ग़ज़ल –
मुझको मेरे नसीब से कोई नहीं गिला !
जिसके था जो नसीब में उसको वही मिला !!
जिसको वो चाहे उसको वो शोहरत आता करे !
उसके वगैर हुक्म न पत्ता कोई हिला !!
मिलता है वो सभी से खुलूशो अदब के साथ !
क़ाइम है आज भी वही उल्फ़त का सिलसिला !!
तनहा वगैर उसके तो जीना मुहाल है !
या रब यही दुआ है मेरे यार से मिला !!
दिल तोड़ के वो साथ रक़ीबों से जा मिले !
मेरी वफ़ा का उसने मुझे ये दिया सिला !!
कैसा ये इत्तफ़ाक़ है फूलों के दरमियाँ !
मेरा ही सिर्फ फूल चमन में नहीं खिला !!
मेरे नबी पे ख़त्म नबूबत हुई ‘रज़ा ‘!
पैगम्बरी का आगे नहीं कोई सिलसिला !!
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Gazal By salim raza rewa 9981728122
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