आज फिर किसी नें मेरी सोई याद को छेड़ा
मेरे वर्तमान को अतीत से फिर जोड़ा
मैं भी खो गया फिर उन हंसी वादियों में
दीप जैसे जल गया हो अंधी आँधियों में
ज्यों ज्यों जो पूछता था वो मुझसे कुछ निजी सवाल
मेरे दिल में भावनाओं का आ जाता था उबाल
सच्चाई को तो मैंने उससे यूँ छुपा लिया
वो समझा जैसे मैंने तो सब कुछ ही पा लिया
उसकी नज़रों में तो था मैं सबसे भाग्यवान
पर शायद एक भी वो सच ना पाया जान
जान भी जाता तो वो विश्वास नहीं करता
इसे भी शायद वो एक मजाक ही समझता
लेकिन ये सच है मेरी जिंदगी अब बन गई मजाक
जिसमें कोई भी ख़ुशी और उमंग नहीं आज
उसके बिना मेरी जिंदगी का सफर है अधूरा
वो साथ नहीं है न जाने होगा ये कैसे पूरा
अब इतना जब सहा है तो कुछ और सह लेंगें
तक़दीर के बाकी मजाकों को भी झेलेंगे
लेकिन मेरा मन अब उसे दुआएं नहीं देता
ना चाह कर भी हरदम सिर्फ यही है कहता
एक उसे भी तोड़ डालेगी ये तन्हाई
शायद उसे तब याद आए अपनी बेवफाई .
शिशिर “मधुकर”
Read Complete Poem/Kavya Here याद आएगी बेवफाई - शिशिर "मधुकर"
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