सोमवार, 11 मई 2015

विदाई

बाली थी उमरिया कर दी विदाई क्या थी में पराई
मीठी सी मेरी बोली थी
झरनो सी में बहती थी
सितारों सी चमकती थी
यौवन ने ली अँगड़ाई,क्या थी में पराई।
चाँद से मेरा मुखड़ा था
रंग रूप भी सजीला था
चंचल मन हठीला था
हाथो में क्यों मेहँदी सजाई,क्या थी में पराई।
खुला दिल का दरवाजा था
बाली उमरिया को जाना था
बचपन लोट ना आना था
सह ना सकूँगी सबसे जुदाई,क्या थी में पराई।
बाबुल का घर छुट रहा है
मानो रिश्ता टूट रहा है
मन फुट-फुट कर रो रहा है
जीवन ज्योत मुझसे क्यों ना जलाई,क्या थी में पराई।
मै भी करती नाम रोशन तेरा
दूर करती तेरे घर का अमावस अँधेरा
रहती हरदम खुश दमकता चेहरा
दिल का घर ना छूटता ना होती आँखे आंसू भरी,क्या थी में पराई,क्यों कर दी विदाई।
नीतू राठौर

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here विदाई

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें