गणवेश वाले का
निवेश- निवेश चिल्लाना
अब देश को ‘अख़र’ रहा है।
हमारे परिवेश पर
फिरंगी का हंसना बिहसना
सदियों से हर ‘पहर’ रहा है।
व्यवसाय के रास्ते
आना और हुकुम चलाना
हमारे लिए ये ‘ज़हर’ रहा है।
उपवास की राह से
सिक्के जुटा लेंगे फिर
ये मिट्टी हमारा जो ‘घर’ रहा है।
सबक लो गुलामी से
यहीं सामर्थ्य पैदा करो
स्थाई यही एक ‘असर’ रहा है।
– मिथिलेश ‘अनभिज्ञ’
(more at: www.mithilesh2020.com )
Mithilesh’s poem in hindi, extra zeal for Investment in India,
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