कभी कहीं पढ़ा था दीवारें मौन होती हैं,बचपन से सुनती आयी हूँ कि दीवारों के कान होते हैं।मेरा मन
दीवारों।के बारे में कुछ और ही सोचता है-
लोग कहते हैं दीवारों के कान होते हैं,
हाँ सच दीवारों के कान होते है मगर
जब दीवारें बोलती है तो हर तरफ खामोशी की
चादर पसरी होती है।
केवल आपके अन्तर्मन की आवाज,
आपके साथ होती है।
दीवारें तब बोलती है जब आपका एकाकीपन
आपके अन्दर की गाँठें खोलता है।
दीवारों का बोलना आपके,
अन्तर्मन की आवाज होती है
बड़ी शर्मिली होती है ये,
खामोशी में बातें करती हैं
इनके कान ही नही,
जुबान भी होती है।
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