मेरे वतन की रीत निराली क्या कहिये सोच मेरे समाज की रस्मो रिवाज़ की रीती पुरानी क्या खूब हमने प्रथा चलायी कोई लेने में शान समझता है कीमत का बिल्ला चस्पा कर डी. के. निवातियाँ ________@@@
जहां सड़को पे भगवान बिकता है
इन्सनियत का कोई मोल नहीं
यहां वस्तुओ की तरह वर बिकता है
हर घर में नजारा खूब दिखता है
बेटे की लिए बजते ढोल नगाड़े
बेटी के नाम सन्नाटा मिलता है
शादी के नाम तमाशा अजब दिखता है
दुल्हन बनी एक उपहार की वस्तु
लाखो करोडो की कीमत में दूल्हा मिलता है
दे कन्या को दान बाप जीवनभर गुलाम बनता है
कोई खुश होता पाकर मुफ्त में दौलत
किसी का दहेज़ के नाम पर घर बिकता है
कोई देने में शान समझता है
झूठी शान के लिए सब चक्कर चलता है
दिखावे की इस दुनिया में हर इंसान पिस्ता है
देखो सरे बाजार नर बिकता है
लालच खोरो को इस मंडी में
वस्तुओ की तरह वर बिकता है -2
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मंगलवार, 17 मार्च 2015
वर बिकता है
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