”आओ चलें उस ओर”
जहाँ मानवता ना होवे कलंकित और न हो नफरत की डोर
आओ चलें उस ओर
जहाँ क्षमा दान हो और दया हो ना हो भीड़ और शोर
आओ चलें उस ओर
• जहाँ करवट लेता सूरज आता होती सुहानी भोर
पंछियों के कलरव से गूंजे गगन चहुँ ओर
आओ चलें उस ओर
• गागर सिर पर लिए चली गोरी पनघट को भोर
नांगर हाथ में लिए किसान चले खेत की ओर
आओ चलें उस ओर
• जहाँ गऊवों को लेकर ग्वाले जाएँ जंगल की ओर
जिस आँगन तुलसी का बिरवा और हों नन्द किशोर
आओ चलें उस ओर
• जहाँ सभ्यता]संस्कृति]प्रेम, भाईचारे का हो जोर
गूंजे खुशहाली के गीत और नाचें बन में मोर
आओ चलें उस ओर
शकुंतला तरार रायपुर (छत्तीसगढ़)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें