कुछ तो बात थी इस नए बंधन की जुड़े भी तो किस तरह, एक होते हुए भी अलग – अलग, मगर फिर भी एक है अनेकता में एकता और एकता में अनेकता का इस से बढ़कर उदहारण शायद ही दुनिया में कोई हो ! बस इसी में तब से आज तक हम दोनों संग – संग चले आ रहे है बिना कोई अहसान किये, मगर फिर भी फ़िक्र मंद एक दूजे के लिए, लगता है जैसे अधूरे है हम बिन एक दूजे से ! बस इसी तरह से रोज अपनी अपनी जिम्मेदारियों का बोझा ठेलते हुए गाडी के दो चक्को की तरह एक दूजे से अनजान बड़ी सरलता से परिवार रूपी रथ को मंजिल की और लिए जाते है ! शायद इसी का नाम बंधन होता है जिसमे बंधकर भी स्वतत्र मगर एक दूसरे पर आश्रित I लेकिन जो अनुभिति इस बंधन में है शायद ही कही मिले I शुक्रगुजार है हम एक दूजे के सहयोगी एवं पहचान बनने के लिए, क्योकि इस बंधन में अनुभव कराया है जीवन की सच्चाई से, खट्टे -मीठे, कड़वे -नमकीन , अच्छे -बुरे, सुख -दुःख, प्रेम -घृणा आदि आदि सभी तरह का स्वाद समय समय पर मिलता रहता है ! इसलिए इस अद्भुत बंधन को शत शत नमन !! [[______डी. के. निवातियाँ ___]]
जिंदगी का एक अहम पड़ाव, जहाँ से मंजिल को पाने के लिए उचित डगर चुनना सबसे मशक्क़त का काम माना जाता है , एक दिन अचानक मुलाकात हुई एक अजनबी से, वो मुझे अनजान मै उस से बेखबर, फिर न जाने हम दोनों एक दूजे के इतने करीब हो गए जितना संसार में कोई सागा सम्बन्धी, मित्र या कोई अन्य नही हो सकता ! शायद हम अपने जन्म दाताओ से भी सबसे नकजीदक होते हुए कई मायने में बहुत दूर होते है i
मंगलवार, 22 सितंबर 2015
"" बंधन ""
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