ढूँढ़ती हुई उसकी आँखें एक बूंद पसीने मे अपनी परछाईं के जीवित होने का और उन्ही लम्हों की इच्छाएं बंधन मुक्त हो कर गर्म शिलालेख पर जुदाई की तडप मे जलती लौ की भावनाओं का अहसास……………गोविंद ओझा
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