“बेलोसा”
दिन निकलने के साथ ही
जाती है रयमति के घर
हाथ में उसके
एक टुकनी है
बगल में एक साल डेढ़ साल का बच्चा
बागा पाई है वो
रयमति भी वैसी ही टुकनी लेकर
निकलती है अपने घर से
अरे यही तो उनकी पूंजियों में से एक है
बाड़ी किनारे खड़े होकर
दोनों में थोड़ी देर कुछ बातचीत होती है
फिर चल देती हैं
वे दोनों
गाँव से बाहर
जाते- जाते -जाते चली जाती हैं
एक डोबरी के किनारे
फिर उस डोबरी के दलदल में उतरकर
करती हैं प्रयास
केसूर कांदा के लिए
कल
साप्ताहिक इतवार का बाजार है
कोंडागांव का
कुछ मिलेगा
तो नमक और कुछ जरुरी सामान भी लेना है
साथ में
बच्चे के लिए एक कमीज
ओह
दिन भर कीचड़ में
क्या परिश्रम है
और हम शहर के लोग
उनसे मोल भाव करते हैं
चंद रुपयों के लिए —-शकुंतला तरार
बुधवार, 23 सितंबर 2015
बस्तर गीत-कविता -''बेलोसा''
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