मनवा उड़ता जाए !
किस राह चले वो बेखबर
निडर उड़ता जाए !!
अनजानी, अनदेखी सूरत पर
क्यों मरता जाए !
मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा घूमे
रब को ढूंढ़ता जाए !!
उगते सूरज की किरण लिए
सपने बुनता जाए !
गर्दिशों के मंडराते बादलो में,
बेख़ौफ़ उड़ता जाए !!
विजय पताका लहराने निकला
हाथो के पंख फैलाये !
आसमाँ को कदमो में झुकाने,
तुफानो से लड़ता जाए !!
चला लिए नई उम्मीद, नई राह,
नए पथ पे बढ़ता जाए !
शर्त लगा कर मदमस्त पवन से
सपनो में रंग भरता जाए !!
हौसले हो जिसके बुलंद उसे डर कैसा
मुसीबतो से लड़ता जाए !
इरादे अडिग जिसके पर्वत जैसे अटल
भाग्य भी झुकता जाए !!
हसरतो के पंख लगाकर
मनवा उड़ता जाए !
किस राह चले वो बेखबर
निडर उड़ता जाए !!
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डी. के. निवातियाँ______@@@
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