. दो मुक्तक —- जिन्दगी पर
1
कलियों के खिलने की आवाजें सुनी
शबनम के झरने की आवाजें सुनी
खामुश इतनी है मेरी जिन्दगी
ऑंसू के गिरने की आवाजें सुनी
—- भूपेंद्र कुमार दवे
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2
यह जिन्दगी अजनबी-सी लगती है
हर वक्त कुछ अटपट-सी लगती है
उलझ गई जो कँटीली झाड़ियों में
उस मासूम पंखूड़ी-सी लगती है।
—- भूपेंद्र कुमार दवे
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