मन है समुन्दर,भावनाएं लहरें,
लहरों का मचलना,कोई दस्तक-सी
दे गया हो शांत समुन्दर में ज्यूँ..
कोमल छुअन गुलाब-पंखुड़ियों की,
हो जाती है कसक,एक काँटा हवा में
लहराकर टकरा गया हो ज्यूँ ..
झील का अविरल शांत प्रवाह,
बादलों का छू जाना,झुककर डबडबाए
नयनों को चूमा गया हो ज्यूँ ..
चहचहाहट अनगिनत पक्षियों की,
आह्लादित हुआ मन,सुने आँगन में हो
किलकारियाँ अबोध शिशु की ज्यूँ..
इतना बोझिल क्यूँ है मन,
सांसों का रुंधना,रुक-रुककर हो रहा हो
शरद ऋतू में हिमपात ज्यूँ ..
अधजले पत्ते,तूफानी रात,
शांति है कहीं, कहती है हवा ढूंढो उसे
चली ना जाए वो भाग कर यूँ ..
-संध्या गोलछा
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