मेरे परिवार की बगिया
अापसी प्यार एवं स्नेह
से लहलहाया, हर्षाया
खिला एक नन्हा प्रसून।
पुत्र के आगमन पर
खुश हुए सभी,
दादा-दादी,पापा,चाचा
मामा एवं नाना-नानी
खुश तो थी मैं भी बहुत
परंतु,
मन में उठी एक कसक
काश्
होती एक पुत्री भी मेरी।
तीन साल बाद
फिर से मेरी गोद भरी
इस बार आंचल में मेरी
आई एक नन्ही परी।
गोल-मटोल व कोमल ऐसी
जैसे गुलाब की हो पंखुरी।
धन्य हुई पाकर उसे,
मेरी हुई वह आस पूरी।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें