इतने फरेब इतने झूट बोलने की जरूरत ही कहाँ थी. बात मजबूरियों की करके दूर जाने की जरूरत ही कहाँ थी. बस कर तो लेते एक बार कोशिश मुझे समझने की. बेवजह खुद से आँख चुराने की जरूरत ही कहाँ थी………….आलोक
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