अँधेरे में कोई खुद को तलाशता नहीं
हवा खुद आती है कोई लाता नहीं
आसमान पर चमकती बिजली
असहाय है ,कड़क के गिरती है
कोई संभालता नहीं |
धुएं की धुंध में कुछ सामने नजर आता नहीं
दुनिया के हर रंग से उठ चूका है यकीन आज
अब तो इंसान को खुद पर यकीन आता नहीं
जहर हाथो में लेकिन कायर मर पाता नहीं
जिंदगी से है खौफ , मौत से यारी करता नहीं |
जिंदगी क्या है पूछता फिरता है कनक
वह नादान जो खुद को समझ पाता नहीं |
कनक श्रीवास्तवा
Read Complete Poem/Kavya Here यकीन आता नहीं
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें