जल से ही जग जीवित है।
जल हर श्वांस में नीहित है।
मनुष्य नहीं देवों को ज्ञान
शिव जटा में गंगजल शोभित है।
पंचतत्व में है सर्वश्रेष्ठ जल
प्रकृति की ममता का आँचल।
उपहार स्वरुप जो प्राप्त हुआ
एक बूँद का संचय,भविष्य उज्वल।
हरियाली का स्वागत करते
बंज़र धरती होने से डरते।
भयावह है दृश्य जल बिन
फिर क्यूं न जल संचय करते?
जीव-जन्तु निर्भर हैं जल पर
जल नहीं तो किसके बल पर।
अभी आलस्य में व्यर्थ गंवाते
फिर पश्चाताप करोगे कल पर।
उठो जागो जग जागरूक करो
जल से जलकर न आह भरो।
सृष्टि की है आधार शिला जल
जल का दोहन सीमित करो।
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