते नयन
सावन की रात ,तूफानी बरसात
नयनों से झरते नीर, बहे एक साथ
आँखों की पीढ़ा छिपाये दोनों हाथ,
सिसक-सिसक
सावन की रात ,तूफानी बरसात
नयनों से झरते नीर, बहे एक साथ
आँखों की पीढ़ा छिपाये दोनों हाथ,
सिसक-सिसक
मन-बादल सा
मन-बादल सा
मन में बसे ,अंतहीन गगन सम आचार
जिसका अंत-आदी का न कोई परापार,
जब छाये दुखी -दुर्बल सा कोई बिचार,
तब लगे
मन में बसे ,अंतहीन गगन सम आचार
जिसका अंत-आदी का न कोई परापार,
जब छाये दुखी -दुर्बल सा कोई बिचार,
तब लगे
दिल-की-नज्मे
दिल-की-नज्मे
ओ मेरे दिल-ए -नादान
चाहत है गुलाब की
पर काँटों से भरा है दामन |
ओ मेरे दिल-ए-अरमान
ओ मेरे दिल-ए -नादान
चाहत है गुलाब की
पर काँटों से भरा है दामन |
ओ मेरे दिल-ए-अरमान
वह और उनकी तस्वीर
वह और उनकी तस्वीर
तस्वीर से करते दीदार
वह बैठे मेरे पास ?
तस्वीर करे ना परिहास,
उनके नजर में उपहास-
मन को करता
तस्वीर से करते दीदार
वह बैठे मेरे पास ?
तस्वीर करे ना परिहास,
उनके नजर में उपहास-
मन को करता
मेघदूत
है मेघदूत
जब विरह- स्मृत-कर
श्रावन का हर दिन,
विरही के शोक से
सघन संगीत में पुंजीभूत
व्याकुलता में छिपा
जब विरह- स्मृत-कर
श्रावन का हर दिन,
विरही के शोक से
सघन संगीत में पुंजीभूत
व्याकुलता में छिपा
नहीं हो दूर हम से...
नहीं हो दूर हम से...
दूर रहते तुमसे, पर दूर कंहा रह पाते |
कहने के लिये दूर है,पर दूर नहीं दिल से,
आवाज देकर
दूर रहते तुमसे, पर दूर कंहा रह पाते |
कहने के लिये दूर है,पर दूर नहीं दिल से,
आवाज देकर
लोग मुझे कहते पागल
लोग मुझे कहते पागल
मेरे अपने लोग मुझे कहते पागल,
सोचता था व्यवस्था को दूंगा बदल !
इतनी हिम्मत भी नहीं करूँ
मेरे अपने लोग मुझे कहते पागल,
सोचता था व्यवस्था को दूंगा बदल !
इतनी हिम्मत भी नहीं करूँ
चाँद की है क्या मजाल ?......!!!
जब उनकी नज़र जो इनायत हुई हम पर,
सब की निगाहों मे मेरा ही वजूद छा गया...!
महफ़िल में आज सब की नजर हम पर,
जब से
सब की निगाहों मे मेरा ही वजूद छा गया...!
महफ़िल में आज सब की नजर हम पर,
जब से
चिट्ठी आई बेटे की
चिट्ठी आई बेटे की
तुम्हारे जाने के बाद
हर दिन खिड़की से बाहर तकाते
उम्मीदों की आश लगाये
मायूस होकर अब गुमशुम
तुम्हारे जाने के बाद
हर दिन खिड़की से बाहर तकाते
उम्मीदों की आश लगाये
मायूस होकर अब गुमशुम
मेरा देश-प्रेम
मेरा देश-प्रेम
मेरा देश
छब्बीस जनवरी,
पन्द्रह अगस्त,
खादी का कुर्ता और टोपी,
भारत का झंडा फहराके गाते,
बन्दे
मेरा देश
छब्बीस जनवरी,
पन्द्रह अगस्त,
खादी का कुर्ता और टोपी,
भारत का झंडा फहराके गाते,
बन्दे
रोटी का सवाल
रोटी का सवाल
आज एक बार,
रोटी का निवाला देखकर,
अन्दर आत्मा चीख उठी !
और निवाले को देखकर बोली-
इतनी सी बात का था बजूद
आज एक बार,
रोटी का निवाला देखकर,
अन्दर आत्मा चीख उठी !
और निवाले को देखकर बोली-
इतनी सी बात का था बजूद
रोटी का सवाल
रोटी का सवाल
आज एक बार,
रोटी का निवाला देखकर,
अन्दर आत्मा चीख उठी !
और निवाले को देखकर बोली-
इतनी सी बात का था बजूद
आज एक बार,
रोटी का निवाला देखकर,
अन्दर आत्मा चीख उठी !
और निवाले को देखकर बोली-
इतनी सी बात का था बजूद
नजरों से पिलाया गया........!!!
सूरज तो डूब गया रात के इंतजार मे और तन्हा रात आई,
दिल जले,कोफ़्त कैसा, रात बाकी, अभी तो चाँद निकला कंहा !
अभी रात
दिल जले,कोफ़्त कैसा, रात बाकी, अभी तो चाँद निकला कंहा !
अभी रात
बूढ़ा पेढ़,
मैं अपने आप को बूढ़े पेढ़ के साथ मिलाकर
सोचता हूँ, कितनी त्रासदी हैं उन बुजुर्गों की
जिन्हें अब बेकार का जंजाल
सोचता हूँ, कितनी त्रासदी हैं उन बुजुर्गों की
जिन्हें अब बेकार का जंजाल
जिन्दगी का फ़लसफ़ा
जिन्दगी का फ़लसफ़ा
"प्यार" ही जिन्दगी का शायद सही फ़लसफ़ा है ;
जो हर एक " जिंदादिल" जिन्दगी में बसता है ;
वैसे
"प्यार" ही जिन्दगी का शायद सही फ़लसफ़ा है ;
जो हर एक " जिंदादिल" जिन्दगी में बसता है ;
वैसे
इन्सानियत पर सवाल....?
इन्सानियत पर सवाल....?
सुना था "नेकी" कर और भूल जा !
किसी "ने" " की " और भूल गया;
मासूम सी जान को जंगल में छोड़ गया,
उसमे कोई
सुना था "नेकी" कर और भूल जा !
किसी "ने" " की " और भूल गया;
मासूम सी जान को जंगल में छोड़ गया,
उसमे कोई
कथा मेरे जीवन की !
कथा मेरे जीवन की !
अजाचित नियति से भाग्य मे जो दुख खिला,
संचित पीड़ा का अनचाहा उपहार जब मिला;
तढ़प गया हृदय, शांत
अजाचित नियति से भाग्य मे जो दुख खिला,
संचित पीड़ा का अनचाहा उपहार जब मिला;
तढ़प गया हृदय, शांत
अजन्मी कन्या का सवाल
अजन्मी कन्या का सवाल
मैं जन्म की चाहत में, तू ले आई"माँ"तेरी कोख मे,
बुलाया आपने प्यार से, किसी मिलन के क्षण
मैं जन्म की चाहत में, तू ले आई"माँ"तेरी कोख मे,
बुलाया आपने प्यार से, किसी मिलन के क्षण
अजन्मी कन्या का सवाल
अजन्मी कन्या का सवाल
मैं जन्म की चाहत में, तू ले आई"माँ"तेरी कोख मे,
बुलाया आपने प्यार से, किसी मिलन के क्षण
मैं जन्म की चाहत में, तू ले आई"माँ"तेरी कोख मे,
बुलाया आपने प्यार से, किसी मिलन के क्षण
सोमवार, 15 अक्टूबर 2012
कथा मेरे जीवन की !
कथा मेरे जीवन की !
अजाचित नियति से भाग्य मे जो दुख खिला,
संचित पीड़ा का अनचाहा उपहार जब मिला;
तढ़प गया हृदय, शांत
अजाचित नियति से भाग्य मे जो दुख खिला,
संचित पीड़ा का अनचाहा उपहार जब मिला;
तढ़प गया हृदय, शांत
इन्सानियत पर सवाल....?
इन्सानियत पर सवाल....?
सुना था "नेकी" कर और भूल जा !
किसी "ने" " की " और भूल गया;
मासूम सी जान को जंगल में छोड़ गया,
उसमे
सुना था "नेकी" कर और भूल जा !
किसी "ने" " की " और भूल गया;
मासूम सी जान को जंगल में छोड़ गया,
उसमे
क्षणिकायें - पश्चिमीकरण और राजनीति
पश्चिमीकरण
पश्चिमीकरण से कुछ्
हो रहा हो या न हो रहा हो,
पर पूरब की माताएं 'ममी'
और पिता ''डेड''अवश्य
हो रहे
पश्चिमीकरण से कुछ्
हो रहा हो या न हो रहा हो,
पर पूरब की माताएं 'ममी'
और पिता ''डेड''अवश्य
हो रहे
रविवार, 14 अक्टूबर 2012
संभावित कदम
मंहगाई रोकने के लिए
हर संभव कदम उठायेगी सरकार
वित्तमंत्री सोच समझकर कहते हैं।
सुरक्षा के सभी उपाय किये
हर संभव कदम उठायेगी सरकार
वित्तमंत्री सोच समझकर कहते हैं।
सुरक्षा के सभी उपाय किये
संभावित कदम
मंहगाई रोकने के लिए
हर संभव कदम उठायेगी सरकार
वित्तमंत्री सोच समझकर कहते हैं।
सुरक्षा के सभी उपाय किये
हर संभव कदम उठायेगी सरकार
वित्तमंत्री सोच समझकर कहते हैं।
सुरक्षा के सभी उपाय किये
शनिवार, 13 अक्टूबर 2012
नज़र में आज तक मेरी कोई तुझसा नहीं निकला
नज़र में आज तक मेरी कोई तुझसा नहीं निकला
तेरे चेहरे के अन्दर दूसरा चेहरा नहीं निकला
कहीं मैं डूबने से
नज़र में आज तक मेरी कोई तुझसा नहीं निकला
नज़र में आज तक मेरी कोई तुझसा नहीं निकला
तेरे चेहरे के अन्दर दूसरा चेहरा नहीं निकला
कहीं मैं डूबने से
नज़र में आज तक मेरी कोई तुझसा नहीं निकला
नज़र में आज तक मेरी कोई तुझसा नहीं निकला
तेरे चेहरे के अन्दर दूसरा चेहरा नहीं निकला
कहीं मैं डूबने से
नज़र में आज तक मेरी कोई तुझसा नहीं निकला
नज़र में आज तक मेरी कोई तुझसा नहीं निकला
तेरे चेहरे के अन्दर दूसरा चेहरा नहीं निकला
कहीं मैं डूबने से
नज़र में आज तक मेरी कोई तुझसा नहीं निकला
नज़र में आज तक मेरी कोई तुझसा नहीं निकला
तेरे चेहरे के अन्दर दूसरा चेहरा नहीं निकला
कहीं मैं डूबने से
मौत
सब कुछ छुपा लेते हो सुन के हलकी सी आहट,
साफ दिखती मौत आने से पहले की घबराहट,
शाम को जाते हो सोने खोल दरवाजे के पट
रात
साफ दिखती मौत आने से पहले की घबराहट,
शाम को जाते हो सोने खोल दरवाजे के पट
रात
शुक्रवार, 12 अक्टूबर 2012
ईद का दिन है ख़ुशी मिल के मनाना होगा...
!! ग़ज़ल !!
ईद का दिन है ख़ुशी मिल के मनाना होगा !
सारे शिकवे गिले ऐ यार भुलाना होगा ||
रस्म-ए-उलफ़त वफ़ा दस्तूर
ईद का दिन है ख़ुशी मिल के मनाना होगा !
सारे शिकवे गिले ऐ यार भुलाना होगा ||
रस्म-ए-उलफ़त वफ़ा दस्तूर
ईद का दिन है ख़ुशी मिल के मनाना होगा...
!! ग़ज़ल !!
ईद का दिन है ख़ुशी मिल के मनाना होगा !
सारे शिकवे गिले ऐ यार भुलाना होगा ||
रस्म-ए-उलफ़त वफ़ा दस्तूर
ईद का दिन है ख़ुशी मिल के मनाना होगा !
सारे शिकवे गिले ऐ यार भुलाना होगा ||
रस्म-ए-उलफ़त वफ़ा दस्तूर
ईद का दिन है ख़ुशी मिल के मनाना होगा...
!! ग़ज़ल !!
ईद का दिन है ख़ुशी मिल के मनाना होगा !
सारे शिकवे गिले ऐ यार भुलाना होगा ||
रस्म-ए-उलफ़त वफ़ा दस्तूर
ईद का दिन है ख़ुशी मिल के मनाना होगा !
सारे शिकवे गिले ऐ यार भुलाना होगा ||
रस्म-ए-उलफ़त वफ़ा दस्तूर
हम दर -बदर की ठोकरे खाते चले गये.....[गज़ल]
ग़ज़ल !!...
हम दर- बदर की ठोकरे खाते चले गए !
फिर भी तराने प्यार के गाते चले गए !
कोशिश तो की भंवर ने डुबाने की
हम दर- बदर की ठोकरे खाते चले गए !
फिर भी तराने प्यार के गाते चले गए !
कोशिश तो की भंवर ने डुबाने की
हम दर -बदर की ठोकरे खाते चले गये.....[गज़ल]
ग़ज़ल
हम दर- बदर की ठोकरे खाते चले गए !
फिर भी तराने प्यार के गाते चले गए !
कोशिश तो की भंवर ने डुबाने की
हम दर- बदर की ठोकरे खाते चले गए !
फिर भी तराने प्यार के गाते चले गए !
कोशिश तो की भंवर ने डुबाने की
दो और क्षणिकायें
समस्या
ज्यों ही मैने कहा,
मेरे सामने एक समस्या
खडी हो गई है।
झट् वे बोले, बधाई हो,
शादी कर ली और बताया भी
ज्यों ही मैने कहा,
मेरे सामने एक समस्या
खडी हो गई है।
झट् वे बोले, बधाई हो,
शादी कर ली और बताया भी
जाती है दृष्टि जहाँ तक बादल धुएँ के देखता हूँ
"जाती है दृष्टि जहाँ तक बादल धुएँ के देखता हूँ
अर्चना के दीप से ही मन्दिर जलते देखता हूँ ।
देखता हूँ रात्रि से भी
अर्चना के दीप से ही मन्दिर जलते देखता हूँ ।
देखता हूँ रात्रि से भी
कितने बच्चे सोते हैं रोज़ रखकर पेट में लातें अपनी
कितने बच्चे सोते हैं रोज़ रखकर पेट में लातें अपनी
बना नहीं अभी कच्चा है कह देती है रोकर जननी ।
भोर हुए उठते हैं जब
बना नहीं अभी कच्चा है कह देती है रोकर जननी ।
भोर हुए उठते हैं जब
गुरुवार, 11 अक्टूबर 2012
बेबसी
सोते हुए भी जग रही हूँ मैं
ये किस भँवर में फंस रही हूँ मैं
अब तो नींद नही आती है रातों को
करवटें बदल-बदल कर थक रही हूँ
ये किस भँवर में फंस रही हूँ मैं
अब तो नींद नही आती है रातों को
करवटें बदल-बदल कर थक रही हूँ
बेबसी
सोते हुए भी जग रही हूँ मैं
ये किस भँवर में फंस रही हूँ मैं
अब तो नींद नही आती है रातों को
करवटें बदल-बदल कर थक रही हूँ
ये किस भँवर में फंस रही हूँ मैं
अब तो नींद नही आती है रातों को
करवटें बदल-बदल कर थक रही हूँ
बेबसी
सोते हुए भी जग रही हूँ मैं
ये किस भँवर में फंस रही हूँ मैं
अब तो नींद नही आती है रातों को
करवटें बदल-बदल कर थक रही हूँ
ये किस भँवर में फंस रही हूँ मैं
अब तो नींद नही आती है रातों को
करवटें बदल-बदल कर थक रही हूँ
इन्तेहा तक जाएगी....
ये इब्तेदा ही इन्तेहा तक जाएगी ,
कहानी न जाने कहाँ तक जाएगी ,
उम्मीद नहीं हमेशा यकीं था मुझे ,
अपनी हर दुआ खुदा तक
कहानी न जाने कहाँ तक जाएगी ,
उम्मीद नहीं हमेशा यकीं था मुझे ,
अपनी हर दुआ खुदा तक
मुझसे मज़बूत कोई दिवार लेके आओ....
खंजर लेके आओ तलवार लेके आओ ,
दो चार लेके आओ हज़ार लेके आओ ,
चीरना है अगर इस फौलाद का सीना ,
मुझसे मज़बूत कोई दिवार लेके
दो चार लेके आओ हज़ार लेके आओ ,
चीरना है अगर इस फौलाद का सीना ,
मुझसे मज़बूत कोई दिवार लेके
प्रेयसी
प्रेयसी
किताबो में मिलते थे जब प्रेम पत्र,
सामान जब मेरा रहता था अस्त व्यस्त,
नीद रातो को नयनो में आती न थी,
हसीं
किताबो में मिलते थे जब प्रेम पत्र,
सामान जब मेरा रहता था अस्त व्यस्त,
नीद रातो को नयनो में आती न थी,
हसीं
दो क्षणिकायें
प्लेटफार्म
प्लेटफार्म पर पति के ठण्ड
एवं पत्नी के प्रचण्ड काण्ड
के मध्य एनाउंस हुआ,
कपया यात्री गण इधर
प्लेटफार्म पर पति के ठण्ड
एवं पत्नी के प्रचण्ड काण्ड
के मध्य एनाउंस हुआ,
कपया यात्री गण इधर
Kavi Deepak Sharma ki Kavita kitab Falakdipti se
"जाती है दृष्टि जहाँ तक बादल धुएँ के देखता हूँ
अर्चना के दीप से ही मन्दिर जलते देखता हूँ ।
देखता हूँ रात्रि से भी
अर्चना के दीप से ही मन्दिर जलते देखता हूँ ।
देखता हूँ रात्रि से भी
Kavi Deepak Sharma ki Nazm
कितने बच्चे सोते हैं रोज़ रखकर पेट में लातें अपनी
बना नहीं अभी कच्चा है कह देती है रोकर जननी ।
भोर हुए उठते हैं जब
बना नहीं अभी कच्चा है कह देती है रोकर जननी ।
भोर हुए उठते हैं जब
राष्ट्रीय दामाद से पंगा? (व्यंग गीत)
राष्ट्रीय दामाद से पंगा? (व्यंग गीत)
अरे मूर्ख, राष्ट्रीय दामाद से क्यूँ लिया तुने पंगा..!
लगता है, `बनाना रिपब्लिक`
अरे मूर्ख, राष्ट्रीय दामाद से क्यूँ लिया तुने पंगा..!
लगता है, `बनाना रिपब्लिक`
कर्ज.....मा-बाप का
कर्ज .....
एक होटल मालिक ने बैरे को डान्टा,
धर दिया चान्टा,
बोला मूर्ख ये क्या करता है?
जो आदमी बिल नही भरता,
तू उसकी
एक होटल मालिक ने बैरे को डान्टा,
धर दिया चान्टा,
बोला मूर्ख ये क्या करता है?
जो आदमी बिल नही भरता,
तू उसकी
हमसफर है..
कौन कहता है गाफिल उम्र का तन्हा सफर है.
हर कोई बस असलियत से बेखबर है.
चाहे हो आपका गन्तव्य कोई, राह कोई.
सोचिये हर सफर
हर कोई बस असलियत से बेखबर है.
चाहे हो आपका गन्तव्य कोई, राह कोई.
सोचिये हर सफर
karzz ...... maa-baap ka
कर्ज .....
एक होटल मालिक ने बैरे को डान्टा,
धर दिया चान्टा,
बोला मूर्ख ये क्या करता है?
जो आदमी बिल नही भरता,
तू उसकी
एक होटल मालिक ने बैरे को डान्टा,
धर दिया चान्टा,
बोला मूर्ख ये क्या करता है?
जो आदमी बिल नही भरता,
तू उसकी
दिल के किनारे कुतर गया
एसा लगा जैसे कोई तूफा गुजर गया,
आखो के रास्ते मेरे दिल मे उतर गया,
शातिर है, हरकती है इतना यार हमारा,
चूहो की तरह
आखो के रास्ते मेरे दिल मे उतर गया,
शातिर है, हरकती है इतना यार हमारा,
चूहो की तरह
दिल के किनारे कुतर गया
एसा लगा जैसे कोई तूफा गुजर गया,
आखो के रास्ते मेरे दिल मे उतर गया,
शातिर है, हरकती है इतना यार हमारा,
चूहो की तरह
आखो के रास्ते मेरे दिल मे उतर गया,
शातिर है, हरकती है इतना यार हमारा,
चूहो की तरह
बुधवार, 10 अक्टूबर 2012
मेरे दिल कही और चल !! शायर सलीम रज़ा रीवा (म-प्र-)
मेरे दिल कही और चल !!
ज़माने मे तेरा ठिकना नही !!
वफा तू करेगा मिलेगी जफाये!!
जमाने की ऐसी लगी बद्दुआये!!
नजर
ज़माने मे तेरा ठिकना नही !!
वफा तू करेगा मिलेगी जफाये!!
जमाने की ऐसी लगी बद्दुआये!!
नजर
अपनी खता ना कोई गुनहगार हम नही [गजल]
APNI KHATA NA KOI GUNAHGAR HAM NAHI...
अपनी ख़ता ना कोई गुनहगार हम नही *
फिर क्यूं तेरी नज़र मे तेरा प्यार हम नही
.....
उनकी किसी भी बात से
अपनी ख़ता ना कोई गुनहगार हम नही *
फिर क्यूं तेरी नज़र मे तेरा प्यार हम नही
.....
उनकी किसी भी बात से
नफरत की आग ने यूँ दिलों जाँ जला दिया !
नफरत की आग ने यूँ दिलों जाँ जला दिया !
लोगो ने एक इंसा को शैतां बना दिया!!
जामें वफ़ा पे
लोगो ने एक इंसा को शैतां बना दिया!!
जामें वफ़ा पे
यूँ मजहबों में बंट के ना संसार बांटिये !ग़ज़ल]
!! ग़ज़ल !!
यूँ मजहबों में बंट के ना संसार बांटिये !
कुछ बांटना है आपको तो प्यार बांटिये !!
आंगन मे खून कि न बहे
यूँ मजहबों में बंट के ना संसार बांटिये !
कुछ बांटना है आपको तो प्यार बांटिये !!
आंगन मे खून कि न बहे
ये दिल है बेक़रार है मदीना बुलाइये [ नात-ए-मुबारक]
ये दिल है बेक़रार है मदीना बुलाइये ।।
है खुशनुमा बहार मदीना बुलाइये ।।
*
नबिओं के तुम नबी हो खुदा
है खुशनुमा बहार मदीना बुलाइये ।।
*
नबिओं के तुम नबी हो खुदा
छोड कर दर तेरा हम किधर जाएंगे [नात-ए-मुबारक़]
छोड कर दर तेरा हम किधर जाएंगे ,
बिन तेरे आंह भर- भर के मर जाएंगे ।
नाम ले-ले मुहम्मद का ऐ दिल मेरे ,
सारे
बिन तेरे आंह भर- भर के मर जाएंगे ।
नाम ले-ले मुहम्मद का ऐ दिल मेरे ,
सारे
ज़िन्दगी का सहारा मिले ना मिले । [ग़ज़ल]
ज़िन्दगी का सहारा मिले ना मिले
फिर तुम्हे साथ हमारा मिले ना मिले ॥
आजा तुमको गले से लगा लू सनम ,
इतनी
फिर तुम्हे साथ हमारा मिले ना मिले ॥
आजा तुमको गले से लगा लू सनम ,
इतनी
ज़िन्दगी अब रात रानी हो गई !! शायर सलीम रज़ा [ग़ज़ल]
ज़िन्दगी अब रात रानी हो गई !!
किस नज़र की मेहरबानी हो गई !!
.....
इब्त्दाए ज़िन्दगी की सुब्ह से !!
शाम तक पूरी कहानी
किस नज़र की मेहरबानी हो गई !!
.....
इब्त्दाए ज़िन्दगी की सुब्ह से !!
शाम तक पूरी कहानी
हम दर- बदर की ठोकरे खाते चले गए !
हम दर- बदर की ठोकरे खाते चले गए !
फिर भी तराने प्यार के गाते चले गए !
कोशिश तो की भंवर ने डुबाने की बार बार!
तूफां
फिर भी तराने प्यार के गाते चले गए !
कोशिश तो की भंवर ने डुबाने की बार बार!
तूफां
खून का चक्कर
भाई भाई प्रेम में बहुत बड़ा है मोह।
बहुएं आकरके सुनो करवाती हैं द्रोह।।
करवाती हैं द्रोह, मोह को तुड़वाती
बहुएं आकरके सुनो करवाती हैं द्रोह।।
करवाती हैं द्रोह, मोह को तुड़वाती
खून का चक्कर
भाई भाई प्रेम में बहुत बड़ा है मोह।
बहुएं आकरके सुनो करवाती हैं द्रोह।।
करवाती हैं द्रोह, मोह को तुड़वाती
बहुएं आकरके सुनो करवाती हैं द्रोह।।
करवाती हैं द्रोह, मोह को तुड़वाती
खून का चक्कर
भाई भाई प्रेम में बहुत बड़ा है मोह।
बहुएं आकरके सुनो करवाती हैं द्रोह।।
करवाती हैं द्रोह, मोह को तुड़वाती
बहुएं आकरके सुनो करवाती हैं द्रोह।।
करवाती हैं द्रोह, मोह को तुड़वाती
दशहरा को नहीं मारा गया रावण!
क्वार सुदी दशमी को नहीं मारा गया रावण!
‘‘विजया दशमी यानी क्वार सुदी दशहरा को रावण मारा गया।’’ यह महापर्व सदियों से
‘‘विजया दशमी यानी क्वार सुदी दशहरा को रावण मारा गया।’’ यह महापर्व सदियों से
दशहरा को नहीं मारा गया रावण!
क्वार सुदी दशमी को नहीं मारा गया रावण!
‘‘विजया दशमी यानी क्वार सुदी दशहरा को रावण मारा गया।’’ यह महापर्व सदियों से
‘‘विजया दशमी यानी क्वार सुदी दशहरा को रावण मारा गया।’’ यह महापर्व सदियों से
चतुर मदारी
घूम -घूमकर चतुर मदारी
दिखा रहा चहूओर तमाशा !
नाला -नलिया सडक- सडकिया
कही-कही पर पुल औ पुलिया
गढढे मे चल रही
दिखा रहा चहूओर तमाशा !
नाला -नलिया सडक- सडकिया
कही-कही पर पुल औ पुलिया
गढढे मे चल रही
मानचित्र पर सबकुछ अच्छे
रोते और विलखते बच्चे
उनके सारे दाबे
कच्चे !
नहीं पेट में हैं जब दाने
बच्चे घर से चले कमाने
मजबूरी
उनके सारे दाबे
कच्चे !
नहीं पेट में हैं जब दाने
बच्चे घर से चले कमाने
मजबूरी
मानचित्र पर सबकुछ अच्छे
रोते और विलखते बच्चे
उनके सारे दाबे
कच्चे !
नहीं पेट में हैं जब दाने
बच्चे घर से चले कमाने
मजबूरी
उनके सारे दाबे
कच्चे !
नहीं पेट में हैं जब दाने
बच्चे घर से चले कमाने
मजबूरी
राष्ट्रीय दामाद से पंगा? (व्यंग गीत)
In practice, a banana republic is a country operated as a commercial enterprise for private profit, effected by the collusion (मिलीभगत) between the State and favoured monopolies, whereby the profits derived from private exploitation of public lands is private property, and the debts
बेटिया
बेटिया तो एहसास होती है
माँ की ममता और पिता का प्यार होती है
कभी सुबह तो कभी शाम होती है
बेटिया तो एहसास होती है
माँ की ममता और पिता का प्यार होती है
कभी सुबह तो कभी शाम होती है
बेटिया तो एहसास होती है
मंगलवार, 9 अक्टूबर 2012
हम रास्ते की ठोकरे खाते चले गए !
हम रास्ते की ठोकरे खाते चले गए !
फिर भी तराने प्यार के गाते चले गए !
कोशिश तो की भंवर ने डुबाने की बार बार!
तूफां
फिर भी तराने प्यार के गाते चले गए !
कोशिश तो की भंवर ने डुबाने की बार बार!
तूफां
तू मेरे जिस्म के अन्दर है जिंदगी की तरह
तू मेरे जिस्म के अन्दर है जिंदगी की तरह !
ग़ज़ल की रूह में है तू ही शायरी की तरह !
तमाम उम्र समझता रहा जिसे अपना
ग़ज़ल की रूह में है तू ही शायरी की तरह !
तमाम उम्र समझता रहा जिसे अपना
तू मेरे जिस्म के अन्दर है जिंदगी की तरह
तू मेरे जिस्म के अन्दर है जिंदगी की तरह !
ग़ज़ल की रूह में है तू ही शायरी की तरह !
तमाम उम्र समझता रहा जिसे अपना
ग़ज़ल की रूह में है तू ही शायरी की तरह !
तमाम उम्र समझता रहा जिसे अपना
आइये मिलकर रोते है
आइये
हम सब मिलकर रोते है
भारत में
फैले भ्रष्टाचार पर
भारत में
किसानो की हत्या पर
आइये रोते हैं
सुरसा के मुंह
हम सब मिलकर रोते है
भारत में
फैले भ्रष्टाचार पर
भारत में
किसानो की हत्या पर
आइये रोते हैं
सुरसा के मुंह
कभी खुद को आज़माके देखेंगे....
इशारों से तुझको बुलाके देखेंगे ,
कभी खुद को आज़माके देखेंगे ,
पहुँचती है ये चिंगारी कहाँ तक ,
कभी दिल अपना जलाके
कभी खुद को आज़माके देखेंगे ,
पहुँचती है ये चिंगारी कहाँ तक ,
कभी दिल अपना जलाके
बडी मुश्कील से वो तय्यार हुआ है....
दामन मेरा भी अश्कबार हुआ है ,
जब जब कोई मेरा तलबगार हुआ है ,
जल्दी न गुज़र जाए ये शब कहीं ,
बड़ी मुश्कील से वो तय्यार
जब जब कोई मेरा तलबगार हुआ है ,
जल्दी न गुज़र जाए ये शब कहीं ,
बड़ी मुश्कील से वो तय्यार
सोमवार, 8 अक्टूबर 2012
चांद सूरज मे सितारो में तेरा नाम रहे ..गज़ल
गज़ल
जब भी चमके तो चमक तेरी सरे बाम रहे !
चाँद सूरज में सितारों में तेरा नाम रहे !
मेरी खुशहाली
जब भी चमके तो चमक तेरी सरे बाम रहे !
चाँद सूरज में सितारों में तेरा नाम रहे !
मेरी खुशहाली
चांद सूरज मे सितारो में तेरा नाम रहे ..गज़ल
गज़ल
जब भी चमके तो चमक तेरी सरे बाम रहे !
चाँद सूरज में सितारों में तेरा नाम रहे !
मेरी खुशहाली
जब भी चमके तो चमक तेरी सरे बाम रहे !
चाँद सूरज में सितारों में तेरा नाम रहे !
मेरी खुशहाली
चतुर मदारी
चतुर मदारी
..................
घूम -घूमकर चतुर मदारी
दिखा रहा चहूओर तमाशा !
नाला -नलिया सडक- सडकिया
कही-कही पर पुल औ
..................
घूम -घूमकर चतुर मदारी
दिखा रहा चहूओर तमाशा !
नाला -नलिया सडक- सडकिया
कही-कही पर पुल औ
चतुर मदारी
चतुर मदारी
..................
घूम -घूमकर चतुर मदारी
दिखा रहा चहूओर तमाशा !
नाला -नलिया सडक- सडकिया
कही-कही पर पुल औ
..................
घूम -घूमकर चतुर मदारी
दिखा रहा चहूओर तमाशा !
नाला -नलिया सडक- सडकिया
कही-कही पर पुल औ
चतुर मदारी
चतुर मदारी
..................
घूम -घूमकर चतुर मदारी
दिखा रहा चहूओर तमाशा !
नाला -नलिया सडक- सडकिया
कही-कही पर पुल औ
..................
घूम -घूमकर चतुर मदारी
दिखा रहा चहूओर तमाशा !
नाला -नलिया सडक- सडकिया
कही-कही पर पुल औ
आम सभा
(एक)
श श् श् श्...
सच बोलना मना है!
सरकारें नशे में हैं
खलल की सज़ा
जेल की सलाखें
या फिर
सजाये मौत
विकल्प आपका
श श् श् श्...
सच बोलना मना है!
सरकारें नशे में हैं
खलल की सज़ा
जेल की सलाखें
या फिर
सजाये मौत
विकल्प आपका
रविवार, 7 अक्टूबर 2012
कभी सोचा ना था
इस कदर इंतजार करना पड़ेगा तुम्हारा, ये किसे पता था,
इस कदर बेक़रार होना पड़ेगा, किसने सोचा था,
इस कदर याद आएगी
इस कदर बेक़रार होना पड़ेगा, किसने सोचा था,
इस कदर याद आएगी
कभी सोचा ना था
इस कदर इंतजार करना पड़ेगा तुम्हारा, ये किसे पता था,
इस कदर बेक़रार होना पड़ेगा, किसने सोचा था,
इस कदर याद आएगी
इस कदर बेक़रार होना पड़ेगा, किसने सोचा था,
इस कदर याद आएगी
Kabhi socha na tha
इस कदर इंतजार करना पड़ेगा तुम्हारा, ये किसे पता था,
इस कदर बेक़रार होना पड़ेगा, किसने सोचा था,
इस कदर याद आएगी
इस कदर बेक़रार होना पड़ेगा, किसने सोचा था,
इस कदर याद आएगी
Kabhi socha na tha
इस कदर इंतजार करना पड़ेगा तुम्हारा, ये किसे पता था,
इस कदर बेक़रार होना पड़ेगा, किसने सोचा था,
इस कदर याद आएगी
इस कदर बेक़रार होना पड़ेगा, किसने सोचा था,
इस कदर याद आएगी
Kabhi socha na tha
इस कदर इंतजार करना पड़ेगा तुम्हारा, ये किसे पता था,
इस कदर बेक़रार होना पड़ेगा, किसने सोचा था,
इस कदर याद आएगी
इस कदर बेक़रार होना पड़ेगा, किसने सोचा था,
इस कदर याद आएगी
हम गुलशन को 'शादाब' समझते रहे....
फरेब को हसीं ख्व़ाब समझते रहे ,
हम काँटों को गुलाब समझते रहे ,
हम दिल के पन्ने दिखाते रहे ,
वो चेहरे को किताब समझते
हम काँटों को गुलाब समझते रहे ,
हम दिल के पन्ने दिखाते रहे ,
वो चेहरे को किताब समझते
खुश्बू भी बन कर बिखरूंगा....
ज़रा चराग़ तो जल जाने दे ,
ज़रा शाम तो ढल जाने दे ,
खुश्बू भी बन कर बिखरूंगा ,
ज़रा खाक़ में तो मिल जाने दे
ज़रा शाम तो ढल जाने दे ,
खुश्बू भी बन कर बिखरूंगा ,
ज़रा खाक़ में तो मिल जाने दे
अगर मांग लें तो ज़माना मिल जाए....
दिल-ए-उम्मीद को ठिकाना मिल जाए ,
तुझसे मिलने का जो बहाना मिल जाए ,
जब माँगा नहीं तो इतना कुछ पाया ,
अगर मांग लें तो
तुझसे मिलने का जो बहाना मिल जाए ,
जब माँगा नहीं तो इतना कुछ पाया ,
अगर मांग लें तो
झुकना सभी के आगे मेरी शान नहीं है....
मरने का भी मुझको कोई अरमान नहीं है ,
पर जीना भी तेरे बगैर आसान नहीं है ,
मैं रूह तो छोड़ आया हूँ तेरी गली में ,
है
पर जीना भी तेरे बगैर आसान नहीं है ,
मैं रूह तो छोड़ आया हूँ तेरी गली में ,
है
वो हाथ पकड़ कर चलता है....
चराग़ उम्मीदों का जलता है ,
जब शाम फ़लक से ढलता है ,
जुदाई का ख़याल होगा भी कैसे ,
वो हाथ पकड़ कर चलता है
जब शाम फ़लक से ढलता है ,
जुदाई का ख़याल होगा भी कैसे ,
वो हाथ पकड़ कर चलता है
अजन्मी कन्या का सवाल
अजन्मी कन्या का सवाल
मैं जन्म की चाहत में, तू ले आई"माँ"तेरी कोख मे,
बुलाया आपने प्यार से, किसी मिलन के क्षण
मैं जन्म की चाहत में, तू ले आई"माँ"तेरी कोख मे,
बुलाया आपने प्यार से, किसी मिलन के क्षण
जिन्दगी का फ़लसफ़ा
जिन्दगी का फ़लसफ़ा
"प्यार" ही जिन्दगी का शायद सही फ़लसफ़ा है ;
जो हर एक " जिंदादिल" जिन्दगी में बसता है ;
वैसे
"प्यार" ही जिन्दगी का शायद सही फ़लसफ़ा है ;
जो हर एक " जिंदादिल" जिन्दगी में बसता है ;
वैसे
हाथ की लकीरें । (गीत)
सरगोशी कर रही है, हाथ की लकीरें,
लगता है, तुम यहीँ कहीँ आसपास हो..!
मुस्कुरा रही है, मेरे दिल की
लगता है, तुम यहीँ कहीँ आसपास हो..!
मुस्कुरा रही है, मेरे दिल की
शनिवार, 6 अक्टूबर 2012
प्रारंभ ही विजय का जब सूत्रधार है
प्रारंभ ही विजय का जब सूत्रधार है
चंद्र की कला अपरंपार है
अरूणिय लालिमा
वातावरण को सुंदर बनाती है
शशी की शीतलता
चंद्र की कला अपरंपार है
अरूणिय लालिमा
वातावरण को सुंदर बनाती है
शशी की शीतलता
शुक्रवार, 5 अक्टूबर 2012
गम
जख्म सीने दो मुझे
गम मे जीने दो मुझे
आहट अगर सुख की आए
तो डर लगता है
गम मे जीने दो मुझे
मय को पीने दो मुझे
बेवफा
गम मे जीने दो मुझे
आहट अगर सुख की आए
तो डर लगता है
गम मे जीने दो मुझे
मय को पीने दो मुझे
बेवफा
गम
जख्म सीने दो मुझे
गम मे जीने दो मुझे
आहट अगर सुख की आए
तो डर लगता है
गम मे जीने दो मुझे
मय को पीने दो मुझे
बेवफा
गम मे जीने दो मुझे
आहट अगर सुख की आए
तो डर लगता है
गम मे जीने दो मुझे
मय को पीने दो मुझे
बेवफा
आकार
आँधियाँ आती हैं
कुछ कण ओर त्रनो को
उड़ाकर ले जाती है..
कूच्छ कण ओर त्रृण
को वापस ले आती है
कुछ को वही. छोड जाती है
उन
कुछ कण ओर त्रनो को
उड़ाकर ले जाती है..
कूच्छ कण ओर त्रृण
को वापस ले आती है
कुछ को वही. छोड जाती है
उन
आकार
आँधियाँ आती हैं
कुछ कण ओर त्रनो को
उड़ाकर ले जाती है..
कूच्छ कण ओर त्रृण
को वापस ले आती है
कुछ को वही. छोड जाती है
उन
कुछ कण ओर त्रनो को
उड़ाकर ले जाती है..
कूच्छ कण ओर त्रृण
को वापस ले आती है
कुछ को वही. छोड जाती है
उन
आकार
आँधियाँ आती हैं
कुछ कण ओर त्रनो को
उड़ाकर ले जाती है..
कूच्छ कण ओर त्रृण
को वापस ले आती है
कुछ को वही. छोड जाती है
उन
कुछ कण ओर त्रनो को
उड़ाकर ले जाती है..
कूच्छ कण ओर त्रृण
को वापस ले आती है
कुछ को वही. छोड जाती है
उन
आकार
आँधियाँ आती हैं
कुछ कण ओर त्रनो को
उड़ाकर ले जाती है..
कूच्छ कण ओर त्रृण
को वापस ले आती है
कुछ को वही. छोड जाती है
उन
कुछ कण ओर त्रनो को
उड़ाकर ले जाती है..
कूच्छ कण ओर त्रृण
को वापस ले आती है
कुछ को वही. छोड जाती है
उन
तेरी चाहतों को
तेरी चाहतों को अपने दिल में दबाकर
तेरी यादों को अपना बनाए हुए हैं
अरे बेखबर जरा देखो इधर भी
तुम्हारे ही गम के
तेरी यादों को अपना बनाए हुए हैं
अरे बेखबर जरा देखो इधर भी
तुम्हारे ही गम के
ऐसा कोई धाम बता दो.
ऐसा कोई धाम बता दो.
ऐसा कोई धाम बता दो,
जहाँ न हों घनश्याम बता दो।
कण - कण में वो रमा हुआ है,
उसके बल जग
ऐसा कोई धाम बता दो,
जहाँ न हों घनश्याम बता दो।
कण - कण में वो रमा हुआ है,
उसके बल जग
गुरुवार, 4 अक्टूबर 2012
हैं प्यार में नाकारा......!!!
हैं प्यार में नाकारा......!!!
इल्जाम है हम जिन्दगी मे अब किसी काम के ना रहे,;
क्या जरुरत थी "हुश्न दीदार" से हमें नाकारा
इल्जाम है हम जिन्दगी मे अब किसी काम के ना रहे,;
क्या जरुरत थी "हुश्न दीदार" से हमें नाकारा
आरजू थी दास्ताँ लिखेंगे.......!!
आरजू थी दास्ताँ लिखेंगे.......!!
आरजू थी, मोहब्बत का पैगाम लिखेंगे ;
तन्हाई मे कैसे गुजरी रात वो दास्ताँ लिखेंगे
आरजू थी, मोहब्बत का पैगाम लिखेंगे ;
तन्हाई मे कैसे गुजरी रात वो दास्ताँ लिखेंगे
धढ़के- यादे बन उन के दिल मे !!!
धढ़के- यादे बन उन के दिल मे !!!
पथ्थर की चट्टानों को चीर कर निकलता है दरिया,
सनम पथ्थर दिल से "आह" की भी है
पथ्थर की चट्टानों को चीर कर निकलता है दरिया,
सनम पथ्थर दिल से "आह" की भी है
तेरी चाहतों को
तेरी चाहतों को अपने दिल में दबाकर
तेरी यादों को अपना बनाए हुए हैं
अरे बेखबर जरा देखो इधर भी
तुम्हारे ही गम के
तेरी यादों को अपना बनाए हुए हैं
अरे बेखबर जरा देखो इधर भी
तुम्हारे ही गम के
क्षणिकायें
समस्या
ज्यों ही मैने कहा,
मेरे सामने एक
समस्या खडी हो गई है।
वे झट बोले
बधाई हो शादी कर ली,
और बताया भी
ज्यों ही मैने कहा,
मेरे सामने एक
समस्या खडी हो गई है।
वे झट बोले
बधाई हो शादी कर ली,
और बताया भी
उतरा है इक इक करके दिल में इस तरह
Utra Hai Ik Ik Kar Ke Dil Mei'n.......Is tarha
Uske Zehan Me Seedhiya'n Ho Beshumaar
उतरा है इक इक करके दिल में इस तरह
उसके ज़ेहन में सीढियाँ हों
Uske Zehan Me Seedhiya'n Ho Beshumaar
उतरा है इक इक करके दिल में इस तरह
उसके ज़ेहन में सीढियाँ हों
बुधवार, 3 अक्टूबर 2012
मुश्किलों में दिल के भी रिश्ते पुराने हो गए.... [गज़ल]
मुश्किलों में दिल के भी रिश्ते पुराने हो गए ।
ग़ैर से गिला है क्या जब अपने बेगाने हो गए
ग़ैर से गिला है क्या जब अपने बेगाने हो गए
ज़िन्दगी का सहारा मिले ना मिले । [ग़ज़ल]
ज़िन्दगी का सहारा मिले ना मिले
फिर तुम्हे साथ हमारा मिले ना मिले ॥
आजा तुमको गले से लगा लू सनम ,
इतनी
फिर तुम्हे साथ हमारा मिले ना मिले ॥
आजा तुमको गले से लगा लू सनम ,
इतनी
ज़िन्दगी अब रात रानी हो गई !! शायर सलीम रज़ा [ग़ज़ल]
ज़िन्दगी अब रात रानी हो गई !!
किस नज़र की मेहरबानी हो गई !!
.....
इब्त्दाए ज़िन्दगी की सुब्ह से !!
शाम तक पूरी कहानी
किस नज़र की मेहरबानी हो गई !!
.....
इब्त्दाए ज़िन्दगी की सुब्ह से !!
शाम तक पूरी कहानी
लगते हो क्यूं ख़फा ख़फा ऐसा हुआ है क्या!
लगते हो क्यूं ख़फा ख़फा ऐसा हुआ है क्या!
ऐ मेहरबां बता दे हमारी ख़ता है क्या !!
.....
चेहरा है उतरा उतरा आखें बुझी बुझी
ऐ मेहरबां बता दे हमारी ख़ता है क्या !!
.....
चेहरा है उतरा उतरा आखें बुझी बुझी
दूर जितना वो मुझसे जाएंगें !! ग़ज़ल !!
दूर जितना ही मुझसे जाएंगे !!
मुझको उतना क़रीब पाएँगे !!
.....
कुछ न होगा तो आंख नम होगी!!
दोस्त बिछड़े जो याद आएंगे
मुझको उतना क़रीब पाएँगे !!
.....
कुछ न होगा तो आंख नम होगी!!
दोस्त बिछड़े जो याद आएंगे
यूँ मजहबों में बंट के ना संसार बांटिये !ग़ज़ल]
!! ग़ज़ल !!
यूँ मजहबों में बंट के ना संसार बांटिये !
कुछ बांटना है आपको तो प्यार बांटिये !!
आंगन मे खून कि न बहे
यूँ मजहबों में बंट के ना संसार बांटिये !
कुछ बांटना है आपको तो प्यार बांटिये !!
आंगन मे खून कि न बहे
यूँ मजहबों में बंट के ना संसार बांटिये !ग़ज़ल]
!! ग़ज़ल !!
यूँ मजहबों में बंट के ना संसार बांटिये !
कुछ बांटना है आपको तो प्यार बांटिये !!
आंगन मे खून कि न बहे
यूँ मजहबों में बंट के ना संसार बांटिये !
कुछ बांटना है आपको तो प्यार बांटिये !!
आंगन मे खून कि न बहे
मंगलवार, 2 अक्टूबर 2012
गुज़रता रहा इस उम्र का कारवाँ जब तक
गुज़रता रहा इस उम्र का कारवाँ जब तक
तेरी इन्तिजारों में रही जिंदगी तब तक
Guzarta raha is um'r ka kaarwa'n jab tak
teri intizaaro'n me rahi.....zindagi tab tak
~ Sanjeev
तेरी इन्तिजारों में रही जिंदगी तब तक
Guzarta raha is um'r ka kaarwa'n jab tak
teri intizaaro'n me rahi.....zindagi tab tak
~ Sanjeev
सदी के नायक
याद कर रहा आज पुनि, बापू तुमको देश।
दीन दलित के लिए ही, धरा फकीरी वेश।।
धरा फकीरी वेश, जलाये वश्त्र विदेशी।
जन मन
दीन दलित के लिए ही, धरा फकीरी वेश।।
धरा फकीरी वेश, जलाये वश्त्र विदेशी।
जन मन
सोमवार, 1 अक्टूबर 2012
मानचित्र पर सब कुछ अच्छे
रोते और बिलखते बच्चे
सरकारी दावे सब कच्चे
नही पेट मे है जब दाने
बच्चे घर से चले कमाने
मजबूरी मे पाते
सरकारी दावे सब कच्चे
नही पेट मे है जब दाने
बच्चे घर से चले कमाने
मजबूरी मे पाते
मानचित्र पर सब कुछ अच्छे
रोते और बिलखते बच्चे
सरकारी दावे सब कच्चे
नही पेट मे है जब दाने
बच्चे घर से चले कमाने
मजबूरी मे पाते
सरकारी दावे सब कच्चे
नही पेट मे है जब दाने
बच्चे घर से चले कमाने
मजबूरी मे पाते
गाँधीगिरी
गाँधी जी
जिन्हे भूल चुके थे लोग
आज उनके विचारों की देश को जरूरत है
सत्य और अहिंसा का विचार
कितना खूबसूरत है
इन्ही
जिन्हे भूल चुके थे लोग
आज उनके विचारों की देश को जरूरत है
सत्य और अहिंसा का विचार
कितना खूबसूरत है
इन्ही
गाँधीगिरी
गाँधी जी
जिन्हे भूल चुके थे लोग
आज उनके विचारों की देश को जरूरत है
सत्य और अहिंसा का विचार
कितना खूबसूरत है
इन्ही
जिन्हे भूल चुके थे लोग
आज उनके विचारों की देश को जरूरत है
सत्य और अहिंसा का विचार
कितना खूबसूरत है
इन्ही
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