उङाया जो मुझे धुंए सा
रह गया प्यासे कुंए सा
इक पल में सब कुछ हार गया
खेल था मैं इक जुए सा
बंट चुका हूँ हिस्सों में
याद आउंगा किस्सों में
इक पल में सब कुछ हार गया
बस कुछ रंगों के इक्कों में
नाम का ही बस नाम था
मतलब था तो काम था
इक पल में सब कुछ हार गया
मैं तो इक गुलाम था
एक समय खुद को रोका था
बचने का वो मौका था
इक पल में सब कुछ हार गया
इस खेल में भी धोखा था
(रै कबीर)
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