{{ लेखनी }}
अजब तेरी कहानी, गजब तेरे खेल
लेखनी तेरे देखे, हमने रूप अनेक
उस वक़्त कितनी हसीन
तुमने पाया था रूप भगवान !
लिख सबकी जीवन गाथा
बनी थी साक्षी जीवन का प्रमाण !!
एक रूप में जब देखा मैंने,
आई थी मेरे हाथो प्रथम बार !
सीखा था तुमसे लिखना
बनी थी तुम मेरे जीवन का आधार !!
वो भी रूप अनोखा होता,
जब होती हो तुम गुरु के हाथ !
दुनिया में दिला देती
किसी को भी अपनी विशेष पहचान !!
एक मंजर मैंने तेरा वो भी देखा
बन जाती है किसी के दुष्कर्म से घृणा की पात्र !
न्यायधीश के हाथो में आकर,
“संयोगवश” धारण करे, करने को न्यायोचित उद्धार !!
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[ ……..डी. के. निवातियाँ……… ]
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