मंगलवार, 10 मार्च 2015

ये आज की शाम

बडी बेचैन
और उदास सी है
ये आज की शाम
कोहरे की चादर ओढे
आसमां से आंसू
ढलकाती सी
न जाने क्या है
इसके अंतस की पीडा
बिजलियां सी कौंध जाती है
इसके सीने में
बीते दिनों की याद की
जब आफताब को लेकर आगोश में
खो जाती थी रजनी की गोद में
पर आज ये सफेद चादर
जैसे अपनी ही सींवन को उधेड
रही है
ढूंढ रही है वो सपने
वो यादें वो वादे
वो सारे इंतजाम
लेकर दिल की हसरतें तमाम
ये आज की शाम

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