एक दिन ऐसा आएगा तू..
एक दिन ऐसा आएगा तू..
छोड़ के सब चला जायेगा..२
माटी का ये तन तेरा..२
माटी में ही मिल जायेगा !
एक दिन ऐसा…
फिर तू काहे मूरख प्राणी..
धन की चिंता करता है
बेच के अपनी आत्मा को
फिर भी जिन्दा रहता है
धन तो है बस मन का मेल..२
एक दिन सब धूल जायेगा !
एक दिन ऐसा…
जग का सारा रिस्ता झूठा..
झूठा हर एक नाता है
फिर क्यों फस्के मोह में मूरख
अपना समय गवाता है
एक प्रभु का रिस्ता सच्चा..२
भेद भी ये खुल जायेगा !
एक दिन ऐसा…
एक दिन ऐसा आएगा तू..
छोड़ के सब चला जायेगा..२
माटी का ये तन तेरा..२
माटी में ही मिल जायेगा !
एक दिन ऐसा…
प्रभात रंजन
उप डाकघर,रामनगर
प० चम्पारण
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