बाहर बारिस आ चुकी है
हवा भी तेज बह रही है
शायद तुफान आये
ये घर गिर न परे कहीं
बड़ी ही नाजुक स्थिति में है
दरअसल एक कुटियाँ है हमारी
गुजर बसर हो रहा था
बड़ी कठिनाई से ये जिंदगी हमारी
अजीब हालात थी
आज ये नहीं तो कल वो
सपने भी हम एक दायरे के
अंदर ही देखा करते थे
ये क्या….
छत से तो पानी टपक रहा है
तुफान भी तेज हो चुकी है
छत उड़ा ले न जाये कहीं
आँखों में नींद नहीं
दिल में भी घबड़ाहत
सोच रहे है
महलों में रहनेवाले के बारे में
चैन की नींद सो रहे होंगे अभी
एक तरफ महल तो
दूसरी तरफ कुटियाँ
कितना प्रभेद कितना अंतर
आखिर कब ठमता है
ये आँधी ये तुफान
हर दिन हर रात न जाने
किन किन तुफानों को झेलते है
हम जैसे गरीबें
तुफाने तो जरुरतमंदो के लिए
और जरुरते पैदा करती है
आह……………
ठम गयी बारिस टल गयी तुफां
राहत मिला
शायद नींद आ जाये
लेकिन…..
आज तो टला
कल क्या होगा
पता नहीं………..!
-किशोर कुमार दास
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