मंगलवार, 31 जुलाई 2012
उदयाचल
जब भास्कर आते है खुशियों का दिप जलाते है !
जब भास्कर आते है अन्धकार भगाते है !!
जब सारथी अरुण क्रोध से लाल आता !
तब
जब भास्कर आते है अन्धकार भगाते है !!
जब सारथी अरुण क्रोध से लाल आता !
तब
उदयाचल
जब भास्कर आते है खुशियों का दिप जलाते है !
जब भास्कर आते है अन्धकार भगाते है !!
जब सारथी अरुण क्रोध से लाल आता !
तब
जब भास्कर आते है अन्धकार भगाते है !!
जब सारथी अरुण क्रोध से लाल आता !
तब
जब तुम थी...
जब तुम थी
और मै भी था
हवाएँ काफी सर्द थी
और
आज
पता नहीं हवाओं को क्या हो गया है
कितने ही घरों को खाक कर डाला
और मै भी था
हवाएँ काफी सर्द थी
और
आज
पता नहीं हवाओं को क्या हो गया है
कितने ही घरों को खाक कर डाला
पतझड़
जब वो नए पत्तों से भर देता है
पूरे पेड़ को ,
तभी वो आकर
सारे पत्तों को नोच डालता है
मानो
उसे ठूँठ की जिंदगी ही पसंद हो
पूरे पेड़ को ,
तभी वो आकर
सारे पत्तों को नोच डालता है
मानो
उसे ठूँठ की जिंदगी ही पसंद हो
बंधन
तुम मुझे बांधती गयी
और मैं
बंधता गया बिना किसी हिचकिचाहट के,
फिर अचानक एक दिन
चौंक उठा मैं
लगा जैसे, अभी-अभी
और मैं
बंधता गया बिना किसी हिचकिचाहट के,
फिर अचानक एक दिन
चौंक उठा मैं
लगा जैसे, अभी-अभी
बंधन
तुम मुझे बांधती गयी
और मैं
बंधता गया बिना किसी हिचकिचाहट के,
फिर अचानक एक दिन
चौंक उठा मैं
लगा जैसे, अभी-अभी
और मैं
बंधता गया बिना किसी हिचकिचाहट के,
फिर अचानक एक दिन
चौंक उठा मैं
लगा जैसे, अभी-अभी
बंधन
तुम मुझे बांधती गयी
और मैं
बंधता गया बिना किसी हिचकिचाहट के,
फिर अचानक एक दिन
चौंक उठा मैं
लगा जैसे, अभी-अभी
और मैं
बंधता गया बिना किसी हिचकिचाहट के,
फिर अचानक एक दिन
चौंक उठा मैं
लगा जैसे, अभी-अभी
बंधन
तुम मुझे बांधती गयी
और मैं
बंधता गया बिना किसी हिचकिचाहट के,
फिर अचानक एक दिन
चौंक उठा मैं
लगा जैसे, अभी-अभी
और मैं
बंधता गया बिना किसी हिचकिचाहट के,
फिर अचानक एक दिन
चौंक उठा मैं
लगा जैसे, अभी-अभी
फाइल के पन्नो में
देख दशा सड़क की ,
बायीं आंख फड़की ,
पहुँचा नगरपालिका भवन ,
कांप रहा था तन , वदन ,
फिर भी बोले ,शायद
बायीं आंख फड़की ,
पहुँचा नगरपालिका भवन ,
कांप रहा था तन , वदन ,
फिर भी बोले ,शायद
सोमवार, 30 जुलाई 2012
ASHISH
KAHI SISE KE CHILMAN MEN,
KAHIN ANKHON KE PANI MEN,
TERI AWAZ WO LAU HAI,
JO AATI BHI WIRANI MEN,
KABHI MAIN KHUD SE YE RUTHA ,
KABHI TUJHKO MANATA HUN,
TERI AAWAZ HI WO HAI JISE MAI
KAHIN ANKHON KE PANI MEN,
TERI AWAZ WO LAU HAI,
JO AATI BHI WIRANI MEN,
KABHI MAIN KHUD SE YE RUTHA ,
KABHI TUJHKO MANATA HUN,
TERI AAWAZ HI WO HAI JISE MAI
ASHISH
KAHI SISE KE CHILMAN MEN,
KAHIN ANKHON KE PANI MEN,
TERI AWAZ WO LAU HAI,
JO AATI BHI WIRANI MEN,
KABHI MAIN KHUD SE YE RUTHA ,
KABHI TUJHKO MANATA HUN,
TERI AAWAZ HI WO HAI JISE MAI
KAHIN ANKHON KE PANI MEN,
TERI AWAZ WO LAU HAI,
JO AATI BHI WIRANI MEN,
KABHI MAIN KHUD SE YE RUTHA ,
KABHI TUJHKO MANATA HUN,
TERI AAWAZ HI WO HAI JISE MAI
सपनो का घर
मेरे सपनो का घर सुन्दर तो नही लेकीन मेरे सपनो कि एक उम्मीद है !
चन्द ईटो से बना ये आशियाना यह मेरे सपनो कि मजबूत नीव
चन्द ईटो से बना ये आशियाना यह मेरे सपनो कि मजबूत नीव
नारी (एक बेबसी)
जब नारी ने जन्म लिया था !
अभिशाप ने उसको घेरा था !!
अभी ना थी वो समझदार !
लोगो ने समझा मनुषहार !!
उसकी मा थी लाचार !
लेकीन
अभिशाप ने उसको घेरा था !!
अभी ना थी वो समझदार !
लोगो ने समझा मनुषहार !!
उसकी मा थी लाचार !
लेकीन
नारी (एक बेबसी)
जब नारी ने जन्म लिया था !
अभिशाप ने उसको घेरा था !!
अभी ना थी वो समझदार !
लोगो ने समझा मनुषहार !!
उसकी मा थी लाचार !
लेकीन
अभिशाप ने उसको घेरा था !!
अभी ना थी वो समझदार !
लोगो ने समझा मनुषहार !!
उसकी मा थी लाचार !
लेकीन
नारी शक्ति
अब नारीयो ने भी लीया साहस से काम !
अपनी सन्घर्षता के बल पर कीया विश्व मे नाम !!
नारी कभी बनती है जननी कभी माता !
पुत्र
अपनी सन्घर्षता के बल पर कीया विश्व मे नाम !!
नारी कभी बनती है जननी कभी माता !
पुत्र
सपनो का घर
मेरे सपनो का घर सुन्दर तो नही लेकीन मेरे सपनो कि एक उम्मीद है !
चन्द ईटो से बना ये आशियाना यह मेरे सपनो कि मजबूत नीव
चन्द ईटो से बना ये आशियाना यह मेरे सपनो कि मजबूत नीव
नारी (एक बेबसी)
जब नारी ने जन्म लिया था !
अभिशाप ने उसको घेरा था !!
अभी ना थी वो समझदार !
लोगो ने समझा मनुषहार !!
उसकी मा थी लाचार !
लेकीन
अभिशाप ने उसको घेरा था !!
अभी ना थी वो समझदार !
लोगो ने समझा मनुषहार !!
उसकी मा थी लाचार !
लेकीन
सपनो का घर
मेरे सपनो का घर सुन्दर तो नही लेकीन मेरे सपनो कि एक उम्मीद है !
चन्द ईटो से बना ये आशियाना यह मेरे सपनो कि मजबूत नीव
चन्द ईटो से बना ये आशियाना यह मेरे सपनो कि मजबूत नीव
सपनो का घर
मेरे सपनो का घर सुन्दर तो नही लेकीन मेरे सपनो कि एक उम्मीद है !
चन्द ईटो से बना ये आशियाना यह मेरे सपनो कि मजबूत नीव
चन्द ईटो से बना ये आशियाना यह मेरे सपनो कि मजबूत नीव
हिन्दी पखवाडा
हिंदी है अपनी भाषा , इसकी शान बढाएंगे ,
सब भाषाए बहने इसकी ,
इसका मl न बदयेंगे l
तन में हिंदी , मन में
सब भाषाए बहने इसकी ,
इसका मl न बदयेंगे l
तन में हिंदी , मन में
आज़ादी के पचास वर्ष
पुरुष -सुन रे सजनी आज़ादी के बीते वर्ष पचास l
चारो तरफ बिखरी है खुशिया , लेकर नूतन हास l l
बीत गई पावस की
चारो तरफ बिखरी है खुशिया , लेकर नूतन हास l l
बीत गई पावस की
File ke panno me
देख दशा सड़क की ,
बायीं आंख फड़की ,
पहुँचा नगरपालिका भवन ,
कांप रहा था तन , वदन ,
फिर भी बोले ,शायद
File ke panno me
देख दशा सड़क की ,
बायीं आंख फड़की ,
पहुँचा नगरपालिका भवन ,
कांप रहा था तन , वदन ,
फिर भी बोले ,शायद
रविवार, 29 जुलाई 2012
पागल हू मैं
पागल हू मैं या नाम
पागल है मेरा
कल्पनाऐं करता हूँ सदा
विवेक मेरे पास है या कहीं दूर
अनजान हूँ इससे
जगता कभी
पागल है मेरा
कल्पनाऐं करता हूँ सदा
विवेक मेरे पास है या कहीं दूर
अनजान हूँ इससे
जगता कभी
नवबर्ष
फिर मची दुनिया मैं हलचल,
क्या बुरा हुआ, हुआ क्या भला;
बीते साल की चर्चा का बाज़ार चला
यह साल चला, नया है जो
क्या बुरा हुआ, हुआ क्या भला;
बीते साल की चर्चा का बाज़ार चला
यह साल चला, नया है जो
सोच ?
अब थक कर निढाल
अपने किये से बेहाल
बेठ अँधेरे कोने मैं
मकरी सा बुनता जाल
हर धांगो मैं खोज रहा
टूटे हुवे रिश्तों का
अपने किये से बेहाल
बेठ अँधेरे कोने मैं
मकरी सा बुनता जाल
हर धांगो मैं खोज रहा
टूटे हुवे रिश्तों का
.अश्क....
यह अश्क आँखों से जब निकलता है
या फिर दिल मैं जब उतर जाता है
न पता नस्तर सा कंही चुभ जाता है
हर ख़ुशी भी दर्दे ऐ दिल
या फिर दिल मैं जब उतर जाता है
न पता नस्तर सा कंही चुभ जाता है
हर ख़ुशी भी दर्दे ऐ दिल
मिलन
घनगोर कालि अमबश्या की रात
चांदनी को प्रतीक्षित है नई प्रभात
हर्षित मन, मन मैं मधुमास
भरा उल्लास, मिलन की आश
दिन
चांदनी को प्रतीक्षित है नई प्रभात
हर्षित मन, मन मैं मधुमास
भरा उल्लास, मिलन की आश
दिन
रिश्ते !-?-!
सुलगते रहते हैं सारी उम्र
कड़वा सच, बेबसी का
गुस्सा निगलते,चुप है, है जो शर्म
अबिवाहीत की तरह !
यह चिंगारी है मनके
कड़वा सच, बेबसी का
गुस्सा निगलते,चुप है, है जो शर्म
अबिवाहीत की तरह !
यह चिंगारी है मनके
जरा सी बात
आहट बारिश की जरा जरा सी,
आहट किसी की जरा जरा सी,
कही कोई आवाज़ जरा जरा सी,
आज नाउम्मीद है जरा जरा सी,
कल उम्मीद की बारिश
आहट किसी की जरा जरा सी,
कही कोई आवाज़ जरा जरा सी,
आज नाउम्मीद है जरा जरा सी,
कल उम्मीद की बारिश
कैसी होती कविता ?
कैसी होती है कबिता
वह जाये जिसमे छंदों की सरिता
भावों की लालिमा, दुखों की गीता
स्वप्नों के बादल, बिरह की
वह जाये जिसमे छंदों की सरिता
भावों की लालिमा, दुखों की गीता
स्वप्नों के बादल, बिरह की
कैसे करूं मैं आज कविता ?
छंदों से करदूं आँख मिचोली,
या लिख दूं कोई सुरीली बोली ...
शब्दों की लाली रच दूं,
या रंग दूं पेचीदा अक्षरों की होली
या लिख दूं कोई सुरीली बोली ...
शब्दों की लाली रच दूं,
या रंग दूं पेचीदा अक्षरों की होली
प्रेम
निश्चल प्रेम कैसा होता है
रातोमें जुगनू सा जगमगाता
चाँद को चांदनी से चमकता
जो हमें दिखाई नहीं देता
शायद हवा की
रातोमें जुगनू सा जगमगाता
चाँद को चांदनी से चमकता
जो हमें दिखाई नहीं देता
शायद हवा की
पल . . .
प्रिय ! तुम्हारे साथ के वह पल
या तुम्हारे बिना यह पल
दोनों पल, कैसे हैं ये पल ?
जला रहे हैं मुझे पल पल .
प्रिय !
या तुम्हारे बिना यह पल
दोनों पल, कैसे हैं ये पल ?
जला रहे हैं मुझे पल पल .
प्रिय !
मेरा बचपन . . .
मन की अधूरी राह में,
हर अधूरी चाह में,
हैं जो चिरंतर हाहाकार,
अंतर्मन का करून चीत्कार,
मुझे और जीने नहीं देता,
हर अधूरी चाह में,
हैं जो चिरंतर हाहाकार,
अंतर्मन का करून चीत्कार,
मुझे और जीने नहीं देता,
कल जो संजोया, खोकर अपना वर्तमान . . .
पढ़ लिखकर काबिल बनने घर छोढ़ चले
उजढ़ा चमन, पर है सपने उनके निराले,
नई उमीदें, नई आशाये, नई मंजिले
खुला आसमा, खुली
उजढ़ा चमन, पर है सपने उनके निराले,
नई उमीदें, नई आशाये, नई मंजिले
खुला आसमा, खुली
शनिवार, 28 जुलाई 2012
चोट अब भी लगती हैं, पर दर्द और होता नहीं . .
आंसू अब बहते नहीं,दिल अब रोता नहीं
गम के सागर मैं,मन अब बहता नहीं
हर गम एक सा ,नया है कुछ भी लगता नहीं
टूटे ड़ाल से
गम के सागर मैं,मन अब बहता नहीं
हर गम एक सा ,नया है कुछ भी लगता नहीं
टूटे ड़ाल से
कल
गुजरे हुवे कल पूछे कुछ ऐसे
कल अभी गुजरा कंहासे
फिर वापस आने की है जो बात
कल नहीं, आज भी हूँ साथ
हर एक कल मैं, आज
कल अभी गुजरा कंहासे
फिर वापस आने की है जो बात
कल नहीं, आज भी हूँ साथ
हर एक कल मैं, आज
बिदाई
बिदाई की अब बजने को है शहनाई
बिरह के सायों में यादो की परछाई
हर एक लम्हा ;हर एक स्पन्दन
बियोग के सुरों में ह्रदय का
बिरह के सायों में यादो की परछाई
हर एक लम्हा ;हर एक स्पन्दन
बियोग के सुरों में ह्रदय का
मन
आज मन हो गया उदास
कुछ नहीं,सिर्फ एहसास
कुछ भूली बिसरी यादें
मिलने बिछुढ़ने की बांते
टूटे हुवे स्वप्नों का
कुछ नहीं,सिर्फ एहसास
कुछ भूली बिसरी यादें
मिलने बिछुढ़ने की बांते
टूटे हुवे स्वप्नों का
उम्मीद
पथझढ़ के मौसम मैं
सूखे पत्तो पर हरियाली चाहिये
याद आये नहीं जीवन मैं
वक्त पढ़ा तो, उनको संवाद चाहिये
बिसरा
सूखे पत्तो पर हरियाली चाहिये
याद आये नहीं जीवन मैं
वक्त पढ़ा तो, उनको संवाद चाहिये
बिसरा
जिंदगी की परिभाषा
सहज जिंदगी की परिभाषा क्या है
यह मनोबैग्यानिक सवाल क्या है
जिसका सरल जवाब क्या है
कई तरह के बिचार, पर राय क्या
यह मनोबैग्यानिक सवाल क्या है
जिसका सरल जवाब क्या है
कई तरह के बिचार, पर राय क्या
हट के.....
चाह बस अब सबकी एक ही है, लगना है हट के,
गिरते पड़ते, लड़ते झगड़ते, भूले या भटके,
समुंदर में बहते, आसमान में उड़ते या
गिरते पड़ते, लड़ते झगड़ते, भूले या भटके,
समुंदर में बहते, आसमान में उड़ते या
तेरी यांदे
मयखाने में साकी जैसी
आँगन में तुलसी सी
गीता की वाणी-सी
बरगद की छाया-सी
सावन की बारिश जैसी
शीतल हवा
आँगन में तुलसी सी
गीता की वाणी-सी
बरगद की छाया-सी
सावन की बारिश जैसी
शीतल हवा
बिरह-बेदना
तेरे अश्रु जल से भरे नयन
सर्द हवा मैं जैसे भीगे मेरा तन
तेरे मूक अधरों के कंपन
गहरे तूफान सा बिचलित मेरा मन
तेरे
सर्द हवा मैं जैसे भीगे मेरा तन
तेरे मूक अधरों के कंपन
गहरे तूफान सा बिचलित मेरा मन
तेरे
बीता- वक़्त
सचमुच खोया वक़्त, सोये देर तक
इधर उधर की बांते, गप्पे देर तक
उम्र बढ़ गई, मायूसी दूर तक
जागे अब, अफसोश कंहा तक
लोग
इधर उधर की बांते, गप्पे देर तक
उम्र बढ़ गई, मायूसी दूर तक
जागे अब, अफसोश कंहा तक
लोग
रिश्ते अब निभते नहीं
रिश्ते अब निभते नहीं हमारे बीच
अबिस्वाश की आंखें
और कुढ़न वाली बांते
रिश्तों को जोढते जोढ़ते
चाहत ही टूट जाती
अबिस्वाश की आंखें
और कुढ़न वाली बांते
रिश्तों को जोढते जोढ़ते
चाहत ही टूट जाती
पिया मिलन की बात
सुनीसुनी सी रात, मन भीगा
याद आई तेरी, मन बहका,
आज मंज़र थे कुछ जालिम से
याद आये दिन वह मिलन के !
सावन के भीगी भीगी
याद आई तेरी, मन बहका,
आज मंज़र थे कुछ जालिम से
याद आये दिन वह मिलन के !
सावन के भीगी भीगी
तेरा प्यार...
रह गया मेरे पास...
तेरा प्यार, तेरी तकरार
बदन की खुशबु,
बालों की महक
अनबोले लम्बे कथन
अनचाही चहक
वह रुदन
कोशीश
तेरा प्यार, तेरी तकरार
बदन की खुशबु,
बालों की महक
अनबोले लम्बे कथन
अनचाही चहक
वह रुदन
कोशीश
लफ्ज.....
मैं ने मुफ्त का समझ लुटाया बेसुमार
जिस कल्पना के लिये एक लफ्ज काफी था
उसे सो-सो लफ्ज दिये बेकार
परायों की दुनिया
जिस कल्पना के लिये एक लफ्ज काफी था
उसे सो-सो लफ्ज दिये बेकार
परायों की दुनिया
जुदाई
हर रात के बाद रात आई
जख्म पर छिढ़का किसी ने नमक
कैसे सहें उनकी बेरुखाई
सुबह का बन्दा हुआ सफ़र
दर्द भरी यादों की
जख्म पर छिढ़का किसी ने नमक
कैसे सहें उनकी बेरुखाई
सुबह का बन्दा हुआ सफ़र
दर्द भरी यादों की
जलन
काफी नाम सुना था उनका,
ऊँचा ओहदा, मान, सन्मान
नाम जिनका अपने आप में रखे पहचान
उन के जरिये पहचान बनाने
उनके पास आश
ऊँचा ओहदा, मान, सन्मान
नाम जिनका अपने आप में रखे पहचान
उन के जरिये पहचान बनाने
उनके पास आश
स्वीकारोक्ति
मन ने कर लिया स्वीकार
जिंदगी तो अब यहही है
अब जोशे खून मद्धिम हो चला
जब जीबन अंत की और चला
एक धुंदली सी परछाई छोढ़
जिंदगी तो अब यहही है
अब जोशे खून मद्धिम हो चला
जब जीबन अंत की और चला
एक धुंदली सी परछाई छोढ़
सावन बरसे नयनों में
बरसात के दिनों में
छाये बादल अम्बर में
रिमझिम बरसे पानी में
धरती शीतल शिहरण में
मिलन के आलिंगन में
महक गई फिजा
छाये बादल अम्बर में
रिमझिम बरसे पानी में
धरती शीतल शिहरण में
मिलन के आलिंगन में
महक गई फिजा
ब्याकुल मन
काहे मन मोरे ब्याकुल तुम अपार
भटके दर-वक्त-दर, चिन्ता भरा संसार
कभी घर की उलझन,कभी संतानों का भार
कभी धन का अभाव,
भटके दर-वक्त-दर, चिन्ता भरा संसार
कभी घर की उलझन,कभी संतानों का भार
कभी धन का अभाव,
अंतरद्वन्द
घर के पीछे का पीपल का पेढ़
जिसके भूरे-पीले तने में
मोटे-मोटे धब्बे,भद्दी-भद्दी धांरियां
समय की मार से हो
जिसके भूरे-पीले तने में
मोटे-मोटे धब्बे,भद्दी-भद्दी धांरियां
समय की मार से हो
समय के साथ चले
समय के साथ चले
सुख, दुःख, प्यार और जलन
यह दौर कब तक झेले
ख़ुद में मगन, वक़्त कैसे निकले
अपने किये जुल़्म खुद
सुख, दुःख, प्यार और जलन
यह दौर कब तक झेले
ख़ुद में मगन, वक़्त कैसे निकले
अपने किये जुल़्म खुद
कन्या-जनम
पुत्र जनम शुभ, कन्या जनम कष्टकारी,
करे भेद-भाव, सब बिधि, अबिवेक-अबिचारी
न जानत, जननी रूप कन्या की छबी न्यारी
ध्यान
करे भेद-भाव, सब बिधि, अबिवेक-अबिचारी
न जानत, जननी रूप कन्या की छबी न्यारी
ध्यान
नाकाम मोह्हबत
छोटी सी बात कर देगी जुदा हम को
हालात इतने बदल जायंगे, मालूम न था हम को,
क्या यह रिश्ता इतना कमज़ोर था हमारा ?
जिसे चाह,
हालात इतने बदल जायंगे, मालूम न था हम को,
क्या यह रिश्ता इतना कमज़ोर था हमारा ?
जिसे चाह,
राधा-श्याम संग खेले होली ......
मोहे न रंग डालो श्याम प्यारे
अंगिया भीगी, मरी जाउं लाज के मारे
संखिया इतराये, देख रास-रंग के नज़ारे
मोहे न रंग डालो
अंगिया भीगी, मरी जाउं लाज के मारे
संखिया इतराये, देख रास-रंग के नज़ारे
मोहे न रंग डालो
पंख अगर होते मेरे पास
पंख अगर होते मेरे पास
रंगों में भर देता पलाश
शब्दों में भर देता उल्लास
नया पैगाम, नई अभिलाष
पंख अगर होते मेरे
रंगों में भर देता पलाश
शब्दों में भर देता उल्लास
नया पैगाम, नई अभिलाष
पंख अगर होते मेरे
बेटी ससुराल चली
नये लोग, नये रिश्ते की बुनियाद
डर लगा क्या जाने कैसे होगी आबाद
बिदाकर, भयभीत लज्जित, सहमा
आंसू निकले, चली यादों की
डर लगा क्या जाने कैसे होगी आबाद
बिदाकर, भयभीत लज्जित, सहमा
आंसू निकले, चली यादों की
जीवन
जीवन के रंग कई.. पड़ाव कई
गुजरती है ज़िन्दगी मोढ़ कई
कभी तेज, कभी मद्धम भई
पल ऐसा भी पल आता
जब अध्याय बदल जाता
जीवन से
गुजरती है ज़िन्दगी मोढ़ कई
कभी तेज, कभी मद्धम भई
पल ऐसा भी पल आता
जब अध्याय बदल जाता
जीवन से
जीवन
जीवन के रंग कई.. पड़ाव कई
गुजरती है ज़िन्दगी मोढ़ कई
कभी तेज, कभी मद्धम भई
पल ऐसा भी पल आता
जब अध्याय बदल जाता
जीवन से
गुजरती है ज़िन्दगी मोढ़ कई
कभी तेज, कभी मद्धम भई
पल ऐसा भी पल आता
जब अध्याय बदल जाता
जीवन से
कविता मेरी अभिव्यक्ति"
विशुद्ध साहित्यिक सोच-समझ के बीच
जिन मे इतना “सरफ़िरापन” नहीं होता
कवि कहलाने का अधिकार उनहे नहीं देता
जो एक ढंग
जिन मे इतना “सरफ़िरापन” नहीं होता
कवि कहलाने का अधिकार उनहे नहीं देता
जो एक ढंग
कविता मेरी अभिव्यक्ति"
विशुद्ध साहित्यिक सोच-समझ के बीच
जिन मे इतना “सरफ़िरापन” नहीं होता
कवि कहलाने का अधिकार उनहे नहीं देता
जो एक ढंग
जिन मे इतना “सरफ़िरापन” नहीं होता
कवि कहलाने का अधिकार उनहे नहीं देता
जो एक ढंग
क्यूँ हुई वह परायी'
शहनाई की धुन पर...
बचपन के आँगन को छोड़
दर्द सहती आई हैं बेटियां...
अपने अंश को विदा करते मात-पिता
अकथ पीड़ा महसूस करते
बचपन के आँगन को छोड़
दर्द सहती आई हैं बेटियां...
अपने अंश को विदा करते मात-पिता
अकथ पीड़ा महसूस करते
क्यूँ हुई वह परायी'
शहनाई की धुन पर...
बचपन के आँगन को छोड़
दर्द सहती आई हैं बेटियां...
अपने अंश को विदा करते मात-पिता
अकथ पीड़ा महसूस करते
बचपन के आँगन को छोड़
दर्द सहती आई हैं बेटियां...
अपने अंश को विदा करते मात-पिता
अकथ पीड़ा महसूस करते
गजलें
(1)
ये कैसा शमाँ है ये कैसा मंजर है।
इंसानियत की पीठ में धंसा खंजर है।
हैवानियत की फसल कटी तब-तब,
सोच इंसान की जब-जब
ये कैसा शमाँ है ये कैसा मंजर है।
इंसानियत की पीठ में धंसा खंजर है।
हैवानियत की फसल कटी तब-तब,
सोच इंसान की जब-जब
आत्मविवेचना
न जाने लिखने का नशा लगा कैसे
शायद नाम एक बार छाप जाने से
या आसन जरिया ई-मेल प्रकाशन से
कवी बन गया मन ही मन, अपने
शायद नाम एक बार छाप जाने से
या आसन जरिया ई-मेल प्रकाशन से
कवी बन गया मन ही मन, अपने
गजलें
(1)
ये कैसा शमाँ है ये कैसा मंजर है।
इंसानियत की पीठ में धंसा खंजर है।
हैवानियत की फसल कटी तब-तब,
सोच इंसान की जब-जब
ये कैसा शमाँ है ये कैसा मंजर है।
इंसानियत की पीठ में धंसा खंजर है।
हैवानियत की फसल कटी तब-तब,
सोच इंसान की जब-जब
गजलें
गजलें
(1)
ये कैसा शमाँ है ये कैसा मंजर है।
इंसानियत की पीठ में धंसा खंजर है।
हैवानियत की फसल कटी तब-तब,
सोच इंसान की
(1)
ये कैसा शमाँ है ये कैसा मंजर है।
इंसानियत की पीठ में धंसा खंजर है।
हैवानियत की फसल कटी तब-तब,
सोच इंसान की
तेरी मंज़िल के पार!
चाहे -अनचाहे
इस दुनिया मे आने के बाद
अब
धधक रहा है ज्वालामुखी
'उनकी' अपेक्षाओं का
अरमानों का
और मेरे
अनगिने सपनों
इस दुनिया मे आने के बाद
अब
धधक रहा है ज्वालामुखी
'उनकी' अपेक्षाओं का
अरमानों का
और मेरे
अनगिने सपनों
जिंदगी ये भी है
जिंदगी ये भी है कि, सीख कर ककहरा
लिख दूँ इबारत, एक मुकम्मल तस्वीर की
जिंदगी ये भी है कि, खाक छान कर गलियों की
जला कर
लिख दूँ इबारत, एक मुकम्मल तस्वीर की
जिंदगी ये भी है कि, खाक छान कर गलियों की
जला कर
तेरी मंज़िल के पार!
चाहे -अनचाहे
इस दुनिया मे आने के बाद
अब
धधक रहा है ज्वालामुखी
'उनकी' अपेक्षाओं का
अरमानों का
और मेरे
अनगिने
इस दुनिया मे आने के बाद
अब
धधक रहा है ज्वालामुखी
'उनकी' अपेक्षाओं का
अरमानों का
और मेरे
अनगिने
जिंदगी ये भी है
जिंदगी ये भी है कि, सीख कर ककहरा
लिख दूँ इबारत, एक मुकम्मल तस्वीर की
जिंदगी ये भी है कि, खाक छान कर गलियों की
जला कर
लिख दूँ इबारत, एक मुकम्मल तस्वीर की
जिंदगी ये भी है कि, खाक छान कर गलियों की
जला कर
क्यूँ हुई वह परायी'
शहनाई की धुन पर...
बचपन के आँगन को छोड़
दर्द सहती आई हैं बेटियां...
अपने अंश को विदा करते मात-पिता
अकथ पीड़ा महसूस करते
बचपन के आँगन को छोड़
दर्द सहती आई हैं बेटियां...
अपने अंश को विदा करते मात-पिता
अकथ पीड़ा महसूस करते
आत्मविवेचना
न जाने लिखने का नशा लगा कैसे
शायद नाम एक बार छाप जाने से
या आसन जरिया ई-मेल प्रकाशन से
कवी बन गया मन ही मन, अपने
शायद नाम एक बार छाप जाने से
या आसन जरिया ई-मेल प्रकाशन से
कवी बन गया मन ही मन, अपने
आत्मविवेचना
न जाने लिखने का नशा लगा कैसे
शायद नाम एक बार छाप जाने से
या आसन जरिया ई-मेल प्रकाशन से
कवी बन गया मन ही मन, अपने
शायद नाम एक बार छाप जाने से
या आसन जरिया ई-मेल प्रकाशन से
कवी बन गया मन ही मन, अपने
आत्मविवेचना
न जाने लिखने का नशा लगा कैसे
शायद नाम एक बार छाप जाने से
या आसन जरिया ई-मेल प्रकाशन से
कवी बन गया मन ही मन, अपने
शायद नाम एक बार छाप जाने से
या आसन जरिया ई-मेल प्रकाशन से
कवी बन गया मन ही मन, अपने
आत्मविवेचना
न जाने लिखने का नशा लगा कैसे
शायद नाम एक बार छाप जाने से
या आसन जरिया ई-मेल प्रकाशन से
कवी बन गया मन ही मन, अपने
शायद नाम एक बार छाप जाने से
या आसन जरिया ई-मेल प्रकाशन से
कवी बन गया मन ही मन, अपने
आत्मविवेचना
न जाने लिखने का नशा लगा कैसे
शायद नाम एक बार छाप जाने से
या आसन जरिया ई-मेल प्रकाशन से
कवी बन गया मन ही मन, अपने
शायद नाम एक बार छाप जाने से
या आसन जरिया ई-मेल प्रकाशन से
कवी बन गया मन ही मन, अपने
शुक्रवार, 27 जुलाई 2012
नारी (एक बेबसी)
जब नारी ने जन्म लिया था !
अभिशाप ने उसको घेरा था !!
अभी ना थी वो समझदार !
लोगो ने समझा मनुषहार !!
उसकी मा थी लाचार !
लेकीन
अभिशाप ने उसको घेरा था !!
अभी ना थी वो समझदार !
लोगो ने समझा मनुषहार !!
उसकी मा थी लाचार !
लेकीन
नारी (एक बेबसी)
जब नारी ने जन्म लिया था !
अभिशाप ने उसको घेरा था !!
अभी ना थी वो समझदार !
लोगो ने समझा मनुषहार !!
उसकी मा थी लाचार !
लेकीन
अभिशाप ने उसको घेरा था !!
अभी ना थी वो समझदार !
लोगो ने समझा मनुषहार !!
उसकी मा थी लाचार !
लेकीन
कविता कैसे हो जाती
कविता कैसे हो जाती है
अजब-गजब सवाल
बेकार- नाकाम लोग
भाबुक या चिंतनसील
समय के साथ वाले
या समय से जो हारे
रफ़्तार
अजब-गजब सवाल
बेकार- नाकाम लोग
भाबुक या चिंतनसील
समय के साथ वाले
या समय से जो हारे
रफ़्तार
लिखना है...........
लिखना है, अपने आप में
अन्दर मन की खिड़की से
झांके दिल के हर कोने में
भीतरी किवाड़ खोलने से
रुके शब्दों को बाहार
अन्दर मन की खिड़की से
झांके दिल के हर कोने में
भीतरी किवाड़ खोलने से
रुके शब्दों को बाहार
बहस
बहस चली तारों के बीच
चाँद का जीवन कितना आसान
चांदनी के संग रहना
पक्षकाल रंग-रेलीयाँ मनाना
शर्म-हया से फिर छुप
चाँद का जीवन कितना आसान
चांदनी के संग रहना
पक्षकाल रंग-रेलीयाँ मनाना
शर्म-हया से फिर छुप
बेरुखी का दर्द
जब गम का सैलाब मन में
उनेह पाने का जज्बा दिल में
बेरुखी का दर्द बेपनाह सीने में
आँखों के अश्क़ आये नज़रों
उनेह पाने का जज्बा दिल में
बेरुखी का दर्द बेपनाह सीने में
आँखों के अश्क़ आये नज़रों
मेरी बच्ची का है जन्मदिन
मेरी बच्ची का है जन्मदिन
मेरा आंगन फिर भी उदास
गूँजना है संगीत, है कंहा उल्लास
हवा सर्द है, फिजा है गमगीन
कोयल
मेरा आंगन फिर भी उदास
गूँजना है संगीत, है कंहा उल्लास
हवा सर्द है, फिजा है गमगीन
कोयल
ज़िन्दगी की श्याम है
ज़िन्दगी की श्याम है
डूबते सूरज जैसे
भोर की सुनहरी लाली
दोपहर का तेज प्रकाश
एक-एक कर विदा हो गए
छा रही कालिमा धीरे
डूबते सूरज जैसे
भोर की सुनहरी लाली
दोपहर का तेज प्रकाश
एक-एक कर विदा हो गए
छा रही कालिमा धीरे
जीयें कैसे ?
जीना-मरना क्या है
आनेवाला चला जाता
लोट के कब आता ?
यादें भर रह जाती
इतिहास की पाती
बाकी रहता चरित्र बिशेष
यादों के
आनेवाला चला जाता
लोट के कब आता ?
यादें भर रह जाती
इतिहास की पाती
बाकी रहता चरित्र बिशेष
यादों के
इशारा है आशिकी का
आँखों में मुहब्बत की कहानी ,
दिल में लहरें उम्मीद की ,
धडकनों में चाहत की रवानी
याद तो हर साँस में आनी
शुरुआत और
दिल में लहरें उम्मीद की ,
धडकनों में चाहत की रवानी
याद तो हर साँस में आनी
शुरुआत और
मन का वजूद
अन्दर-बाहर की न जाने
दिल एक समंदर गहरा माने
अजब इसके नाप-तौल के पैमाने
पीड़ा फैले जितनी, घाव गहरे उतने
चाहे रखो
दिल एक समंदर गहरा माने
अजब इसके नाप-तौल के पैमाने
पीड़ा फैले जितनी, घाव गहरे उतने
चाहे रखो
सोचता हूँ लिखूँ
तेरी मेरी राहें,जिसकी याद हमें है आती
हम ना होंगे,कोई बात नज़र नहीं आती
मैं ख़्वाहिशमंद हूँ,हर तारे का एक तारा
हम ना होंगे,कोई बात नज़र नहीं आती
मैं ख़्वाहिशमंद हूँ,हर तारे का एक तारा
जीने की राह
कुछ भूली बिसरी बातें
कुछ अपनों का दिया हुवा जख्म
याद आते बड़ जाती धड़कन
सम्भलते-सम्भलते सांसें बेदम
कि उमड़ पड़i
कुछ अपनों का दिया हुवा जख्म
याद आते बड़ जाती धड़कन
सम्भलते-सम्भलते सांसें बेदम
कि उमड़ पड़i
जीवनदायी
जग-मंडल में हवा बिचराती
बन के मंद, स्पर्श से सहलाती
बन के सर्द, कैसे कैसे ठिठुराती
बन के तप्त, बदन झुलसाती
बन के
बन के मंद, स्पर्श से सहलाती
बन के सर्द, कैसे कैसे ठिठुराती
बन के तप्त, बदन झुलसाती
बन के
मेरी आँखों में मुहब्बत के जो मंज़र है !!!
आँखों में मुहब्बत की कहानी ,
दिल के सागर में लहरें उम्मीद की ,
धडकनों में चाहत की रवानी
याद तो हर साँस में
दिल के सागर में लहरें उम्मीद की ,
धडकनों में चाहत की रवानी
याद तो हर साँस में
प्यार का इशारा
निशा मिलन भोर का उजियारा
चिल मिलाती धुप में अँधियारा
सुबह खोजे दिल चाँद- तारा
मन में गहरा प्यार का उजारा
नदियों
चिल मिलाती धुप में अँधियारा
सुबह खोजे दिल चाँद- तारा
मन में गहरा प्यार का उजारा
नदियों
जियो जी भरके
यह अंत हीन सवाल
मचाये गहरा बवाल
जीना-मरना क्या है
आनेवाला चला जाता
लोट के कब आता ?
यादें भर रह जाती
इतिहास की
मचाये गहरा बवाल
जीना-मरना क्या है
आनेवाला चला जाता
लोट के कब आता ?
यादें भर रह जाती
इतिहास की
मुझे रोने दो, सुख से
मुझे रोने दो सुख से दुःख मे, दुःख से सुख में
हर एक जज्वात को रहने दो, साथ दिल में
मजा जो हंसने में, मज़ा नहीं उतना रोने
हर एक जज्वात को रहने दो, साथ दिल में
मजा जो हंसने में, मज़ा नहीं उतना रोने
मन की आवाज
कभी कभी सपने में
सुनाई देने वाली बातें
वह चीख,वह आवाजें
चोंकर कर, जाग कर
खोजने लगता हूँ- अपनेमे,
अपना ही वजूद
सुनाई देने वाली बातें
वह चीख,वह आवाजें
चोंकर कर, जाग कर
खोजने लगता हूँ- अपनेमे,
अपना ही वजूद
गुरुवार, 26 जुलाई 2012
मैं दिखता हूँ जो आँखों में तो लब से क्यूँ नहीं कहते
मैं दिखता हूँ जो आँखों में तो लब से क्यूँ नहीं कहते
मुझे कहते हो तुम अपना तो सब से क्यूँ नहीं कहते
लब-ए-खामोश से ही
मुझे कहते हो तुम अपना तो सब से क्यूँ नहीं कहते
लब-ए-खामोश से ही
सपनो का घर
मेरे सपनो का घर सुन्दर तो नही लेकिन मेरी खुशी कि एक उम्मीद है !
चन्द इटो से बना ये अशियाना यह मेरे सपनो कि मजबुत नीव
चन्द इटो से बना ये अशियाना यह मेरे सपनो कि मजबुत नीव
सनक
सनक
पैसा कमाने की
नाम कमाने की
तो कभी धोंस दिखाने की
सनक
अपने रास्ते को
सही बताने की
दूसरों को दबाने
पैसा कमाने की
नाम कमाने की
तो कभी धोंस दिखाने की
सनक
अपने रास्ते को
सही बताने की
दूसरों को दबाने
बुधवार, 25 जुलाई 2012
नारी (एक बेबसी)
जब नारी ने जन्म लिया था !
अभिशाप ने उसको घेरा था !!
अभी ना थी वो समझदार !
लोगो ने समझा मनुषहार !!
उसकी मा थी लाचार
अभिशाप ने उसको घेरा था !!
अभी ना थी वो समझदार !
लोगो ने समझा मनुषहार !!
उसकी मा थी लाचार
नारी (एक बेबसी)
जब नारी ने जन्म लिया था !
अभिशाप ने उसको घेरा था !!
अभी ना थी वो समझदार !
लोगो ने समझा मनुषहार !!
उसकी मा थी लाचार
अभिशाप ने उसको घेरा था !!
अभी ना थी वो समझदार !
लोगो ने समझा मनुषहार !!
उसकी मा थी लाचार
मंगलवार, 24 जुलाई 2012
हक की बातों को
हक की बातों को भूलाने लगे हैं
किस्से-कहानियों से डराने लगे हैं
अजब रिवाज़ है इस शहर का
दुआ-सलाम से घबराने लगे
किस्से-कहानियों से डराने लगे हैं
अजब रिवाज़ है इस शहर का
दुआ-सलाम से घबराने लगे
सोमवार, 23 जुलाई 2012
गज़ले
(1)
ये कैसा शमाँ है ये कैसा मंजर है।
इंसानियत की पीठ में धंसा खंजर है।
हैवानियत की फसल कटी तब-तब,
सोच इंसान की
ये कैसा शमाँ है ये कैसा मंजर है।
इंसानियत की पीठ में धंसा खंजर है।
हैवानियत की फसल कटी तब-तब,
सोच इंसान की
दूर जितना वो मुझसे जाएंगें !! ग़ज़ल !!
दूर जितना ही मुझसे जाएंगे !!
मुझको उतना क़रीब पाएँगे !!
.....
कुछ न होगा तो आंख नम होगी!!
दोस्त बिछड़े जो याद आएंगे
मुझको उतना क़रीब पाएँगे !!
.....
कुछ न होगा तो आंख नम होगी!!
दोस्त बिछड़े जो याद आएंगे
दूर जितना वो मुझसे जाएंगें !! ग़ज़ल !!
दूर जितना ही मुझसे जाएंगें !!
मुझको उतना क़रीब पाएंगे !!
दूर जितना ही मुझसे जाएंगे !!
मुझको उतना क़रीब पाएँगे
मुझको उतना क़रीब पाएंगे !!
दूर जितना ही मुझसे जाएंगे !!
मुझको उतना क़रीब पाएँगे
रविवार, 22 जुलाई 2012
ज़िन्दगी अब रात रानी हो गई !! शायर सलीम रज़ा [ग़ज़ल]
ज़िन्दगी अब रात रानी हो गई !!
किस नज़र की मेहरबानी हो गई !!
.....
इब्त्दाए ज़िन्दगी की सुब्ह से !!
शाम तक पूरी कहानी
किस नज़र की मेहरबानी हो गई !!
.....
इब्त्दाए ज़िन्दगी की सुब्ह से !!
शाम तक पूरी कहानी
aap ke liye.....दो आने पैसे में क्या क्या मनाऊँ .... होली है घर पर ईद है सर पर न तन पर कपड़ा न सर पर है टोपी ... मैं कपड़ा सिलाऊं कि..होली मनाऊँ .. -- दो आने पैसे में क्या क्या मनाऊँ ....
दो आने पैसे में क्या क्या मनाऊँ ....
होली है घर पर ईद है सर पर
न तन पर कपड़ा न सर पर है टोपी ...
मैं कपड़ा सिलाऊं कि..होली
होली है घर पर ईद है सर पर
न तन पर कपड़ा न सर पर है टोपी ...
मैं कपड़ा सिलाऊं कि..होली
aap ke liye.....दो आने पैसे में क्या क्या मनाऊँ .... होली है घर पर ईद है सर पर न तन पर कपड़ा न सर पर है टोपी ... मैं कपड़ा सिलाऊं कि..होली मनाऊँ .. -- दो आने पैसे में क्या क्या मनाऊँ ....
दो आने पैसे में क्या क्या मनाऊँ .... होली है घर पर ईद है सर पर न तन पर कपड़ा न सर पर है टोपी ... मैं कपड़ा सिलाऊं कि..होली
.प्रेम
निश्चल प्रेम कैसा होता है
रातोमें जुगनू सा जगमगाता
चाँद को चांदनी से चमकता
जो हमें दिखाई नहीं देता
शायद हवा की
रातोमें जुगनू सा जगमगाता
चाँद को चांदनी से चमकता
जो हमें दिखाई नहीं देता
शायद हवा की
शुक्रवार, 20 जुलाई 2012
दूर जितना वो मुझसे जाएंगें !! ग़ज़ल !!
दूर जितना वो मुझसे जाएंगें !!
मुझको उतना क़रीब पाएंगे !!
कुछ न होग तो आंख नम होगी !!
दोस्त बिछ्डे जो याद आएंगे
मुझको उतना क़रीब पाएंगे !!
कुछ न होग तो आंख नम होगी !!
दोस्त बिछ्डे जो याद आएंगे
मन की आवाज
कभी कभी सपने में
सुनाई देने वाली बातें
वह चीख,वह आवाजें
चोंकर कर, जाग कर
खोजने लगता हूँ- अपनेमे,
अपना ही वजूद
सुनाई देने वाली बातें
वह चीख,वह आवाजें
चोंकर कर, जाग कर
खोजने लगता हूँ- अपनेमे,
अपना ही वजूद
दूर जितना वो मुझसे जाएंगें !! "शायर सलीम रज़ा"रीवा म.प्र. 09981728122
दूर जितना वो मुझसे जाएंगें !! "शायर सलीम रज़ा"रीवा म.प्र. 09981728122
मुझको उतना क़रीब पाएंगे !!
कुछ न होग तो आंख नम होगी
मुझको उतना क़रीब पाएंगे !!
कुछ न होग तो आंख नम होगी
अफसोश
बेतुकी-निरश चिंताओं का प्रभाव
जिंदगी से आँख-मिचौली, न लगाव
अब टीस रहें है यादों के पुराने घाव
मेरे गम पर आँशु तो
जिंदगी से आँख-मिचौली, न लगाव
अब टीस रहें है यादों के पुराने घाव
मेरे गम पर आँशु तो
अफसोश
बेतुकी-निरश चिंताओं का प्रभाव
जिंदगी से आँख-मिचौली, न लगाव
अब टीस रहें है यादों के पुराने घाव
मेरे गम पर आँशु तो
जिंदगी से आँख-मिचौली, न लगाव
अब टीस रहें है यादों के पुराने घाव
मेरे गम पर आँशु तो
कन्या-जनम
पुत्र जनम शुभ, कन्या जनम कष्टकारी,
करे भेद-भाव, सब बिधि, अबिवेक-अबिचारी
न जानत, जननी रूप कन्या की छबी न्यारी
ध्यान
करे भेद-भाव, सब बिधि, अबिवेक-अबिचारी
न जानत, जननी रूप कन्या की छबी न्यारी
ध्यान
समय के साथ चले
समय के साथ चले
सुख, दुःख, प्यार और जलन
यह दौर कब तक झेले
ख़ुद में मगन, वक़्त कैसे निकले
अपने किये जुल़्म खुद
सुख, दुःख, प्यार और जलन
यह दौर कब तक झेले
ख़ुद में मगन, वक़्त कैसे निकले
अपने किये जुल़्म खुद
अंतरद्वन्द
घर के पीछे का पीपल का पेढ़
जिसके भूरे-पीले तने में
मोटे-मोटे धब्बे,भद्दी-भद्दी धांरियां
समय की मार से हो
जिसके भूरे-पीले तने में
मोटे-मोटे धब्बे,भद्दी-भद्दी धांरियां
समय की मार से हो
ब्याकुल मन
काहे मन मोरे ब्याकुल तुम अपार
भटके दर-वक्त-दर, चिन्ता भरा संसार
कभी घर की उलझन,कभी संतानों का भार
कभी धन का अभाव,
भटके दर-वक्त-दर, चिन्ता भरा संसार
कभी घर की उलझन,कभी संतानों का भार
कभी धन का अभाव,
जलन
काफी नाम सुना था उनका,
ऊँचा ओहदा, मान, सन्मान
नाम जिनका अपने आप में रखे पहचान
उन के जरिये पहचान बनाने
उनके पास आश
ऊँचा ओहदा, मान, सन्मान
नाम जिनका अपने आप में रखे पहचान
उन के जरिये पहचान बनाने
उनके पास आश
सावन बरसे नयनों में
बरसात के दिनों में
छाये बादल अम्बर में
रिमझिम बरसे पानी में
धरती शीतल शिहरण में
मिलन के आलिंगन में
महक गई फिजा
छाये बादल अम्बर में
रिमझिम बरसे पानी में
धरती शीतल शिहरण में
मिलन के आलिंगन में
महक गई फिजा
जुदाई
हर रात के बाद रात आई
जख्म पर छिढ़का किसी ने नमक
कैसे सहें उनकी बेरुखाई
सुबह का बन्दा हुआ सफ़र
दर्द भरी यादों की
जख्म पर छिढ़का किसी ने नमक
कैसे सहें उनकी बेरुखाई
सुबह का बन्दा हुआ सफ़र
दर्द भरी यादों की
लफ्ज.....
मैं ने मुफ्त का समझ लुटाया बेसुमार
जिस कल्पना के लिये एक लफ्ज काफी था
उसे सो-सो लफ्ज दिये बेकार
परायों की दुनिया
जिस कल्पना के लिये एक लफ्ज काफी था
उसे सो-सो लफ्ज दिये बेकार
परायों की दुनिया
तेरा प्यार...
रह गया मेरे पास...
तेरा प्यार, तेरी तकरार
बदन की खुशबु,
बालों की महक
अनबोले लम्बे कथन
अनचाही चहक
वह रुदन
कोशीश
तेरा प्यार, तेरी तकरार
बदन की खुशबु,
बालों की महक
अनबोले लम्बे कथन
अनचाही चहक
वह रुदन
कोशीश
पिया मिलन की बात
सुनीसुनी सी रात, मन भीगा
याद आई तेरी, मन बहका,
आज मंज़र थे कुछ जालिम से
याद आये दिन वह मिलन के !
सावन के भीगी भीगी
याद आई तेरी, मन बहका,
आज मंज़र थे कुछ जालिम से
याद आये दिन वह मिलन के !
सावन के भीगी भीगी
तेरी यांदे
मयखाने में साकी जैसी
आँगन में तुलसी सी
गीता की वाणी-सी
बरगद की छाया-सी
सावन की बारिश जैसी
शीतल हवा
आँगन में तुलसी सी
गीता की वाणी-सी
बरगद की छाया-सी
सावन की बारिश जैसी
शीतल हवा
रिश्ते अब निभते नहीं
रिश्ते अब निभते नहीं हमारे बीच
अबिस्वाश की आंखें
और कुढ़न वाली बांते
रिश्तों को जोढते जोढ़ते
चाहत ही टूट जाती
अबिस्वाश की आंखें
और कुढ़न वाली बांते
रिश्तों को जोढते जोढ़ते
चाहत ही टूट जाती
बीता- वक़्त
सचमुच खोया वक़्त, सोये देर तक
इधर उधर की बांते, गप्पे देर तक
उम्र बढ़ गई, मायूसी दूर तक
जागे अब, अफसोश कंहा तक
लोग
इधर उधर की बांते, गप्पे देर तक
उम्र बढ़ गई, मायूसी दूर तक
जागे अब, अफसोश कंहा तक
लोग
बिरह-बेदना
तेरे अश्रु जल से भरे नयन
सर्द हवा मैं जैसे भीगे मेरा तन
तेरे मूक अधरों के कंपन
गहरे तूफान सा बिचलित मेरा मन
तेरे
सर्द हवा मैं जैसे भीगे मेरा तन
तेरे मूक अधरों के कंपन
गहरे तूफान सा बिचलित मेरा मन
तेरे
हट के.....
चाह बस अब सबकी एक ही है, लगना है हट के,
गिरते पड़ते, लड़ते झगड़ते, भूले या भटके,
समुंदर में बहते, आसमान में उड़ते या
गिरते पड़ते, लड़ते झगड़ते, भूले या भटके,
समुंदर में बहते, आसमान में उड़ते या
स्वीकारोक्ति
मन ने कर लिया स्वीकार
जिंदगी तो अब यहही है
अब जोशे खून मद्धिम हो चला
जब जीबन अंत की और चला
एक धुंदली सी परछाई छोढ़
जिंदगी तो अब यहही है
अब जोशे खून मद्धिम हो चला
जब जीबन अंत की और चला
एक धुंदली सी परछाई छोढ़
जिंदगी की परिभाषा
सहज जिंदगी की परिभाषा क्या है
यह मनोबैग्यानिक सवाल क्या है
जिसका सरल जवाब क्या है
कई तरह के बिचार, पर राय क्या
यह मनोबैग्यानिक सवाल क्या है
जिसका सरल जवाब क्या है
कई तरह के बिचार, पर राय क्या
अफसोश
मेरे गम पर आँशु तो बहाव
दुःख के सैलाब मैं डूब जाव
जब टूटकर बिखरा कोई ख्वाब
भटक रहा, मिला ना पराव
अधूरी मंजिल, न कोई
दुःख के सैलाब मैं डूब जाव
जब टूटकर बिखरा कोई ख्वाब
भटक रहा, मिला ना पराव
अधूरी मंजिल, न कोई
उम्मीद
पथझढ़ के मौसम मैं
सूखे पत्तो पर हरियाली चाहिये
याद आये नहीं जीवन मैं
वक्त पढ़ा तो, उनको संवाद चाहिये
बिसरा
सूखे पत्तो पर हरियाली चाहिये
याद आये नहीं जीवन मैं
वक्त पढ़ा तो, उनको संवाद चाहिये
बिसरा
गुरुवार, 19 जुलाई 2012
मन
आज मन हो गया उदास
कुछ नहीं,सिर्फ एहसास
कुछ भूली बिसरी यादें
मिलने बिछुढ़ने की बांते
टूटे हुवे स्वप्नों का
कुछ नहीं,सिर्फ एहसास
कुछ भूली बिसरी यादें
मिलने बिछुढ़ने की बांते
टूटे हुवे स्वप्नों का
कल
गुजरे हुवे कल पूछे कुछ ऐसे
कल अभी गुजरा कंहासे
फिर वापस आने की है जो बात
कल नहीं, आज भी हूँ साथ
हर एक कल मैं, आज
कल अभी गुजरा कंहासे
फिर वापस आने की है जो बात
कल नहीं, आज भी हूँ साथ
हर एक कल मैं, आज
बिदाई
बिदाई की अब बजने को है शहनाई
बिरह के सायों में यादो की परछाई
हर एक लम्हा ;हर एक स्पन्दन
बियोग के सुरों में ह्रदय का
बिरह के सायों में यादो की परछाई
हर एक लम्हा ;हर एक स्पन्दन
बियोग के सुरों में ह्रदय का
कल जो संजोया, खोकर अपना वर्तमान . . .
पढ़ लिखकर काबिल बनने घर छोढ़ चले
उजढ़ा चमन, पर है सपने उनके निराले,
नई उमीदें, नई आशाये, नई मंजिले
खुला आसमा, खुली
उजढ़ा चमन, पर है सपने उनके निराले,
नई उमीदें, नई आशाये, नई मंजिले
खुला आसमा, खुली
चोट अब भी लगती हैं, पर दर्द और होता नहीं . .
आंसू अब बहते नहीं,दिल अब रोता नहीं
गम के सागर मैं,मन अब बहता नहीं
हर गम एक सा ,नया है कुछ भी लगता नहीं
टूटे ड़ाल से
गम के सागर मैं,मन अब बहता नहीं
हर गम एक सा ,नया है कुछ भी लगता नहीं
टूटे ड़ाल से
मेरा बचपन . . .
मन की अधूरी राह में,
हर अधूरी चाह में,
हैं जो चिरंतर हाहाकार,
अंतर्मन का करून चीत्कार,
मुझे और जीने नहीं देता,
हर अधूरी चाह में,
हैं जो चिरंतर हाहाकार,
अंतर्मन का करून चीत्कार,
मुझे और जीने नहीं देता,
कैसे करूं मैं आज कविता ?
छंदों से करदूं आँख मिचोली,
या लिख दूं कोई सुरीली बोली ...
शब्दों की लाली रच दूं,
या रंग दूं पेचीदा अक्षरों की होली
या लिख दूं कोई सुरीली बोली ...
शब्दों की लाली रच दूं,
या रंग दूं पेचीदा अक्षरों की होली
कैसी होती कविता ?
कैसी होती है कबिता
वह जाये जिसमे छंदों की सरिता
भावों की लालिमा, दुखों की गीता
स्वप्नों के बादल, बिरह की
वह जाये जिसमे छंदों की सरिता
भावों की लालिमा, दुखों की गीता
स्वप्नों के बादल, बिरह की
जरा सी बात
आहट बारिश की जरा जरा सी,
आहट किसी की जरा जरा सी,
कही कोई आवाज़ जरा जरा सी,
आज नाउम्मीद है जरा जरा सी,
कल उम्मीद की बारिश
आहट किसी की जरा जरा सी,
कही कोई आवाज़ जरा जरा सी,
आज नाउम्मीद है जरा जरा सी,
कल उम्मीद की बारिश
रिश्ते !-?-!
सुलगते रहते हैं सारी उम्र
कड़वा सच, बेबसी का
गुस्सा निगलते,चुप है, है जो शर्म
अबिवाहीत की तरह !
यह चिंगारी है मनके
कड़वा सच, बेबसी का
गुस्सा निगलते,चुप है, है जो शर्म
अबिवाहीत की तरह !
यह चिंगारी है मनके
मिलन
घनगोर कालि अमबश्या की रात
चांदनी को प्रतीक्षित है नई प्रभात
हर्षित मन, मन मैं मधुमास
भरा उल्लास, मिलन की आश
दिन
चांदनी को प्रतीक्षित है नई प्रभात
हर्षित मन, मन मैं मधुमास
भरा उल्लास, मिलन की आश
दिन
नवबर्ष
फिर मची दुनिया मैं हलचल,
क्या बुरा हुआ, हुआ क्या भला;
बीते साल की चर्चा का बाज़ार चला
यह साल चला, नया है जो
क्या बुरा हुआ, हुआ क्या भला;
बीते साल की चर्चा का बाज़ार चला
यह साल चला, नया है जो
सोच ?
अब थक कर निढाल
अपने किये से बेहाल
बेठ अँधेरे कोने मैं
मकरी सा बुनता जाल
हर धांगो मैं खोज रहा
टूटे हुवे रिश्तों का
अपने किये से बेहाल
बेठ अँधेरे कोने मैं
मकरी सा बुनता जाल
हर धांगो मैं खोज रहा
टूटे हुवे रिश्तों का
.अश्क....
यह अश्क आँखों से जब निकलता है
या फिर दिल मैं जब उतर जाता है
न पता नस्तर सा कंही चुभ जाता है
हर ख़ुशी भी दर्दे ऐ दिल
या फिर दिल मैं जब उतर जाता है
न पता नस्तर सा कंही चुभ जाता है
हर ख़ुशी भी दर्दे ऐ दिल
प्रेम
निश्चल प्रेम कैसा होता है
रातोमें जुगनू सा जगमगाता
चाँद को चांदनी से चमकता
जो हमें दिखाई नहीं देता
शायद हवा की
रातोमें जुगनू सा जगमगाता
चाँद को चांदनी से चमकता
जो हमें दिखाई नहीं देता
शायद हवा की
पल . . .
प्रिय ! तुम्हारे साथ के वह पल
या तुम्हारे बिना यह पल
दोनों पल, कैसे हैं ये पल ?
जला रहे हैं मुझे पल पल .
प्रिय !
या तुम्हारे बिना यह पल
दोनों पल, कैसे हैं ये पल ?
जला रहे हैं मुझे पल पल .
प्रिय !
पंख अगर होते मेरे पास
पंख अगर होते मेरे पास
रंगों में भर देता पलाश
शब्दों में भर देता उल्लास
नया पैगाम, नई अभिलाष
पंख अगर होते मेरे
रंगों में भर देता पलाश
शब्दों में भर देता उल्लास
नया पैगाम, नई अभिलाष
पंख अगर होते मेरे
मेरा बेटा
(एक)
मेरा बेटा
छोटा है
महज़ छ: साल का
मगर
खिलौने इकट्ठे करने में
माहिर है
और खिलौने भी क्या ?
दिवाली के
मेरा बेटा
छोटा है
महज़ छ: साल का
मगर
खिलौने इकट्ठे करने में
माहिर है
और खिलौने भी क्या ?
दिवाली के
बेटियाँ
सुबह उठती हैं
उन्हें पता है
अपनी जिम्मेदारियाँ
पूछतीं नहीं क्या करना है
बस लग जाती हैं
काम में
रोज़
उन्हें पता है
अपनी जिम्मेदारियाँ
पूछतीं नहीं क्या करना है
बस लग जाती हैं
काम में
रोज़
पिता
मैं जब भी डर जाता
आपके पास चला आता
आप समझ जाते
मुझे दुलारने लगते
निडर लोगों के किस्से बताते
जब भी
आपके पास चला आता
आप समझ जाते
मुझे दुलारने लगते
निडर लोगों के किस्से बताते
जब भी
भूलने की गलती
तुम्हारा पर्दाफाश हो रहा है
तुम्हारी चोरियाँ
पकड़ी जा रही हैं
वे सारे इल्ज़ाम
जिनके लिए
मुझे उम्र कैद
तुम्हारी चोरियाँ
पकड़ी जा रही हैं
वे सारे इल्ज़ाम
जिनके लिए
मुझे उम्र कैद
वजह
रेगिस्तान में
रेत की चादर की तरह
मेरी ज़िंदगी भटकती रही
कभी यहाँ, कभी वहाँ
मैं ढूँढता रहा अपना ठिकाना
हवा
रेत की चादर की तरह
मेरी ज़िंदगी भटकती रही
कभी यहाँ, कभी वहाँ
मैं ढूँढता रहा अपना ठिकाना
हवा
माँ
माँ
बहुत ख़ुशनसीब हैं
हम लोग
हमारे सिर पर
हाथ है माँ का
क्योंकि
माँ का आँचल
हर छत से ज़्यादा
मज़बूत
बहुत ख़ुशनसीब हैं
हम लोग
हमारे सिर पर
हाथ है माँ का
क्योंकि
माँ का आँचल
हर छत से ज़्यादा
मज़बूत
आज मेरा स्कूल क्यों बंद है ?
आज मेरा स्कूल क्यों बंद है ?
जिसने कभी
मस्जिद का दरवाज़ा नहीं देखा
जो कभी
मंदिर की सीढ़ी नहीं चढ़ा
जिसे
जिसने कभी
मस्जिद का दरवाज़ा नहीं देखा
जो कभी
मंदिर की सीढ़ी नहीं चढ़ा
जिसे
आज मेरा स्कूल क्यों बंद है ?
आज मेरा स्कूल क्यों बंद है ?
जिसने कभी
मस्जिद का दरवाज़ा नहीं देखा
जो कभी
मंदिर की सीढ़ी नहीं चढ़ा
जिसे
जिसने कभी
मस्जिद का दरवाज़ा नहीं देखा
जो कभी
मंदिर की सीढ़ी नहीं चढ़ा
जिसे
सरकारी अनाज
सरकारी अनाज
(एक)
खामोश !
हर साल की तरह
इस साल भी
अनाज सड़ रहा है।
अनुमान है
इस दफा
पिछला रेकॉर्ड भी
(एक)
खामोश !
हर साल की तरह
इस साल भी
अनाज सड़ रहा है।
अनुमान है
इस दफा
पिछला रेकॉर्ड भी
सरकारी अनाज
सरकारी अनाज
(एक)
खामोश !
हर साल की तरह
इस साल भी
अनाज सड़ रहा है।
अनुमान है
इस दफा
पिछला रेकॉर्ड भी
(एक)
खामोश !
हर साल की तरह
इस साल भी
अनाज सड़ रहा है।
अनुमान है
इस दफा
पिछला रेकॉर्ड भी
सरकारी अनाज
सरकारी अनाज
(एक)
खामोश !
हर साल की तरह
इस साल भी
अनाज सड़ रहा है।
अनुमान है
इस दफा
पिछला रेकॉर्ड भी
(एक)
खामोश !
हर साल की तरह
इस साल भी
अनाज सड़ रहा है।
अनुमान है
इस दफा
पिछला रेकॉर्ड भी
मंगलवार, 17 जुलाई 2012
शब्द
शब्द मधुर औ स्नेहयुक्त हो ,
ग्लानि , भय ,छल , कपट
ईर्ष्या , निंदा का न ओदे पट ,
दम्भ ,द्वेष , अभिमान रहित हो l
ग्लानि , भय ,छल , कपट
ईर्ष्या , निंदा का न ओदे पट ,
दम्भ ,द्वेष , अभिमान रहित हो l
शब्द
शब्द मधुर औ स्नेहयुक्त हो ,
ग्लानि , भय ,छल , कपट
ईर्ष्या , निंदा का न ओदे पट ,
दम्भ ,द्वेष , अभिमान रहित हो l
ग्लानि , भय ,छल , कपट
ईर्ष्या , निंदा का न ओदे पट ,
दम्भ ,द्वेष , अभिमान रहित हो l
प्रजातंत्र
प्रजातंत्र में ,
वाणी की स्वतंत्रता के नाम पार ,
कीचड़ उछालते है l
परनिंदा में प्रवीण ब्यक्ति ,
कुशल
वाणी की स्वतंत्रता के नाम पार ,
कीचड़ उछालते है l
परनिंदा में प्रवीण ब्यक्ति ,
कुशल
निलम पहाड़ा और शराब
नीलम-पहाड़ और शराब-------------------------------
मैं पहाड़ से हूंपहाड़ो को पहाड़ की तरह देखता हूंमैं बचपन में बहुत खेला हूं इनके
मैं पहाड़ से हूंपहाड़ो को पहाड़ की तरह देखता हूंमैं बचपन में बहुत खेला हूं इनके
मुझे यह कहना है...रवीन्द्रनाथ टैगोर की "गीतांजलि" का बंगला से हिंदी में अनुवाद
अलविदा !
कहने से पहले
मुझे यह कहना है
जो देखा है, पाया है
अहा ! कितना अनोखा है
ज्योतिसागर में देखा
शतदलकमल खिला
कहने से पहले
मुझे यह कहना है
जो देखा है, पाया है
अहा ! कितना अनोखा है
ज्योतिसागर में देखा
शतदलकमल खिला
जब नयी-नयी सृष्टि हुई...रवीन्द्रनाथ टैगोर की "गीतांजलि" का बंगला से हिंदी में अनुवाद
जब नयी-नयी सृष्टि हुई
आकाश में तारे विहँस उठे
देवताओं ने गीत गाये
और सभा में झूम उठे,
"अहा ! इस परिपूर्णता में
कितना
आकाश में तारे विहँस उठे
देवताओं ने गीत गाये
और सभा में झूम उठे,
"अहा ! इस परिपूर्णता में
कितना
पुष्पांजलि...रवीन्द्रनाथ टैगोर की "गीतांजलि" का बंगला से हिंदी में अनुवाद
आज...तूने मृत्युदूत को
मेरे द्वार पर भेजा है
अज्ञात सागर-पार से
जो मेरे लिये सन्देश लाया है
रात अँधेरी है और मैं
मेरे द्वार पर भेजा है
अज्ञात सागर-पार से
जो मेरे लिये सन्देश लाया है
रात अँधेरी है और मैं
जाग उठे...चेतना...रवीन्द्रनाथ टैगोर की "गीतांजलि" का बंगला से हिंदी में अनुवाद
चिरजन्म की वेदना
चिरजीवन की साधना
ज्वाला बनकर उठे
निर्बल जानकर मुझे
करो नहीं कृपा...ओ रे
भष्म करो...वासना
और
चिरजीवन की साधना
ज्वाला बनकर उठे
निर्बल जानकर मुझे
करो नहीं कृपा...ओ रे
भष्म करो...वासना
और
पूजा का नैवेद्य...रवीन्द्रनाथ टैगोर की "गीतांजलि" का बंगला से हिंदी में अनुवाद
वे
दिन के ढलते-ढलते
मेरे घर में आये
और बोले,
'हम यहीं-कहीं तेरे पास
चुपचाप पड़े रहेंगे
देवता की अर्चना में
तेरी
दिन के ढलते-ढलते
मेरे घर में आये
और बोले,
'हम यहीं-कहीं तेरे पास
चुपचाप पड़े रहेंगे
देवता की अर्चना में
तेरी
फिर...एक बार...रवीन्द्रनाथ टैगोर की "गीतांजलि" का बंगला से हिंदी में अनुवाद
फिर...एक बार
सबने मेरे मन को घेर लिया
फिर...एक बार
मेरी आँखों पर आवरण डाल दिया
मैं फिर...एक बार
इधर-उधर की बातों में उलझ
सबने मेरे मन को घेर लिया
फिर...एक बार
मेरी आँखों पर आवरण डाल दिया
मैं फिर...एक बार
इधर-उधर की बातों में उलझ
यही तो तेरा प्रेम है...रवीन्द्रनाथ टैगोर की "गीतांजलि" का बंगला से हिंदी में अनुवाद
अहा !
यही तो तेरा प्रेम है...ओ
मेरे हृदयहरण !
पत्ते-पत्ते से तेरा दिव्य-आलोक झर रहा है
स्वर्ण की तरह
यही तो तेरा प्रेम है...ओ
मेरे हृदयहरण !
पत्ते-पत्ते से तेरा दिव्य-आलोक झर रहा है
स्वर्ण की तरह
जीवन जब नीरस होने लगे...रवीन्द्रनाथ टैगोर की "गीतांजलि" का बंगला से हिंदी में अनुवाद
जीवन
जब नीरस होने लगे
करुणा की धार
बरसाओ
जीवन-माधुर्य जब शेष होने लगे
गीत सुधा-रस
छलकाओ
कर्म...जब दैत्यरूप
जब नीरस होने लगे
करुणा की धार
बरसाओ
जीवन-माधुर्य जब शेष होने लगे
गीत सुधा-रस
छलकाओ
कर्म...जब दैत्यरूप
तेरी परछाइयाँ
तुझे चाहा ये काफी नही कि, अब तेरी परछाइँयो के पिछे भागते है!
लूटा बैठे जब अपना जहाँ हम, अब वो हमसे
लूटा बैठे जब अपना जहाँ हम, अब वो हमसे
नयन तेरे
सच है जो नयन तेरे, कहाँ जाएँ जो आँखों से मेरे! या मह्सुस करूँ उसे जो, बहता है सांसो में मेरे!
वही दर्द को समझ सका है
वही दर्द को समझ सका है
नयन तेरे
सच है जो नयन तेरे, कहाँ जाएँ जो आँखों से मेरे! या मह्सुस करूँ उसे जो, बहता है सांसो में मेरे!
वही दर्द को समझ सका है
वही दर्द को समझ सका है
नयन तेरे
सच है जो नयन तेरे, कहाँ जाएँ जो आँखों से मेरे! या मह्सुस करूँ उसे जो, बहता है सांसो में मेरे!
वही दर्द को समझ सका है
वही दर्द को समझ सका है
रविवार, 15 जुलाई 2012
तू सहता जा
नज़र उठा के देख ज़रा
तारों से ये आकाश भरा
देख रातें देख सवेरा
ये सुनता तू कहता जा
देख हवाएं कबसे बहती
जंगल पर्वत
तारों से ये आकाश भरा
देख रातें देख सवेरा
ये सुनता तू कहता जा
देख हवाएं कबसे बहती
जंगल पर्वत
माँ, ले मै बड़ा हो गया..
माँ,
ले मै बड़ा हो गया..
माँ ने एक सवाल पुछा था बचपन में
मेरे सर पे हाथ फेरते हुए
हस्ते हस्ते शाम की चाय की चुस्की के
ले मै बड़ा हो गया..
माँ ने एक सवाल पुछा था बचपन में
मेरे सर पे हाथ फेरते हुए
हस्ते हस्ते शाम की चाय की चुस्की के
खुद से
खुद से बात करता हूँ मै खुद के बारे में
खुद ही सवाल करता हूँ और खुद ही जवाब पाता हूँ
सोचता हूँ जब भी मै खुद के बारे
खुद ही सवाल करता हूँ और खुद ही जवाब पाता हूँ
सोचता हूँ जब भी मै खुद के बारे
मेरे पैरों में इतनी शक्ति ज़रूर देना
मेरे भगवान् ,
मेरे पैरों में इतनी शक्ति ज़रूर देना
की कोई भी पहाड़ , बिना किसी के सहारे चढ़ सकूँ
लेकिन घुटनों को
मेरे पैरों में इतनी शक्ति ज़रूर देना
की कोई भी पहाड़ , बिना किसी के सहारे चढ़ सकूँ
लेकिन घुटनों को
मेरे सारे अहंकार को...रवीन्द्रनाथ टैगोर की "गीतांजलि" का बंगला से हिंदी में अनुवाद
मेरा मस्तक...अपनी
चरणधूलि तले झुका दे
मेरे सारे अहंकार को
आँखों के पानी में डुबा दे
मैं करता हूँ अपना ही बखान
छलता
चरणधूलि तले झुका दे
मेरे सारे अहंकार को
आँखों के पानी में डुबा दे
मैं करता हूँ अपना ही बखान
छलता
तुम्हारे साथ नित्य विरोध...रवीन्द्रनाथ टैगोर की "गीतांजलि" का बंगला से हिंदी में अनुवाद
तुम्हारे साथ नित्य विरोध
अब सहा नहीं जाता
दिन-प्रतिदिन ये ऋण
बढ़ता ही जा रहा है
न जाने कितने लोग
तेरी सभा में
अब सहा नहीं जाता
दिन-प्रतिदिन ये ऋण
बढ़ता ही जा रहा है
न जाने कितने लोग
तेरी सभा में
क्या तेरे सामने खड़ा रहूँगा...रवीन्द्रनाथ टैगोर की "गीतांजलि" का बंगला से हिंदी में अनुवाद
प्रतिदिन हे जीवनस्वामी !
क्या तेरे सामने खड़ा रहूँगा
हाथ जोड़कर हे भुवनेश्वर !
क्या तेरे सामने खड़ा रहूँगा
तेरे
क्या तेरे सामने खड़ा रहूँगा
हाथ जोड़कर हे भुवनेश्वर !
क्या तेरे सामने खड़ा रहूँगा
तेरे
अनुमति मिल गयी...रवीन्द्रनाथ टैगोर की "गीतांजलि" का बंगला से हिंदी में अनुवाद
अनुमति मिल गयी
मित्रो ! मुझे विदा करो
मैं प्रस्थान करने वाला हूँ
अंतिम-नमन स्वीकार करो
मित्रो ! मुझे विदा करो
मैं
मित्रो ! मुझे विदा करो
मैं प्रस्थान करने वाला हूँ
अंतिम-नमन स्वीकार करो
मित्रो ! मुझे विदा करो
मैं
तुझसे मिलने के लिये...रवीन्द्रनाथ टैगोर की "गीतांजलि" का बंगला से हिंदी में अनुवाद
तुझसे मिलने के लिये
मैं अकेला ही निकला था
न जाने वह कौन है
जो नीरव अंधकार में
मेरा पीछा करता रहा
उससे बचना तो
मैं अकेला ही निकला था
न जाने वह कौन है
जो नीरव अंधकार में
मेरा पीछा करता रहा
उससे बचना तो
मुझे जगाकर आज...रवीन्द्रनाथ टैगोर की "गीतांजलि" का बंगला से हिंदी में अनुवाद
हे नाथ !
मुझे जगाकर आज
जाओ ना जाओ ना, करो
करुणा की बरसात
घने वन की डाली-डाली पे
वृष्टि झरे...आषाढ़-मेघ से
घनघोर बादल
मुझे जगाकर आज
जाओ ना जाओ ना, करो
करुणा की बरसात
घने वन की डाली-डाली पे
वृष्टि झरे...आषाढ़-मेघ से
घनघोर बादल
सीमा में असीम तुम ...रवीन्द्रनाथ टैगोर की "गीतांजलि" का बंगला से हिंदी में अनुवाद
सीमा में असीम तुम
बजाओ अपने सुर
झलके तेरा प्रकाश
मन में मधुर-मधुर
वर्ण में...गंध में
गीतों के छंद में
तेरी लीला से,
बजाओ अपने सुर
झलके तेरा प्रकाश
मन में मधुर-मधुर
वर्ण में...गंध में
गीतों के छंद में
तेरी लीला से,
जिस दिन मृत्यु...रवीन्द्रनाथ टैगोर की "गीतांजलि" का बंगला से हिंदी में अनुवाद
जिस दिन
मृत्यु...तेरे द्वार पर आकर
खड़ी हो जायेगी
उस दिन कौन-सा धन दोगे उसे ?
मैं खाली हाथ अपने अतिथि को
विदा नहीं
मृत्यु...तेरे द्वार पर आकर
खड़ी हो जायेगी
उस दिन कौन-सा धन दोगे उसे ?
मैं खाली हाथ अपने अतिथि को
विदा नहीं
और विलंब न करो...रवीन्द्रनाथ टैगोर की "गीतांजलि" का बंगला से हिंदी में अनुवाद
तोड़ो...तोड़ो...तोड़ो
और विलंब न करो
धूल में गिरकर यहीं
मिट न जाऊँ कहीं
भय है मन में यही
फूल तेरी माला में
गूँथ
और विलंब न करो
धूल में गिरकर यहीं
मिट न जाऊँ कहीं
भय है मन में यही
फूल तेरी माला में
गूँथ
तुम नीचे उतरे...रवीन्द्रनाथ टैगोर की "गीतांजलि" का बंगला से हिंदी में अनुवाद
ऊँचे
सिंहासन को छोड़कर
तुम नीचे उतरे...
और मेरे घर के दरवाजे की आड़ लेकर
चुपचाप खड़े रहे
मैं एकांत...कोने में
सिंहासन को छोड़कर
तुम नीचे उतरे...
और मेरे घर के दरवाजे की आड़ लेकर
चुपचाप खड़े रहे
मैं एकांत...कोने में
क्या तुमने उसकी...रवीन्द्रनाथ टैगोर की "गीतांजलि" का बंगला से हिंदी में अनुवाद
क्या तुमने उसकी
पद्ध्वनि नहीं सुनी
प्रतिदिन-प्रतिपल
वह आ रहा है निरंतर
उसके स्मरण में
मैंने कितने गीत
पद्ध्वनि नहीं सुनी
प्रतिदिन-प्रतिपल
वह आ रहा है निरंतर
उसके स्मरण में
मैंने कितने गीत
जितनी पूजा करनी थी ...रवीन्द्रनाथ टैगोर की "गीतांजलि" का बंगला से हिंदी में अनुवाद
जीवन में
जितनी पूजा करनी थी
पूरी नहीं हुई
फिर भी...मैं हारा नहीं
कली खिलने से पहले मुरझा गयी
गिर गयी धरा पर
फिर
जितनी पूजा करनी थी
पूरी नहीं हुई
फिर भी...मैं हारा नहीं
कली खिलने से पहले मुरझा गयी
गिर गयी धरा पर
फिर
फूलों की तरह...रवीन्द्रनाथ टैगोर की "गीतांजलि" का बंगला से हिंदी में अनुवाद
फूलों की तरह
प्रस्फुटित हो मेरे गान
समझूंगा हे नाथ !
मिल गया तेरा दान
जिसे देखकर मैं सदा
आनंदित होता रहूँगा
अपना
प्रस्फुटित हो मेरे गान
समझूंगा हे नाथ !
मिल गया तेरा दान
जिसे देखकर मैं सदा
आनंदित होता रहूँगा
अपना
नित नये रूप धर...रवीन्द्रनाथ टैगोर की "गीतांजलि" का बंगला से हिंदी में अनुवाद
नित नये रूप धर
आओ मेरे प्राण में
गंध में...रंग में
आओ मेरे गान में
हे अमृतमय ! आओ
मुग्ध-मुदित-दो नयन में
हे
आओ मेरे प्राण में
गंध में...रंग में
आओ मेरे गान में
हे अमृतमय ! आओ
मुग्ध-मुदित-दो नयन में
हे
कारखाने में जब से ताला झूल गया
कारखाने में जब से ताला झूल गया
वो ख्वाब देखते-देखते रूक गया
घर आया तो बच्चों ने पूछा, "खिलौना"
उसने मुस्कुराते हुए
वो ख्वाब देखते-देखते रूक गया
घर आया तो बच्चों ने पूछा, "खिलौना"
उसने मुस्कुराते हुए
कोई गीत यहाँ सुर-ताल में नहीं है
कोई गीत यहाँ सुर-ताल में नहीं है
कोई शख्स अच्छे हाल में नहीं है
किस पर मुसीबत का पहाड़ नहीं टूटा
सुख-दुःख कहो, किस
कोई शख्स अच्छे हाल में नहीं है
किस पर मुसीबत का पहाड़ नहीं टूटा
सुख-दुःख कहो, किस
जैसे हवा का एक झोंका है
जैसे हवा का एक झोंका है
ये ज़िन्दगी, अदभुत है, अनोखा है
रेत पे लिख दो नाम, किसने
लहरों को मिटाने से रोका है
फूल
ये ज़िन्दगी, अदभुत है, अनोखा है
रेत पे लिख दो नाम, किसने
लहरों को मिटाने से रोका है
फूल
मुसीबतें कितनी दफ़ा आयीं
मुसीबतें कितनी दफ़ा आयीं
तब जाकर मेरी सुबह: आयी
पेड़ ने पत्तों से अर्ज़ किया
तो थोड़ी बहुत हवा आयी
इलाज वर्षों
तब जाकर मेरी सुबह: आयी
पेड़ ने पत्तों से अर्ज़ किया
तो थोड़ी बहुत हवा आयी
इलाज वर्षों
मिलजुल के शुरुआत करें
मिलजुल के शुरुआत करें
अमन-चैन की बात करें
चमन भरा है फूलों से
हम खुशबू का सम्मान करें
एक बच्चा अपनी कोख का
माता
अमन-चैन की बात करें
चमन भरा है फूलों से
हम खुशबू का सम्मान करें
एक बच्चा अपनी कोख का
माता
देश है संकट में ज़रा ध्यान दीजिये
देश है संकट में ज़रा ध्यान दीजिये
नन्हें-मुन्ने बच्चों को ज्ञान दीजिये
आज़ादी का मर्म पहले बताइये
फिर उनको सारा
नन्हें-मुन्ने बच्चों को ज्ञान दीजिये
आज़ादी का मर्म पहले बताइये
फिर उनको सारा
शनिवार, 14 जुलाई 2012
खुदा करे दुनिया में ऐसा हुआ करे
खुदा करे दुनिया में ऐसा हुआ करे
दुनिया रहे सलामत, आओ दुआ करें
जुल्म न करे कोई, हत्या न हो कहीं
ऐसा न हो कहीं, क़यामत
दुनिया रहे सलामत, आओ दुआ करें
जुल्म न करे कोई, हत्या न हो कहीं
ऐसा न हो कहीं, क़यामत
वो आते हैं किसकी रज़ा से यहाँ
वो आते हैं किसकी रज़ा से यहाँ
कि होते हैं अज़ीबो-धमाके यहाँ
डर लगता है घर से निकलते हुए
कब फट जायेगा बम न जाने
कि होते हैं अज़ीबो-धमाके यहाँ
डर लगता है घर से निकलते हुए
कब फट जायेगा बम न जाने
कहीं फिर हुआ धमाका आधी रात में
कहीं फिर हुआ धमाका आधी रात में
हम जी रहे हैं ज़िन्दगी आतंकवाद में
हम रहते हैं शहर में अक्सर डरे-डरे
कहीं न कहीं
हम जी रहे हैं ज़िन्दगी आतंकवाद में
हम रहते हैं शहर में अक्सर डरे-डरे
कहीं न कहीं
वो क्या था और क्या बन गया
वो क्या था और क्या बन गया
एक मोहरा षड़यंत्र का, बन गया
ज़िन्दा रहा तो कुछ ना हुआ
और मरते ही खुदा बन गया
ऐसी मौतें
एक मोहरा षड़यंत्र का, बन गया
ज़िन्दा रहा तो कुछ ना हुआ
और मरते ही खुदा बन गया
ऐसी मौतें
लाचार परिंदों के पर हैं
लाचार परिंदों के पर हैं
धमाके से उनको भी डर है
तुम्हें मालूम हो कि न हो
आँगन में उनके भी घर हैं
गोलियां चलती हों
धमाके से उनको भी डर है
तुम्हें मालूम हो कि न हो
आँगन में उनके भी घर हैं
गोलियां चलती हों
लाचार परिंदों के पर हैं
लाचार परिंदों के पर हैं
धमाके से उनको भी डर है
तुम्हें मालूम हो कि न हो
आँगन में उनके भी घर हैं
गोलियां चलती हों
धमाके से उनको भी डर है
तुम्हें मालूम हो कि न हो
आँगन में उनके भी घर हैं
गोलियां चलती हों
वो मेरा ख्वाब तोड़कर चले गये
वो मेरा ख्वाब तोड़कर चले गये
मेरी मिट्टी कोड़कर चले गये
तरकश के सारे-के-सारे तीर
मेरे दिल में छोड़कर चले गये
मैं
मेरी मिट्टी कोड़कर चले गये
तरकश के सारे-के-सारे तीर
मेरे दिल में छोड़कर चले गये
मैं
रूक जाता अगर उस छाँव में
रूक जाता अगर उस छाँव में
आता न मैं अपने गाँव में
साहिल पे कोई न आया
बहकर नदी के बहाव में
बीती उमर सारी याद
आता न मैं अपने गाँव में
साहिल पे कोई न आया
बहकर नदी के बहाव में
बीती उमर सारी याद
पत्थरों के घर कभी घर नहीं लगते
पत्थरों के घर कभी घर नहीं लगते
मुस्कान के बिना सरस अधर नहीं लगते
खाली-खाली लगे, घर का कोना-कोना
पत्तों के बिना
मुस्कान के बिना सरस अधर नहीं लगते
खाली-खाली लगे, घर का कोना-कोना
पत्तों के बिना
आग न फैले आओ धुंआ करते हैं
आग न फैले आओ धुंआ करते हैं
ऐसे हादसे हररोज हुआ करते हैं
इन्साफ के लिये जाएं तो कहाँ जाएं
मुखियाजी इधर-उधर घुमा
ऐसे हादसे हररोज हुआ करते हैं
इन्साफ के लिये जाएं तो कहाँ जाएं
मुखियाजी इधर-उधर घुमा
राजनीति में उनकी हवा देखिये
राजनीति में उनकी हवा देखिये
मेरे दर्द की कहीं दवा देखिये
सुबह देखिये और शाम देखिये
उनके मनसूबे को सफ़ा
मेरे दर्द की कहीं दवा देखिये
सुबह देखिये और शाम देखिये
उनके मनसूबे को सफ़ा
बस्ती गरीबों की, जलायी जाती है
बस्ती गरीबों की, जलायी जाती है
आग लगती नहीं लगायी जाती है
जब शुरू होता है एलेक्शन का दौर
पीठ गरीबों की, सहलायी
आग लगती नहीं लगायी जाती है
जब शुरू होता है एलेक्शन का दौर
पीठ गरीबों की, सहलायी
कूल-कूल है दोस्त कम्प्यूटर
स्कूल हमारा कूल-कम्प्यूटर |1|
सभी का दोस्त है कम्प्यूटर |2|
जरुरत बना है अब कम्प्यूटर |3|
दे रोजगार बहेतर कम्प्यूटर
सभी का दोस्त है कम्प्यूटर |2|
जरुरत बना है अब कम्प्यूटर |3|
दे रोजगार बहेतर कम्प्यूटर
निकाल दो जिक्र दिल की किताब से
निकाल दो जिक्र दिल की किताब से
अच्छा रहेगा शायद, मेरे हिसाब से
कहो न दिल की बात, पूछा तो कह दिया
नाराज़ हो गये तुम
अच्छा रहेगा शायद, मेरे हिसाब से
कहो न दिल की बात, पूछा तो कह दिया
नाराज़ हो गये तुम
ज़िन्दगी का कोई फ़लसफ़ा नहीं है
ज़िन्दगी का कोई फ़लसफ़ा नहीं है
कुछ करो या मरो के सिवा नहीं है
कील ठोककर कहीं खूंटी बना लूँ
ऐसी कोई दीवार यहाँ
कुछ करो या मरो के सिवा नहीं है
कील ठोककर कहीं खूंटी बना लूँ
ऐसी कोई दीवार यहाँ
कूल-कूल है दोस्त कम्प्यूटर
स्कूल हमारा कूल-कम्प्यूटर |1|
सभी का दोस्त है कम्प्यूटर |2|
जरुरत बना है अब कम्प्यूटर |3|
दे रोजगार बहेतर कम्प्यूटर
सभी का दोस्त है कम्प्यूटर |2|
जरुरत बना है अब कम्प्यूटर |3|
दे रोजगार बहेतर कम्प्यूटर
याद अपना वो सफ़र आता है
याद अपना वो सफ़र आता है
टहलकर कोई मेरे घर आता है
चौखट पर एक दिया रख दो
कोई उसे लांघ कर आता है
चिलमन ज़रा सरकाकर
टहलकर कोई मेरे घर आता है
चौखट पर एक दिया रख दो
कोई उसे लांघ कर आता है
चिलमन ज़रा सरकाकर
खेलते हैं वही लोग खतरों से
खेलते हैं वही लोग खतरों से
जो उदास होते हैं अपने घरों से
कभी बेगुनाहों की जान मत लो
उस्ताद खेलते नहीं कबूतरों
जो उदास होते हैं अपने घरों से
कभी बेगुनाहों की जान मत लो
उस्ताद खेलते नहीं कबूतरों
उसकी आँखें अभी तलक गीली हैं
उसकी आँखें अभी तलक गीली हैं
खोई हुई चिट्ठी आज मिली है
आज़ादी के पहले उसने लिखी थी
तेरे हाथ की बनी चाय पीनी
खोई हुई चिट्ठी आज मिली है
आज़ादी के पहले उसने लिखी थी
तेरे हाथ की बनी चाय पीनी
उसकी आँखें अभी तलक गीली हैं
उसकी आँखें अभी तलक गीली हैं
खोई हुई चिट्ठी आज मिली है
आज़ादी के पहले उसने लिखी थी
तेरे हाथ की बनी चाय पीनी
खोई हुई चिट्ठी आज मिली है
आज़ादी के पहले उसने लिखी थी
तेरे हाथ की बनी चाय पीनी
तू सहता जा
नज़र उठा के देख ज़रा
तारों से ये आकाश भरा
देख रातें देख सवेरा
ये सुनता तू कहता जा
देख हवाएं कबसे बहती
जंगल
तारों से ये आकाश भरा
देख रातें देख सवेरा
ये सुनता तू कहता जा
देख हवाएं कबसे बहती
जंगल
तू सहता जा
नज़र उठा के देख ज़रा
तारों से ये आकाश भरा
देख रातें देख सवेरा
ये सुनता तू कहता जा
देख हवाएं कबसे बहती
जंगल
तारों से ये आकाश भरा
देख रातें देख सवेरा
ये सुनता तू कहता जा
देख हवाएं कबसे बहती
जंगल
किसी के लिये दिल में...
किसी के लिये दिल में अगर दर्द नहीं है
मेरे ख्याल से वो शख्स मर्द नहीं है
मैं वर्षों बाद आया हूँ अपने शहर में
मेरे
मेरे ख्याल से वो शख्स मर्द नहीं है
मैं वर्षों बाद आया हूँ अपने शहर में
मेरे
जीना अगर है जीना...
जीना अगर है जीना, सर उठा के जीना
अँधेरे में दिल का दिया जला के जीना
कभी-कभी होगी पत्थरों की बारिश
अंधों को मगर
अँधेरे में दिल का दिया जला के जीना
कभी-कभी होगी पत्थरों की बारिश
अंधों को मगर
क्या है आदमी ये क्या है आदमी
क्या है आदमी ये क्या है आदमी
खुदा के ख्वाब का हिस्सा है आदमी
क्यों ढूंढता है खुशबू हिरण की तरह
जबकि अपने अंदर रखा
खुदा के ख्वाब का हिस्सा है आदमी
क्यों ढूंढता है खुशबू हिरण की तरह
जबकि अपने अंदर रखा
कोई ख़ुशी नहीं, कोई ग़म नहीं
कोई ख़ुशी नहीं, कोई ग़म नहीं
मेरे मर्ज़ का कोई मरहम नहीं
जी करे खुद को, मिटा दूँ मगर
इतना भी मुझमें है दम
मेरे मर्ज़ का कोई मरहम नहीं
जी करे खुद को, मिटा दूँ मगर
इतना भी मुझमें है दम
यहाँ कोई किसी से मिलता नहीं
यहाँ कोई किसी से मिलता नहीं
इस संगे-शहर में गुल खिलता नहीं
शीशा टकराता है, पत्थरों से खुद ही
अपनी जगह से कोई हिलता
इस संगे-शहर में गुल खिलता नहीं
शीशा टकराता है, पत्थरों से खुद ही
अपनी जगह से कोई हिलता
वक़्त
कभी वक़्त मिले तो देखना
मैंने चाँद पर तुम्हारा नाम लिखा है
अगर थोडा वक़्त और हो तो सितारों पर भी पढ़
मैंने चाँद पर तुम्हारा नाम लिखा है
अगर थोडा वक़्त और हो तो सितारों पर भी पढ़
chand
कभी दूर से चाँद को देख कर
मैंने उसे पाने की खवाहिश की थी
दिन का चैन रातों की नींद उसके नाम की थी
वही चाँद आज जब पास
मैंने उसे पाने की खवाहिश की थी
दिन का चैन रातों की नींद उसके नाम की थी
वही चाँद आज जब पास
chand
कभी दूर से चाँद को देख कर
मैंने उसे पाने की खवाहिश की थी
दिन का चैन रातों की नींद उसके नाम की थी
वही चाँद आज जब पास
मैंने उसे पाने की खवाहिश की थी
दिन का चैन रातों की नींद उसके नाम की थी
वही चाँद आज जब पास
chand
कभी दूर से चाँद को देख कर
मैंने उसे पाने की खवाहिश की थी
दिन का चैन रातों की नींद उसके नाम की थी
वही चाँद आज जब पास
मैंने उसे पाने की खवाहिश की थी
दिन का चैन रातों की नींद उसके नाम की थी
वही चाँद आज जब पास
गुमसुम रहते हो, मामला क्या है
गुमसुम रहते हो, मामला क्या है
उसके आगे किसी का चला क्या है
मेरा कसूर क्या है, कुछ तो कहिये
इश्क़ है, ये कहने मैं लगा
उसके आगे किसी का चला क्या है
मेरा कसूर क्या है, कुछ तो कहिये
इश्क़ है, ये कहने मैं लगा
chand
कभी दूर से चाँद को देख कर
मैंने उसे पाने की खवाहिश की थी
दिन का चैन रातों की नींद उसके नाम की थी
वही चाँद आज जब पास
मैंने उसे पाने की खवाहिश की थी
दिन का चैन रातों की नींद उसके नाम की थी
वही चाँद आज जब पास
chand
कभी दूर से चाँद को देख कर
मैंने उसे पाने की खवाहिश की थी
दिन का चैन रातों की नींद उसके नाम की थी
वही चाँद आज जब पास
मैंने उसे पाने की खवाहिश की थी
दिन का चैन रातों की नींद उसके नाम की थी
वही चाँद आज जब पास
रिश्तों में फ़रक हो अगर...
रिश्तों में फ़रक हो अगर जी नहीं लगता
रिश्तों के बिना आदमी, आदमी नहीं लगता
चटक जाय दिल अगर काँच की मानिंद
फिर ये
रिश्तों के बिना आदमी, आदमी नहीं लगता
चटक जाय दिल अगर काँच की मानिंद
फिर ये
कभी ली थी जवानी अंगड़ाई मेरी
कभी ली थी जवानी अंगड़ाई मेरी
जानता हूँ, जानती है तनहाई मेरी
इश्क़ के सिवा और भी ग़म था मुझे
सब कहते हैं, वो थी
जानता हूँ, जानती है तनहाई मेरी
इश्क़ के सिवा और भी ग़म था मुझे
सब कहते हैं, वो थी
अभी आयी, ये कहना और चले आना
अभी आयी, ये कहना और चले आना
मेरे इशारे को समझना और चले आना
पहरेदारों से खुद को बचाके हौले-हौले
क़दम-दर-क़दम बढ़ाना
मेरे इशारे को समझना और चले आना
पहरेदारों से खुद को बचाके हौले-हौले
क़दम-दर-क़दम बढ़ाना
कूल-कूल है दोस्त कम्प्यूटर
स्कूल हमारा कूल-कम्प्यूटर |1|
सभी का दोस्त है कम्प्यूटर |2|
जरुरत बना है अब कम्प्यूटर |3|
दे रोजगार बहेतर कम्प्यूटर
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शुक्रवार, 13 जुलाई 2012
मक्खन
मक्खन महंगा हो गया दूध दही है लुप्त।
मक्खनबाजी चल गई, मेधा कुंठित सुप्त।
मेधा कुंठित सुप्त, कहाँ उनकी है
मक्खनबाजी चल गई, मेधा कुंठित सुप्त।
मेधा कुंठित सुप्त, कहाँ उनकी है
तू सहता जा
नज़र उठा के देख ज़रा
तारों से ये आकाश भरा
देख रातें देख सवेरा
ये सुनता तू कहता जा
देख हवाएं कबसे बहती
जंगल
तारों से ये आकाश भरा
देख रातें देख सवेरा
ये सुनता तू कहता जा
देख हवाएं कबसे बहती
जंगल
तू सहता जा
नज़र उठा के देख ज़रा
तारों से ये आकाश भरा
देख रातें देख सवेरा
ये सुनता तू कहता जा
देख हवाएं कबसे बहती
जंगल
तारों से ये आकाश भरा
देख रातें देख सवेरा
ये सुनता तू कहता जा
देख हवाएं कबसे बहती
जंगल
गुरुवार, 12 जुलाई 2012
तू पास भी हो तो दिल बेक़रार अपना है / फ़राज़
तू पास भी हो तो दिल बेक़रार अपना है
के हमको तेरा नहीं इंतज़ार अपना है
मिले कोई भी तेरा ज़िक्र छेड़ देते हैं
के
के हमको तेरा नहीं इंतज़ार अपना है
मिले कोई भी तेरा ज़िक्र छेड़ देते हैं
के
जिससे ये तबियत बड़ी मुश्किल से लगी थी / फ़राज़
जिससे ये तबीयत बड़ी मुश्किल से लगी थी
देखा तो वो तस्वीर हर एक दिल से लगी थी
तन्हाई में रोते हैं कि यूँ दिल के सुकूँ
देखा तो वो तस्वीर हर एक दिल से लगी थी
तन्हाई में रोते हैं कि यूँ दिल के सुकूँ
रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ / फ़राज़
रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
कुछ तो मेरे पिन्दार-ए-मुहब्बत का भरम रख
तू
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
कुछ तो मेरे पिन्दार-ए-मुहब्बत का भरम रख
तू
जब तेरी याद के जुगनू चमके / फ़राज़
जब तेरी याद के जुगनू चमके
देर तक आँख में आँसू चमके
सख़्त तारीक है दिल की दुनिया
ऐसे आलम में अगर तू चमके
हमने
देर तक आँख में आँसू चमके
सख़्त तारीक है दिल की दुनिया
ऐसे आलम में अगर तू चमके
हमने
अब नये साल की मोहलत नहीं मिलने वाली / फ़राज़
अब नये साल की मोहलत नहीं मिलने वाली
आ चुके अब तो शब-ओ-रोज़ अज़ाबों वाले
अब तो सब दश्ना-ओ-ख़ंज़र की ज़ुबाँ बोलते
आ चुके अब तो शब-ओ-रोज़ अज़ाबों वाले
अब तो सब दश्ना-ओ-ख़ंज़र की ज़ुबाँ बोलते
बुधवार, 11 जुलाई 2012
किसी से दिल की हिक़ायत कभी कहा नहीं की / फ़राज़
किसी से दिल की हिक़ायत कभी कहा नहीं की,
वगर्ना ज़िन्दगी हमने भी क्या से क्या नहीं की,
हर एक से कौन मोहब्बत निभा
वगर्ना ज़िन्दगी हमने भी क्या से क्या नहीं की,
हर एक से कौन मोहब्बत निभा
ख़ुशबू का सफ़र / फ़राज़
ख़ुशबू का सफ़र
छोड़ पैमाने-वफ़ा की बात शर्मिंदा न कर
दूरियाँ ,मजबूरियाँ ,रुस्वाइयाँ , तन्हाइयाँ
कोई क़ातिल ,
छोड़ पैमाने-वफ़ा की बात शर्मिंदा न कर
दूरियाँ ,मजबूरियाँ ,रुस्वाइयाँ , तन्हाइयाँ
कोई क़ातिल ,
कुछ न किसी से बोलेंगे / फ़राज़
कुछ न किसी से बोलेंगे
तन्हाई में रो लेंगे
हम बेरहबरों का क्या
साथ किसी के हो लेंगे
ख़ुद तो हुए रुसवा लेकिन
तेरे
तन्हाई में रो लेंगे
हम बेरहबरों का क्या
साथ किसी के हो लेंगे
ख़ुद तो हुए रुसवा लेकिन
तेरे
किताबों मे मेरे फ़साने ढूँढते हैं / फ़राज़ यहां जाएं: भ्रमण, खोज
किताबों में मेरे फ़साने ढूँढते हैं,
नादां हैं गुज़रे ज़माने ढूँढते हैं ।
जब वो थे तलाशे-ज़िंदगी भी थी,
अब तो मौत
नादां हैं गुज़रे ज़माने ढूँढते हैं ।
जब वो थे तलाशे-ज़िंदगी भी थी,
अब तो मौत
करूँ न याद मगर किस तरह भुलाऊँ उसे / फ़राज़
करूँ न याद मगर किस तरह भुलाऊँ उसे
ग़ज़ल बहाना करूँ और गुनगुनाऊँ उसे
वो ख़ार-ख़ार है शाख़-ए-गुलाब की मानिन्द
ग़ज़ल बहाना करूँ और गुनगुनाऊँ उसे
वो ख़ार-ख़ार है शाख़-ए-गुलाब की मानिन्द
कठिन है राहगुज़र थोड़ी दूर साथ चलो / फ़राज़
कठिन है राहगुज़र थोड़ी दूर साथ चलो
बहुत बड़ा है सफ़र थोड़ी दूर साथ चालो
तमाम उम्र कहाँ कोई साथ देता है
मैं जानता
बहुत बड़ा है सफ़र थोड़ी दूर साथ चालो
तमाम उम्र कहाँ कोई साथ देता है
मैं जानता
मंगलवार, 10 जुलाई 2012
सारी दुनिया को ठुकरा के देखा
सारी दुनिया को ठुकरा के देखा
वो क्या चीज़ है, दिल लगा के देखा
दिल से रिश्तों की शुरुआत होती है
एक अज़नबी को अपना
वो क्या चीज़ है, दिल लगा के देखा
दिल से रिश्तों की शुरुआत होती है
एक अज़नबी को अपना
इश्क़ हो जाता है, किया जाता नहीं
इश्क़ हो जाता है, किया जाता नहीं
दिल हर किसी को दिया जाता नहीं
मैं सबसे कहता हूँ संभल के रहिये
और अपने लिये कुछ
दिल हर किसी को दिया जाता नहीं
मैं सबसे कहता हूँ संभल के रहिये
और अपने लिये कुछ
हर आदमी खुशनसीब नहीं होता
हर आदमी खुशनसीब नहीं होता
होता अगर ये नसीब नहीं होता
हम भी बना लेते खुद को मगर
खुदा है, कभी यकीन नहीं होता
किसी ने
होता अगर ये नसीब नहीं होता
हम भी बना लेते खुद को मगर
खुदा है, कभी यकीन नहीं होता
किसी ने
हाँ, उन दिनों गर्दिश में सितारा था
हाँ, उन दिनों गर्दिश में सितारा था
ज़िन्दगी को मगर क़रीब से निहारा था
कोई ले गया छलके मेरा सुकून
बड़ी मुश्किल से
ज़िन्दगी को मगर क़रीब से निहारा था
कोई ले गया छलके मेरा सुकून
बड़ी मुश्किल से
सबके सामने अगर सवाल इतने होंगे
सबके सामने अगर सवाल इतने होंगे
जवाब भी होंठों पे रुके-रुके होंगे
वक्त बहुत कम है, और सवालात ढेरों
ना कहूँ तो
जवाब भी होंठों पे रुके-रुके होंगे
वक्त बहुत कम है, और सवालात ढेरों
ना कहूँ तो
हसीनों की अदा में वफा नहीं है
हसीनों की अदा में वफा नहीं है
हम जानते हैं, इसलिये खफ़ा नहीं हैं
हुस्न की तारीफ चाहे जितनी कीजिये
इश्क़ का इल्म
हम जानते हैं, इसलिये खफ़ा नहीं हैं
हुस्न की तारीफ चाहे जितनी कीजिये
इश्क़ का इल्म
ये ज़माना वो ज़माना नहीं रहा
ये ज़माना वो ज़माना नहीं रहा
कोई मिल के रहने वाला नहीं रहा
बँटवारे का असर इतना हुआ कि
कोई घर आशियाना नहीं रहा
उसे
कोई मिल के रहने वाला नहीं रहा
बँटवारे का असर इतना हुआ कि
कोई घर आशियाना नहीं रहा
उसे
दिल की तमन्ना दिल में ही रही
दिल की तमन्ना दिल में ही रही
आरजू हमेशा मिलने की रही
उनकी फिक्र इतनी न कीजिये
भला, ये उम्र क्या पीटने की
आरजू हमेशा मिलने की रही
उनकी फिक्र इतनी न कीजिये
भला, ये उम्र क्या पीटने की
जिसे जीने का सलीका आता है
जिसे जीने का सलीका आता है
वही एक दिन मदीना आता है
जो दिल से मसक्कत करते हैं
उन्हीं के माथे पे पसीना आता है
इक बूँद
वही एक दिन मदीना आता है
जो दिल से मसक्कत करते हैं
उन्हीं के माथे पे पसीना आता है
इक बूँद
इश्क़ के सिवा यहाँ...
इश्क़ के सिवा यहाँ करूँ तो क्या करूँ
जिंदा रहूँ कि इश्क़ में खुद को फना करूँ
हुआ न अगर इश्क़ में खुदा के रू-ब-रू
फिर
जिंदा रहूँ कि इश्क़ में खुद को फना करूँ
हुआ न अगर इश्क़ में खुदा के रू-ब-रू
फिर
न अँधेरे के लिये, न उजाले के लिये
न अँधेरे के लिये, न उजाले के लिये
शम्मा जलती है, अपने परवाने के लिये
इश्क़ जरिया है उसे हासिल करने का
वो भी बेताब है
शम्मा जलती है, अपने परवाने के लिये
इश्क़ जरिया है उसे हासिल करने का
वो भी बेताब है
न अँधेरे के लिये, न उजाले के लिये
न अँधेरे के लिये, न उजाले के लिये
शम्मा जलती है, अपने परवाने के लिये
इश्क़ जरिया है उसे हासिल करने का
वो भी बेताब है
शम्मा जलती है, अपने परवाने के लिये
इश्क़ जरिया है उसे हासिल करने का
वो भी बेताब है
तरु पर मोहित हुईं लतायें
श्याम तरु से टेक लगाकर
बंशी मधुर बजाये
तरु पर मोहित हुईं लतायें
री, सखियों के भाग्य से भी
मानो भली लतायें
प्रीतम
बंशी मधुर बजाये
तरु पर मोहित हुईं लतायें
री, सखियों के भाग्य से भी
मानो भली लतायें
प्रीतम
अँखियाँ हरिदर्शन की प्यासी
मन तेरे चरणों से लिपटा
इंन्द्रियाँ बनीं दासी
अँखियाँ हरिदर्शन की प्यासी
बीत चुका ये जीवन मेरा
जो रहा अति
इंन्द्रियाँ बनीं दासी
अँखियाँ हरिदर्शन की प्यासी
बीत चुका ये जीवन मेरा
जो रहा अति
कनु प्रिया की शरण में आये
पुष्प को चुन-चुनकर घनश्याम
सुंदर हार बनाये
कनु प्रिया की शरण में आये
कर से अपने गूँथ-गूँथ कर
आभूषण पहनाये
बनी
सुंदर हार बनाये
कनु प्रिया की शरण में आये
कर से अपने गूँथ-गूँथ कर
आभूषण पहनाये
बनी
सुन-सुन दौड़ पड़ीं सब सखियाँ
रस में ऐसी डूब गयीं फिर
और न खोलीं अँखियाँ
सुन-सुन दौड़ पड़ीं सब सखियाँ
राधा की मिल गयीं श्याम से
आपस में ज्यों
और न खोलीं अँखियाँ
सुन-सुन दौड़ पड़ीं सब सखियाँ
राधा की मिल गयीं श्याम से
आपस में ज्यों
श्याम उतर के नभ से आये
जब-जब मेघ गगन में छाये
घनश्याम नज़र आये
श्याम उतर के नभ से आये
बिजली चमकी बादल में तो
लगे कान्हा
घनश्याम नज़र आये
श्याम उतर के नभ से आये
बिजली चमकी बादल में तो
लगे कान्हा
देखो, छायी घटा सुहानी
बूँद-बूँद बरसे पलकों से
मोती जैसा पानी
देखो, छायी घटा सुहानी
रूठकर बोलीं सखियाँ, "जा
तू बड़ा बना है दानी",
अधरों से
मोती जैसा पानी
देखो, छायी घटा सुहानी
रूठकर बोलीं सखियाँ, "जा
तू बड़ा बना है दानी",
अधरों से
कनु ने ऐसी प्रीत जगायी
चिता-समान जल गयी काया
लौ ऐसी उकसायी
कनु ने ऐसी प्रीत जगायी
बन गयी मैं श्याम की जोगन
मति तू ने भरमायी
बाबुल का घर
लौ ऐसी उकसायी
कनु ने ऐसी प्रीत जगायी
बन गयी मैं श्याम की जोगन
मति तू ने भरमायी
बाबुल का घर
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