रविवार, 2 अगस्त 2015

'ऐसे थे डा. कलाम साहब'

इन्होंने फिक़ की अपने मुल्क की,
अपनी फिक़ कभी भी की नहीं।
जो बात सच थी कह गये,
झूठीं बातें कभी भी की नहीं।

ख्याल हर वक्त थी इस मुल्क की हालात का,
पर अपनी हालत की फिक़ कभी भी की नहीं।
लोगों की खुशी से खुश रहे,
अपने ख्वाहिस की फिक़ कभी भी की नहीं।
इन्होंने फिक़ की अपने मुल्क की,
अपनी फिक़ कभी भी की नहीं।

कितना ही मुश्किल दौर आया,
पर कभी हारे नहीं।
आगे ही वो बढते रहे,
मुश्किलों से पीछे भागे नहीं।
मन्जिल थी काफी दूर उनकी,
पर रास्तों की फिक़ कभी भी की नहीं।

इन्होंने फिक़ की अपने मुल्क की,
अपनी फिक़ कभी भी की नहीं।

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