सोमवार, 2 मार्च 2015

बन बादल बरसो

तुम आओ –
बन बादल बरसों –
झूम के आओ –
गरज के आओ –
घनघोर घटा के आंचल में,
बिजली की चमक से कौंध के आओ –
तुम आओ –
धरा प्यासी है –
बन बादल बरसों!

धरा के आंचल को
अगणित आंधियों ने –
ला धूल मैला कर दिया –
उस के चमकते रूप को
मैली परत से ढक दिया –
तुम आओ -धो डालो उसे,
और चमका दो फिर से –
धरा की चुनरी में सजे फूल पत्ते ,
सुगन्ध से जिन की -वन उपवन भी महके,
तुम आओ –
धरा प्यासी है –
बन बादल बरसों!

घास भी सूखा -पात भी सूखे
प्यासे पन्छी -जलता जीवन,
आषाढ़ के तपते अधरों पर –
बन स्वाति-बून्द अमृत बरसाओ –
तुम आओ –
बन बादल बरसों –
पात -पात नवजीवन भर दो,
शाख -शाख आंगन चहका दो,
ताल -ताल इक टेर सुना दो,
सूने -सूने मन सरसा दो,
अब तो आओ –
झूम के आओ –
गरज के आओ –
कौंध के आओ –
धरा प्यासी है –
तुम आओ –
बन बादल बरसों !

——-बिमल
(बिमला ढिल्लन)

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