!!! मुक्तक
!!!
करो स्वीकार आलोचनाओ को
इनसे बेहतरी का सलीका मिलता है
ये तो दस्तूर है इस दुनिया का
काँटों बिन गुलाब कहाँ खिलता है __________( १ )तन की सुंदरता नहीं किसी काम की
सम्मान तो उत्तम विचारो को मिलता है
करो श्रृंगार अपने अंतर्मन मन का
कमल भी तो सदैव कीचड़ में खिलता है ______( २ )खूब करो दिखावे की पूजा, आरती
फल तो अपने कर्मो का मिलता है
क्यों खोजते हो रब को काबा, काशी
भगवान तो अपने बुजर्गो में मिलता है ______( ३ )जज्बा बहुत जरुरी है मंजिल पाने के लिए
किस्मत के भरोसे कहाँ कुछ मिलता है
कर्मशील खोज लेते है सागर में मोती
वरना कुए पे बैठा भी प्यासा मिलता है ______ ( ४ )अच्छा - बुरा सब समझ का फेर
वक़्त का पहिया तो चलता जाता है
कद्र करो हर एक पल की जीवन में
गुजरा लम्हा फिर कहाँ लौटकर आता है _________ ( ५ )लाखो कोटि योनि दुनिया में जीवन पाने की
इंसान रूप कहाँ इतना आसानी से मिलता है
करो सम्मान मात - पिता, गुरु और बड़ो का
इनके आशीषों से ज्ञान का खजाना मिलता है________( ६ )!
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!डी. के. निवातियाँ ______@@@
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