हमारी सोच,
हमें अपनी मंज़िल तक पहुँचाती है।
अगर सोच अच्छी हो,
तो मंज़िल मिल जाती है।
हर कोई इस दुनिया को,
अलग नज़रिए से देखता है।
कामयाब हर कोई बनना चाहता है,
हम कभी-कभी अपने आप से ज़्यादा ही उम्मीद करते हैं ।
पैर उतने ही फैलाने चाहिए,
जितनी चादर हो।
यह मुहावरा प्रसिद्ध है,
और हमारी ख्वाहिशों के लिए बराबर है।
हम बहुत ऊँची सोच रखते हैं,
हमारी पहुँच उतनी तो है नहीं ,
फिर भी अपनी सोच को कायम राखते हुए,
हम कुछ ज़्यादा ही माँगते हैं ।
यह ख्वाहिशें हैं ही ऐसी,
चैन से सोने नहीं देती,
हर डैम सताती है,
जब भी सपनों में आती हैं ।
-कृतिका भाटिया
Read Complete Poem/Kavya Here हमारी ख्वाहिशे
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें