ए हवा तू कहीं मुझे दूर ले चल
फिजाए हो ऐसी
जहाँ मैं खुली साँस ले सकु
बहती हुई दरिया हो
या झिर झिर झरने
चारों तरफ जैसे
हरियाली ही हरियाली हो
चिड़ियाँ गुनगुनाती है तो लगे
जैसे गा रही हो कोई मधुर संगीत
पैर पौधे लहराये
उसी धुन में मगन हो
आसमाँ भी करे हसके स्वागत
धरती भी बिछाये अपना दामन
बिना कोई स्वार्थ के……….
दिल में कोहराम सा मचा है
शोरों से हुँ मैं परेशां
ए हवा तू कहीं मुझे दूर ले चल
जहाँ मुझे रात की चाँदनी
जिंदगी रोशोन करे
सुबह की रोशनी
नया आश दिखाये
जहाँ की हर रूत
मुझे अपनाए
मुझे खिलाए मुझे हसाए
मुझे बाहों में ले
और गौद में बिठाए
हर साँस में हो अपनापन
हर नजरियाँ हो रंगीन
दूरियाँ बन जाती है नजदिकीयाँ
सावन नहीं जैसे कोई
अमृत बरसती हो
ए हवा तू कहीं मुझे दूर ले चल….!
-किशोर कुमार दास
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