राम जी अब फिर धरा पर आपका अवतार हो |
है दशानन वध जरूरी दैत्य कुल संहार हो ||
आज घर घर में दशानन बन चुके हैं अनगिनत |
रूप सिय का देख कर बिगड़ी जयन्तों की नियत ||
इंद्र पुत्रों का अहं राघव तुम्हें है तोड़ना |
राम जी कोदंड धारो तीर की फुंकार हो ||
हो रहा घननाद गर्जन अब असह्य राघव् यहाँ |
संत सज्जन वृंद जाएँ अब किधर कैसे कहाँ ?
नींव अब तो है सनातन धर्म की हिलने लगी |
धर्म रघुनन्दन बचा लो धर्म का उद्धार हो ||
बेर शबरी से निशाचर छीन कर ले जायेंगें |
कालनेमी साधु बनकरके अवध लुटवायेंगें ||
शीघ्र रघुनन्दन पधारो काल कलि हुंकारता |
वेद गो ब्राह्मण बचाओ श्रुति निगम संचार हो ||
आचार्य शिवप्रकाश अवस्थी
9412224548
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