मेरे दिल के आईने में एक छवि सी बनी जाती है l
मैं जितनी मिटने की कौशिश करता हूँ,
बो उतनी ही नज़र आती है l
मेरे दिल के आईने में ——–
जब बो हंसती है,मुस्कुराती है ,
तो मेरा दिल भी हँसता है,मुस्कुराता है l
कुछ तो बात जरुर है उसके चहरे में-
जो दिल कि पतंग खुद ब खुद,
उसकी और चली जाती है l
मेरे दिल के आईने में ——–
खवाबों की तन्हाई में बहुत सी बातें करता हूँ
जब सामना होता है तो चाहता हूँ,
कि उड़ेल कर रख दू अपने दिल को-
पर कम्बखत आबाज थमी जाती है l
मेरे दिल के आईने में ——–
पता नहीं उसके आईने में,
मेरा कैसा अक्स उभर रहा हो l
पर इधर तो बो हाल है-
कि बुझाए बुझती नहीं चिंगारी प्यार की,
खुद ब खुद जली जाती है l
मेरे दिल के आईने में ——–
जितना भी कुरेदता हूँ अपने जख्मों को,
उतना ही उस को अपने करीब पता हूँ l
पिछले कुछ ऱोज से न जानें क्यों –
बह मेरे हर ज़ख़्म कि दवा बनी जाती है l
मेरे दिल के आईने में ——–
मैं नहीं चाहता,
कि मेरी बजह से ज़माना ताने कसे उस पर l
पर क्या करू ख्याल आते ही,
दिल में खलबली मची जाती है l
मेरे दिल के आईने में ——–
संजीव कालिया
Read Complete Poem/Kavya Here धुंधली छवि
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