माहताब उतरता देखा
है हमने रातों में
नूर भी चमकता देखा
उसकी प्यारी आँखों मे
अध्कोपल सी अधूरी अंजुली
छलक आई सौगातों मे
वीणा सी बज़ती है वन मे
लुटते मोती मुस्कानों मे
छितिज तक रंग उड़ाती
उड़ती तितली बागानों मे
घर भी अब घर बन जाये
लौट आये जो मकानो में
ताज़ी जैसे धरा हो जाये
सावन की बरसातों में
रूबरू जन्नत हो जाये
आए नन्ही कली जो हाथो में
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