रविवार, 10 मई 2015

विजय का आशीर्वाद

मातृ दिवस पर कानपुर दैनिक जागरण में प्रकाशित मेरी कहानी।

मेरी परीक्षा का वक़्त नजदीक आ रहा था मैं पूरी तन्मयता से अपने अध्ययन के प्रति समर्पित था पर वक़्त को शायद कुछ और ही मंजूर था।अचानक मेरी माँ की तबियत बहुत ज्यादा ही बिगड़ गई।मुझे माँ को लेकर दूसरे शहर के एक बड़े अस्पताल में जाना पड़ा।
डॉक्टर साहब ने कहा की माँ के इलाज में लगभग एक महीने का वक़्त लगेगा।ये सुनकर मुझे माँ के साथ साथ अपनी परीक्षा की भी चिन्ता सताने लगी पर परीक्षा से ज्यादा महत्वपूर्ण माँ का स्वास्थ्य था तो मैं उनकी सेवा करने लगा।रात को जब माँ सो जाती तब मैं अपनी पढ़ाई करता वक़्त गुजरता रहा और मेरी परीक्षा प्रारम्भ होने के चार दिन शेष बचे एक रात मैं अध्ययन कर रहा था तभी माँ की धीमी सी आवाज ने मेरे ध्यान को तोड़ा उनके कहे वो शब्द आज भी मेरा मार्ग दर्शन कर रहें हैं उन्होंने मेरे हाथ को अपने हाथ में लेकर कहा कि”बेटा तुम अपने प्रयास और धर्म दोनों का ही पालन कर रहे हो तो निश्चय ही सफलता तुम्हारे कदम चूमेगी।जो कोई भी अपने माँ-बाप का ध्यान रखते हैं उनका ध्यान स्वयं भगवान रखते हैं।

तुम चिंता मत करो सब अच्छा ही होगा” और मेरे माथे को चूमकर मुझे हृदय से लगा लिया मुझे लगा कि जैसे मैं मंदिर में भगवान के चरणों में बैठा हूँ और वो मुझे विजय का आशीर्वाद दे रहे हैं मेरा डर ,चिंता सब समाप्त हो गया एक नई ऊर्जा से मैं भर गया।तभी माँ की आँखों से गिरते आँसुओं ने मेरे काँधे को छुआ मेरी भी आँखों ने आँसुओं के साथ मेरी आशंकाओं को भी मुझसे अलग कर दिया।मैंने परीक्षा पूरे विश्वास के साथ दी और परिणाम मेरी आशा से कहीं अधिक प्राप्त हुआ।ये मेरी माँ का आशीर्वाद ही था जिसने मुझे सफलता प्रदान की।

वैभव”विशेष”

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