जिनदगि एक खुलि कित।ब्
हर पनन्।करनयि किस्से बय।न्
अ।ज तेरि तो कल मेरि ये क।हनि हे,
जिनदगि तो बस् बेहेत। पनि हे…
कभि न। ह।र म।ने , यह।न वहँ। बस
अपनि कदम ड।ले,
पत। नहि ले ज।ये ये कह।न्,
बस चलते चलो ,दिखेनयि दिस। जहँ।…
जलत। हुअ। दिय। भि बुझ ज।ति हे एक दिन्,
धिमि धिमि रोश्नि सुन्हेरि र।तोकि य।द दिलति हे…
जिनदगि के दिये भि बुझ ज।येगि एक दिन्,
बस , रहेगि तो य।दो मे
बो प्य।र भरे दिन्…
कभि मे तो कभि तु उसे य।द करे,
सपनो कि नयि उमिद सज।ये,,,
उमिद तो और भि रेहेति हे,
कुछ हसिल होति हे ,, कृछ
अधृरि रेहेज।ति हे ..
ब।गो मे फुल खिल ज।ते हे सभि ,,,,
कुछ होति हे सुन्हेरि , कुछ होति हेगुलबि…..
पर क।टोँ क। भि जव।ब नहि,,,,
न। ज।ने किस जनम क। रिस्त। हे फुलो के स।थ उसक।,,,,
स।यद सनजोग हे नसिबो क।…
जिनदगि क। भि रुप हे अनोख।
कभि हस।ये , कभि देति ये धोक।..
कुछ तेरि तो कुछ मेरि गम हे उसमे समिल्,,,
जिनदगि तो बस बेहेत। पनि…
सभि गुजरते हे इम्तिह।नो से…
प।र हुए तो मिलन होति हे सम्न्दर कि गेहेर।इओँ मेँ,,
य। फिर बँट ज।ते हेँ किन।रो मे,,,
कभि तेरि तो कभि मेरि होति हे जित्
दुनिअ। कि तो बस यहि एक रित्….
अ।ज तेरि तो कल मेरि ये क।हनि हे
जिनदगि तो बस बेहेत। प।नि हे..
बेहेत। प।नि हे…..।
न।म्: स्मित। मेहेर (पुष्प।न्जलि मेहेर्)
पत।: ओडिश।, (बरगड्)
सर्गिब।हल्,
जिल्ल।: बरगड्
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