तेरा जानबूझकर मेरे पास से खामोश निकलना और दूर खङे होकर फिर से निहारना कहाँ से लाती हो इतनी सहनशीलता मेरा तो सरेआम तमाशा करने का दिल करता है।। ( रै कबीर )
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