शनिवार, 1 अगस्त 2015

।।ग़ज़ल।।गुलाब तेरे घर का ।।

।।गजल।।गुलाब तेरे घर का ।।

रास्ता है कितना लाजबाब तेरे घर का ।।
मुझे पसन्द आया वो गुलाब तेरे घर का ।।

मेरे हाथो में मयस्कर न हुआ कोई गम नही ।।
नजर में तो आया वो ख्वाब तेरे घर का ।।

तुम न बुलावो तो भी चला आउगा मैं ।।
मैं हो गया हूँ इतना बेताब तेरे घर का ।।

तेरी ही गलियोँ में तू नजर आयी थी मुझे ।।
बाक़ी है अभी भी कुछ हिसाब तेरे घर का ।।

हर्ज क्या है मेरे आने पर पर्दा उठा देने से ।।
मैं खुद बन गया हूँ इक आफ़ताब तेरे घर का ।।

…….. R.K.M

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