उन्होने तमन्नाओं को पूरा कर लिया,
मुझे नही है उनसे कोई भी शिकवा।
किसी के वादों से बधां मजबूर हूं,
उन्हें लगता है शायद कमजोर हूं।
बड़ो का आदर, छोटों का सम्मान सिखाया है,
मेरे परिवार ने मुझे, ये सब बताया है।
हर क्रिया की प्रतिक्रिया, हम भी दे सकते हैं,
जान हथेली पर हमेशा हम भी रखते हैं।
उम्र का लिहाज करके, इस बार सह गया,
चेहरे पर मुस्कान लाकर, क्रोध पी गया।
लगता है मंजिल से, ज्यादा नही दूर हूं।
किसी के वादों से बधां मजबूर हूं,
उन्हें लगता है शायद कमजोर हूं।
दुआ खुदा से है, गलती न दोहराए,
रोष में आकर कही, हम अपना आपा न खो जाएं
तोड़ दूंगा इस बार, वादों की वो जंजीर,
खुद लिख दूंगा, अपनी सोई हुई तकदीर।
परवाह नही है जमाने की, न जीने की है चाहत,
चल देगें उस रास्ते पर, जिसमें दो पल की है राहत।
दिल पर लगे जख्मों का, मै तो नासूर हूं,
उन्हें लगता है मैं शायद कमजोर हूं।
किसी के वादों से बधां मै तो मजबूर हूं,
रवि श्रीवास्तव
Email –ravi21dec1987@gmail.com
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