जब भी पहुँचता हूँ मैं जीवन में किसी मुकाम पर
मुझे उसकी याद आ जाती है
काश मैं उस वक्त उसको दे पाता ये सब कुछ
यह इच्छा मन को एक एहसास करा जाती है
लेकिन शायद जिंदगी की जद्दोजहद इसी का नाम है
जब इंसान कुछ मौकों पर इतना मजबूर हो जाता है
की प्यार, दोस्त, वक्त, और समाज क्या
अपना साया भी उसका साथ छोड़ जाता है
और जब वक्त की मेहरबानियाँ होती हैं तो
वो नहीं होता जिसके लिए ये सब कुछ चाहा था
होतीं है तो सिर्फ कुछ तन्हा यादें और तमन्नाए
जो किसी के लिए संजोई थी और
जिसके चले जाने पर मेरी आत्मा भी रोई थी.
शिशिर ‘मधुकर”
Read Complete Poem/Kavya Here तन्हा यादें और तमन्नाए - शिशिर "मधुकर"
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