मै तो कतरा हूँ ......!
बैठे हुए एक दिन,
तन्हाई में अश्क बहते रहे !
तन्हाई का आलम,
संग संग दोनों सहते रहे !!
!
मैंने सोचा क्यों न
इनके संग बतियाया जाए !
दिल का बोझ कुछ,
इन संग हल्का किया जाए !!
!
सहसा बहते हुए
अश्रु को मैंने टोका, और पूछा,
दुखी मै हूँ,
फिर तूम क्यों बहने लगे !
आखिर दूसरे की
आग में खुद जलने लगे !!
!
इतना सुनकर,
वो तेज़ गति से बहने लगे !
तुम क्या जानो
पीर परायी, मुझसे कहने लगे !!
!
मै तो कतरा हूँ
तेरी हर ख़ुशी और गम का !
मुझसे से जाने
हर कोई हाल तेरे मन का !!
!
मै तो टुकड़ा हूँ
तेरे लहू जिगर का !
क्यों कहते हो
मुझे तुम दीगर का !!
!
जिन्हे तुम
पराया कहते हो
तन्हाई में संग
उन्ही के रहते हो !!
!
मुझेसे बनती
हर जगह तेरी पहचान है !
मान न मान
मै तेरी और तू मेरी जान !!
!
!
!
( डी. के. निवातियाँ ) Read Complete Poem/Kavya Here मै तो कतरा हूँ ......!
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