रचना
जब भगवान ने इंसान बनाया होगा,
उत्तम रचना मेरी, अरमान सजाया होगा।
मस्तिष्क गढ़ा होगा ब्रह्माण्ड के नजरिये से,
कुछ दुर्लभ न हो इंसान की इन्द्रियों से।
भिन्न आकृति, भिन्न रंग-रूप साज दिया,
मूर्ति रच के उसमें प्राणवायु डाल दिया।
प्रबल इच्छाशक्ति, संकल्प का संचार किया,
सार्थक सोच बने, बुद्धि का विस्तार किया।
रचा सौन्दर्य तो कामदेव भी शर्माने लगा,
नारी के रूप में रति का अर्क आने लगा।
भावुकता भरके सम्बन्ध को प्रगाढ़ किया,
रचा संयोग तो वियोग का निर्माण किया।
प्यार, संवेदन, शुचिता और उत्तेजना भर दी,
लोभ, ईर्ष्या और पाखंड की रचना कर दी।
शौर्य गाथा के लिए पौरुष बल को जोड़ दिया,
घमंड भरके उसमें क्रोध – ग़म निचोड़ दिया।
कर्म से जोड़ दिया भाग्य और सफलता को,
आलस्य अंजाम दे इंसान की विफलता को।
सत्य पर छायी रहे झूठ की काली छाया,
रची रिश्ते-नाते और मोह की घनी माया।
प्रभु तो सर्व गुण संपन्न बनाये मानव,
फिर भी इस धरती पे सब कष्ट उठाये मानव।
सुख संपत्ति और ऐश्वर्य की कमाई में,
रूचि कम हो गयी इंसान की भलाई में।
बुन कर जाल मानव उसी में उलझ जाता,
दुनिया मानकर उस जाल में ही रह जाता।
कर्म सुयोग्य जो इंसान का न कर पाता,
जाते समय वह स्वर्ग मार्ग में भी पछताता
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