इस दुनिया में आ कर जीना होता है
कभी मर कर कभी जी कर हंसना होता है
हम अपने वक़्त के थपेड़ो को भी सहते है हंस कर
दूसरा जब गुजरे इन राहो पर तो भी देखते है हंस कर
रोता है जब इंसान एक दिन
कोई नहीं रोता उसके साथ उस दिन
हँसता है जब इंसान दस दिन
हँसते है सब मिलकर पंद्रह दिन
यह आंकड़ों की गिनती में फर्क कैसा है
इंसान इंसान में अंतर यह कैसा है
क्यों हँसते है शैतान हर पांच गज पर
क्यों नहीं मिलते इंसान हर एक गज पर
मुझे लगते है अच्छे पक्षी और जानवर
उनमे देखि है शर्म हर नस नस में
मनुष्य हो रहा है जानवर
पशु हो रहे है इंसान पग पग पर
इस दुनिया में आ कर जीना होता है
कभी मर कर कभी जी कर हंसना पड़ता है
कनक श्रीवास्तवा
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