हाथो मे मेहन्दी लगाए,
शर्माके मुस्कुराए,
हर लड्की का था सपना,
आज वह सच हो गया।
हर समय वह सोचती है,
हर दम आन्खो से आसू पोछती है,
एक घर को छोडकर वह,
किसी और के घर मे उजाला फैलाने हेतु चली मुह मोड्कर वह।
सारी यादो को समेटते हुए,
वह चली छोडकर अपना मायके,
आसू खुशी के भी है, और घम के भी,
आखो मे है नमी।
वह घर बसाने चली है,
अपनी बातो से दूसरो को हसाने चली है,
सात रन्गो की डोली मे बैठकर,
सब को छोड गयी, अलविदा कह कर।
सम्मान करे सभी का,
चाहे वह बडा हो या छोटा,
किसी के सूने जहान को,
रन्गीन बनाने चली वह।
सात रन्गो की डोली,
ने बदल दी उसकी पूरी जिन्दगी,
बचपन मायके मे उसने गुजारा,
अब बुढापे मे उसका पति बनेगा उसका सहारा।
सन्सार वह यहा बसाती है,
खुशिया हर जगह फैलाती है,
सभी के साथ नम्रता से पेश आती है,
मन्दिर मे रोज पूजा करने जाती है।
दुआ करे वह सभी के लिए,
हर शाम जलाए दीये,
पति की करे पूजा,
उससे बढ्कर न कोई दूजा।
बस सेवा करे वह सबकी,
बनाए जन्नत, जिन्दगी,
प्यार करना कोई उससे सीखे,
कभी भी अपने परिवार को शर्मिन्दा न होने दे।
लक्ष्मी है वह घर की,
जानती है वह मुश्किले सबकी,
सुख-दुख मे हर समय दे साथ,
गले मे मन्गलसूत्र, माथे पर सिन्दूर लगाए, देती है बुजुर्गो को हाथ।
आशिर्वाद मिले बडो से,
प्यार मिले छोटो से,
सात रन्गो की डोली मे बैठकर,
मुस्कुराकर चली बसाने वह अपना घर।
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