वो सुबह कभी तो आयेगी।
धनिया धनवन्ती जी बनकर
झाड़ू पोंछा बर्तन तजकर
बन कर सुशिक्षिता गाँवों में
अपना उद्योग चलायेगी।
वो सुबह कभी तो आयेगी।
कोई न किसी का चर होगा
मजदूर कृषक साक्षर होगा
जब रधिया कोरे कागज पर
अंगूठा नहीं लगायेगी ।
वो सुबह कभी तो आयेगी।
जब तजकर यह बंदूक राज
आतंकहीन होगा समाज
कोई गोली आकर गांधी का
सीना चीर न पायेगी ।
वो सुबह कभी तो आयेगी।
फिर मिल कर ईद मनाएंगे
होली के रंग जमायेंगे
जब मंदिर की बाहें मस्जिद को
हँसकर गले लगायेगी ।
वो सुबह कभी तो आयेगी।
सर्वत्र सहज शान्ति होगी
ना आन्दोलन क्रांति होगी
मिट जाएंगे सब भेदभाव
धरती ही स्वर्ग कहायेगी।
वो सुबह कभी तो आयेगी।
वो सुबह कभी तो आयेगी।
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