शुक्रवार, 1 मई 2015

माॅ, साब के वचन

स्याले घूरता है
आंखें नीची
करता है या…
बार बार माॅ साब की नजरों से बचता,
डरता
मौन ग़मज़दा बच्चा
सिर झुकाए
पढ़ रहा है बाबर,
गजनी और बच्चे काम पर जा रहे हैं कविता।
डरा सहमा बच्चा
आंखें गड़ाए बना रहा है
माॅ साब का चित्र,
नजरें बचाकर,
पढ़ रहा है गणित,
होम वर्क पूरी हो जाए
इसी माथा पच्ची में
ब्लैक बोर्ड से हटी नजर
माॅ साब उबल पड़े
स्याले नजरें कहां हैं तेरी,
रेड़ी ही लगाएगा,
अंड्डे ही बेचेगा।
आंखें नीची कर
कैसे घूर रहा है
तेरी…
एक ग्लास पानी झोक दिया छपाक,
आंखें मलता
देखने की कोशिश में
छू गई
बगल वाले की केहुनी
अबे
माॅ साब
मार रहा है
निकाली उन्होंने छड़ी
दे दना दन…।

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