आज फिर कानो में उनकी आवाज खनकी
जैसे मन की वीणा को किसी ने छेड़ दिया !!दौड़ रहे थे हम जिंदगी की सरपट राहो में
छूकर मन को फिर से रुख मोड़ दिया !!लगा था जैसे अब कोई वास्ता नही उनसे
कर चुपके से याद दिल का भ्रम तोड़ दिया !!हम जब जब पास बुलाते रहे, वो दूर जाते रहे
आज जब हम नही रो-रो आँखों को फोड़ दिया !!अजब ख्यालात थे उस शख्स “धर्म” के लिए
Read Complete Poem/Kavya Here जब चाहा छोड़ दिया
जब मन किया घुलेमिले,जब चाहा छोड़ दिया !!
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( डी. के. निवातियाँ )
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