वो एक परिंदा
जो आग लगाता चला गया
अपनी दर्द कहानी से
खुद मे डुबाता चला गया
ना जाने कब हम
उसकी यादो मेँ खोने लगे
पर वो सागर था ऐसा
जो प्यास बढाता चला गया
दिल की गहराई मे
जज्बातो को छिपाता चला गया
साथ था बस दो पल का
फिर भी दिल मे समाता चलागया
ना जाने क्या बात थी उसमे
वो सासो से धडकन चुराता चला गया
आवारा बादल था वो
एहसास से अपने भीगाता चला गया
वो सागर को भर के
आँखो को सुखाता चला गया
फूलो से खुशबू को
चुराता चला गया
आने की खबर ना दी
जाने का किस्सा सुनाता चला गया
उसे जिन्दगी की किताब क्या दी
वो तो उसे भी जलाता चला गया
वो राही था सदियो का
मुझको भी चलना सीखता चला गया
बिछडने का दर्द तो था
मंजिल की चाह को बढाता चला गया
वो एहसासहै मेरा
जो दिल से रिश्ता निभाता चला गया
वो एक परिन्दा
जो मुझे मुझसे मिलाता ला गया
शुक्रवार, 18 सितंबर 2015
वो एक परिंदा
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