अतीत के गलियारों में झांकती नजरो में उजाला सा है
मैं तो सफेदी देख रहा था पर इसका रंग तो काला सा है
मेरे चेहरे की जुबानी मेरा अतीत बयां हो रहा है
मेरा वर्तमान मेरे अतीत पर कुर्बान हो रहा है
वो शामत के दिन भी क्या अजीब थे
तब शायद हम थोड़े ज्यादा गरीब थे
परिवार से दूर थे पर
मां के बहुत करीब थे
कल तक जो चेहरे मेरी पहचान के थे
पता नही क्यों आज वो मुझसे अनजान से थे
नफरत उनकी आँखों से साफ़ झलकती थी
उनका सामना करने मेरी आँखे डरती थी
सजा हम भुगत रहे थे पता नही गुनहगार कौन था
हम पर जुल्म करने वाला यह जमाना तब मौन था
बुधवार, 15 जुलाई 2015
मेरा अतीत
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