पीड़ा ने अवतार लिया है
पीड़ा ने अवतार लिया है
मेरे इन नव गीतों में
आँसू को अधिकार मिला है
झरझर बहना गीतों में
चंचल चित्त है, शून्य चेतना
और भ्रमित है मन भी मेरा
पर पीड़ा का परिचय देकर
जीत रहा तू मन भी मेरा
पीड़ित मधुपों का है तब से
गुंजन मेरे गीतों में
पीड़ा ने अवतार लिया है
मेरे इन नव गीतों में
संताप मिला अभिशाप सहित
खुशी खुशी मैं ले आया
हुआ मुग्ध आँसू मोती से
चुन चुन झोली भर लाया
गँूथ रहा अब अश्रु मोती ही
अर्पित करने गीतों में
पीड़ा ने अवतार लिया है
मेरे इन नव गीतों में
कंपित अधर, कंठ विहीन मैं
शब्द भम है अति क्लेश में
पर रेखांकित तूने कर दी
अचल सुछवि काव्यवेश में
और तभी से बढ़ा दिया है
दर्प दर्द का गीतों में
पीड़ा ने अवतार लिया है
मेरे इन नव गीतों में
गोदी में ले, मैने चाहा
तुम कुछ गीत सुना जाते
पर पलना पीड़ा का देकर
आँखों आँसू छलकाये
आँसू का संसार तभी से
लुक-छिप रहता गीतों में
पीड़ा ने अवतार लिया है
मेरे इन नव गीतों में
नूतन परिचय हर पीड़न का
लगता अपना पहचाना
जीवित होता जिससे हर पल
पापकर्म में पछताना
माया मिथ्था का अहं सजा है
मेरे इन नव गीतों में
पीड़ा ने अवतार लिया है
मेरे इन नव गीतों में
सुनकर मेरे गीतों को तुम
आँसू जो जो भर लाये
भक्तिभाव से उनको चुनकर
मैंने गीत बना डाले
तब से बहती धारा तेरी
निर्मल हो इन गीतों में
पीड़ा ने अवतार लिया है
मेरे इन नव गीतों में
पीड़ा के सागर में उतरा
मेरे गीतों का सरगम
रहा सिसकता बैठ सिराहने
बनकर तू मेरा हमदम
तब से विवश वेदना ने भी
वास किया है गीतों में
पीड़ा ने अवतार लिया है
मेरे इन नव गीतों में
—- ——- —- भूपेंद्र कुमार दवे
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