ज़िन्दगी का फलसफा,
बहुत आसान लगता है,
ख़ुशी ओस की बूंद लगती है,
दुःख रेगिस्तान लगता है,
पत्ते पर ओस की बूंद,
सूरज के उगने तक रहती है,
हीरे जैसी चमकती है,
ज़िन्दगी की दौड़ – धूप,
सूरज के उगते ही शुरू हो जाती है,
जैसे दुःख के सागर में,
ज़िन्दगी झोंक दी जाती है,
क्यूँ ना हम ज़िन्दगी के,
हर पल को ओस की बूंद बना ले,
मन के रेगिस्तान में फूल खिला ले,
जब मन रेगिस्तान सा प्यासा हो जाये,
ओस की बूंद ढूंढ कर उसकी प्यास बुझाए |
बी.शिवानी
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