ऐ समय तेरे करम हमको समझ आने लगे हैं
दर्द को दिल में लिए हम भी मुस्काने लगे हैं
झूठ से रिश्तों कि ख़ातिर अस्मत को मेरी लुटते देखा
काश मुझको पहले बता देता तू मेरी भाग्य रेखा
लुक छिप के शायद तब मैं अपने आप को छुपाता बचाता
एक मलिन तन मन लिए ही सब लोगों से मिलता मिलाता
जिंदगी में फिर कभी ये तोड़ने वाले ग़म ना होते
एक अनाड़ी आदमी से चेहरा छुपा के हम ना रोते.
शिशिर “मधुकर”
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